तेलंगाना हाईकोर्ट ने एमएलसी के नामांकन को खारिज करने के राज्यपाल के आदेश को रद्द कर दिया

हैदराबाद, 7 मार्च . तेलंगाना हाईकोर्ट ने राज्यपाल के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने पिछले साल सितंबर महीने में दासोजू श्रवण कुमार और के. सत्यनारायण के विधानपरिषद का नामांकन खारिज कर दिया था. साथ ही कोर्ट ने हाल ही में किए गए एम. कोदंडराम और आमिर अली खान के नामांकन को भी रद्द कर दिया.

भारत राष्ट्र समिति की पूर्व की सरकार ने दासोजू श्रवण कुमार और सत्यनारायण के नामांकन की सिफारिश की थी. वहीं, कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद कोदंडराम और आमिर अली खान का नामांकन किया गया था.

श्रवण कुमार और सत्यनारायण की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने माना कि गवर्नर केबिनेट के फैसलों से बंधा हुआ होता है.

मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति अनिल कुमार जुकांति की पीठ ने बीते 15 फरवरी को पी. दासोजू श्रवण कुमार और सत्यनारायण की याचिका पर सुनवाई के दौरान अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

वहीं, कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पब्लिक लॉ डिक्लेरेशन में स्पष्ट कहा गया है कि राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 171(5) के अनरूप संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए मंत्रिपरिषद की सलाह और सहायता पर काम करने के लिए बाध्य है. हालांकि, मंत्रिपरिषद द्वारा विधान परिषद के लिए अनुशंसित किसी व्यक्ति की पात्रता या अयोग्यता के मुद्दों की जांच करने की शक्ति राज्यपाल के पास है.

कोर्ट ने फैसला सुनाया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 361 के अनुरूप राज्यपाल कोर्ट को जवाब देने के लिए बाध्य नहीं हैं. हालांकि, इन मामलों के तथ्यों और परिस्थितियों में यह न्यायालय विश्वास करता है कि संविधान के प्रावधानों के अनुसार उचित कार्रवाई की जाएगी.

पूर्व की बीआरएस सरकार द्वारा श्रवण कुमार और सत्यनारायण का नामांकन किया गया था, लेकिन राज्यपाल ने दोनों का नामांकन खारिज कर दिया.

पिछले साल जुलाई में तत्कालीन राज्य कैबिनेट द्वारा पारित सिफारिश राज्यपाल को भेजी गई थी. हालांकि, उन्होंने 19 सितंबर को इस आधार पर नामांकन खारिज कर दिया कि दोनों “राजनीतिक रूप से जुड़े हुए व्यक्ति” थे.

बीआरएस की हार के बाद राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ, जिसके बाद बीआरएस के नेताओं ने राज्यपाल की इस कार्रवाई के विरोध में याचिका दाखिल की.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि राज्यपाल द्वारा मंत्रिपरिषद की सिफारिशों को नहीं मानना “व्यक्तिगत संतुष्टि की कमी” के कारण था, न कि सिफारिश में किसी अस्पष्टता के कारण, जो कि मनमाना और अवैध है.

याचिकाकर्ता ने राज्यपाल द्वारा दिए गए फैसले को दुर्भावनापूर्ण, मनमाना, असंवैधानिक और उनके क्षेत्राधिकार के बाहर का हिस्सा बताया.

बता दें कि बीते 27 जनवरी को राज्यपाल ने एम. कोदंडराम और पत्रकार आमेर अली खान को विधानपरिषद का सदस्य नियुक्त किया था.

इस संबंध में गजट अधिसूचना भी जारी की गई.

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