New Delhi, 17 सितंबर . मेलाटोनिन एक प्राकृतिक हार्मोन है जिसे हमारा मस्तिष्क, खासकर पीनियल ग्रंथि, अंधेरे में उत्पन्न करता है. इसे अक्सर “नींद का हार्मोन” कहा जाता है क्योंकि यह हमारे ‘स्लीप-वेक सायकल’ यानी ‘नींद-जागने की लय’ (सर्केडियन रिदम) को नियंत्रित करता है.
पिछले कुछ वर्षों में मेलाटोनिन पर दुनिया भर में गहन वैज्ञानिक अध्ययन हुए हैं, जो इसकी खूबी और जरूरत पर बल देते हैं. अब तो इसके सप्लीमेंट्स भी बाजार में उपलब्ध हैं.
अमेरिका की नेशनल स्लीप फाउंडेशन के एक अध्ययन के अनुसार, मेलाटोनिन की थोड़ी मात्रा (0.5 से 3 मिलीग्राम) उन लोगों की नींद सुधारने में मदद करती है जिन्हें नींद आने में कठिनाई होती है या जो जेट लैग से जूझ रहे होते हैं. ये अध्ययन बताता है कि मेलाटोनिन नींद में आ रहे व्यवधान को रोकता है और नींद की गुणवत्ता में सुधार लाता है.
जिन लोगों को लंबी हवाई यात्राएं करनी पड़ती हैं या जो रात की शिफ्ट में काम करते हैं, उनके स्लीप सायकल पर बुरा असर पड़ता है. रिसर्च से पता चला है कि मेलाटोनिन सप्लिमेंट लेने से ‘जेट लैग’ के लक्षणों को कम किया जा सकता है और ‘शिफ्ट वर्कर्स’ को बेहतर नींद मिल सकती है.
मेलाटोनिन सिर्फ नींद के लिए ही नहीं, बल्कि ‘एंटीऑक्सीडेंट’ के रूप में भी काम करता है. यह शरीर में फ्री रेडिकल्स को न्यूट्रल करता है जो कि कैंसर, हृदय रोग और उम्र बढ़ने से जुड़ी बीमारियों के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं. 2020 के एक अध्ययन के अनुसार, मेलाटोनिन का उपयोग कुछ ‘न्यूरोलॉजिकल रोगों’ जैसे अल्जाइमर और पार्किंसन से जूझने में भी किया जाता है.
2020-2021 के दौरान कोविड-19 महामारी के दौरान मेलाटोनिन को एक ‘सपोर्टिव थैरेपी’ के रूप में जांचा गया. कुछ प्रारंभिक शोधों में यह सुझाव दिया गया कि मेलाटोनिन ‘इंफ्लेमेशन को कम’ कर सकता है और ‘इम्यून सिस्टम को मॉड्यूलेट’ करता है, जिससे यह कोविड से लड़ने में सहायक हो सकता है.
सामान्यतः मेलाटोनिन सुरक्षित माना जाता है, खासकर अल्पकालिक उपयोग में. लेकिन इसके कुछ संभावित साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, जैसे सिरदर्द, चक्कर आना, दिन में नींद आना और मूड में बदलाव भी इसमें शामिल हैं.
गर्भवती महिलाएं, स्तनपान कराने वाली माताएं, या जो दवाइयां ले रहे हैं—उन्हें मेलाटोनिन सप्लीमेंट लेने से पहले डॉक्टर की राय लेना जरूरी है.
सबसे जरूरी बात, अगर आप सप्लीमेंट्स में यकीन नहीं रखते तो कुछ सरल उपायों से आप शरीर में इसका प्राकृतिक स्तर बढ़ा सकते हैं, जैसे रात में कमरे की रोशनी कम रखें. खासकर मोबाइल और लैपटॉप की नीली रोशनी को जितना दूर रखें उतना अच्छा. सूरज की रोशनी में समय बिताने से शरीर का सर्केडियन रिदम सुधरता है. रात को सोने से पहले हैवी मील और कैफीन का सेवन न करें और सोने का समय तय करें.
मेलाटोनिन सिर्फ एक हार्मोन नहीं है, बल्कि शरीर की एक अद्भुत जैविक घड़ी का हिस्सा है. रिसर्च बताती है कि यह न केवल नींद को बेहतर करता है बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य में भी अहम भूमिका निभा सकता है.
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केआर/