बारिश में बढ़ता है वात और पित्त दोष, जानें आयुर्वेदिक उपाय

नई दिल्ली, 26 मई . आयुर्वेद में बारिश के मौसम को स्वास्थ्य के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय माना जाता है. इस मौसम में ठंडक बढ़ जाती है. लोग इस मौसम का लुत्फ उठाने के लिए तेल से बने खाद्य पदार्थ ज्यादा खाते हैं. ऐसे में शरीर की पाचन शक्ति यानी अग्नि कमजोर हो जाती है. वहीं वातावरण में नमी बढ़ जाने से वात दोष बढ़ जाता है और शरीर में सूखापन, दर्द और बेचैनी हो सकती है. साथ ही पित्त दोष भी जमा होता है, जो हमारे शरीर की गर्मी और पाचन से जुड़ा होता है. इससे शरीर में गर्मी, जलन और पेट की समस्याएं हो सकती हैं. इसलिए इस मौसम में सही आहार, सही दिनचर्या और सतर्कता बहुत जरूरी होती है ताकि शरीर स्वस्थ और संतुलित रह सके.

पाचन शक्ति कम होने और वात-पित्त दोष बढ़ने से बारिश के मौसम में हमारा शरीर कमजोर हो जाता है, ऐसे में शरीर में असंतुलन होने की संभावना बढ़ जाती है. संक्रमण का खतरा और पाचन की समस्या अधिक देखने को मिलती है. इसलिए आयुर्वेद के ‘ऋतुचर्या’ में मौसमी आहार पर अधिक जोर दिया गया है.

जैसे-जैसे मौसम बदलता है, हमारे शरीर में भी बदलाव होता है. आयुर्वेद का मानना है कि अगर हम अपने शरीर को इन मौसमों के बदलाव के अनुसार ढाल लें, तो हम बीमारियों से बच सकते हैं और अच्छी सेहत को बनाए रख सकते हैं.

‘ऋतुचर्या’ के अनुसार बारिश के मौसम में आहार बेहद अहम माना जाता है, क्योंकि आप जो खा रहे हैं, उसका असर आपकी पाचन शक्ति पर पड़ता है. इस मौसम में हल्का, गर्म और सुपाच्य भोजन करें. भारी, ठंडे और तेल वाले खाने से बचें. ज्यादा तले-भुने खाने का परहेज कर ताजा और साफ-सुथरा खाना ही खाएं. सुश्रुत और चरक संहिता में ऋतु उपयोगी व्यवहार की सलाह दी गई है.

बारिश के मौसम में अपनी दिनचर्या में भी बदलाव लाना जरूरी है ताकि शरीर स्वस्थ रहे. दिन में एक्सरसाइज या योग करें ताकि वात दोष नियंत्रित रहे. ज्यादा देर तक भीगे कपड़े न पहनें, इससे ठंड और जुकाम हो सकता है. शरीर को सूखा और गर्म रखें. अगर ठंड लग रही हो तो गर्म पानी से स्नान करें. ज्यादा देर बारिश में न रहें क्योंकि इससे शरीर कमजोर हो सकता है.

रोजाना 7-8 घंटे की पर्याप्त नींद लें और तनाव से बचें क्योंकि यह भी वात और पित्त को बढ़ा सकता है. अगर ठंड का एहसास हो रहा है तो तिल या सरसों के तेल की मालिश करें.

अपने आसपास स्वच्छता बनाए रखें, ताकि कीड़े-मकौड़े और बीमारियां न फैलें. फल और सब्जियों को अच्छी तरह धोकर ही खाएं. पैरों को हमेशा साफ और सूखा रखें, क्योंकि गीले पैरों से फंगल संक्रमण होने का खतरा बढ़ता है.

अगर मुमकिन हो तो गुनगुने या गर्म पानी से नहाएं, क्योंकि ठंडे पानी से वात दोष के बढ़ने की संभावना है. नहाने के पानी में नीम या तुलसी के पत्ते डालकर नहाएं, इससे त्वचा पर कीटाणु नहीं पनपते और संक्रमण नहीं होता.

पीके/केआर