राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस : अनुच्छेद 39(ए) से लोक अदालत तक, कैसे भारत ने हर नागरिक के लिए न्याय को सुलभ बनाया?

New Delhi, 8 नवंबर . हर साल 9 नवंबर को ‘राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. यह सुनिश्चित करने का संकल्प है कि कानून की नजर में सभी बराबर हों.

India का संविधान हर नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन और न्याय का अधिकार देता है. इसी भावना को मूर्त रूप देने के लिए, 1976 में संविधान के अनुच्छेद 39(ए) को जोड़ा गया. यह अनुच्छेद स्पष्ट रूप से कहता है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि कानूनी प्रणाली इस प्रकार काम करे कि सामाजिक, आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण किसी भी नागरिक को न्याय पाने के अवसर से वंचित न होना पड़े.

यह मुफ्त कानूनी सहायता के प्रावधान को अनिवार्य बनाता है.

लेकिन, कानून को कागज से जमीन पर उतारने में लंबा समय लगा. अदालतों का खर्च, वकीलों की फीस और दस्तावेजीकरण की प्रक्रियाएं ऐसी बाधाएं थीं, जो गरीबों को न्याय से दूर रखती थीं.

वर्ष 1987, वह ऐतिहासिक मोड़ था, जब India की संसद ने कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 पारित किया. यह कानून 9 नवंबर, 1995 को लागू हुआ. इसी दिन की याद में, हर साल 9 नवंबर को राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस मनाया जाता है.

इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) की स्थापना करना था. एनएएलएसए देश के सबसे गरीब और जरूरतमंद तबके को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए शीर्ष निकाय है. इसके संरक्षक India के मुख्य न्यायाधीश होते हैं और इसके कार्यकारी अध्यक्ष Supreme court के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश होते हैं.

यह संस्था एक मजबूत त्रि-स्तरीय ढांचे पर काम करती है, जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर एनएएलएसए, राज्य स्तर पर राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (एसएलएसए) और जिला स्तर पर जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) शामिल हैं.

यह ढांचा सुनिश्चित करता है कि कानूनी सहायता की पहुंच देश के हर जिले और हर तहसील तक हो. राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस हमें उन प्रमुख उपकरणों की याद दिलाता है, जिनके माध्यम से न्याय को सुलभ बनाया जाता है.

एनएएलएसए उन लोगों को कानूनी सहायता प्रदान करता है जो कानूनी प्रतिनिधित्व का खर्च नहीं उठा सकते. इसमें महिलाएं और बच्चे (आय की सीमा के बिना), अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्य, हिरासत में लिए गए व्यक्ति या हिरासत में विचाराधीन कैदी, दिव्यांग और वे लोग जिनकी वार्षिक आय Government द्वारा निर्धारित सीमा से कम है, शामिल हैं.

इसके अलावा इसमें परामर्श, अदालती शुल्क और याचिकाएं तैयार करने का पूरा खर्च भी शामिल है.

एनएएलएसए ने हजारों ऐसे स्वयंसेवकों का एक दल तैयार किया है, जिन्हें पारा-कानूनी स्वयंसेवक (पीएलवी) कहते हैं. ये स्वयंसेवक समुदाय और कानूनी प्राधिकरण के बीच पुल का काम करते हैं. ये गांवों और दूरदराज के क्षेत्रों में जाकर लोगों को उनके अधिकारों के बारे में बताते हैं और उन्हें कानूनी सहायता प्राप्त करने की प्रक्रिया समझाते हैं.

एनएएलएसए की सबसे क्रांतिकारी पहल लोक अदालत है. यह विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने का एक वैकल्पिक तरीका है. लोक अदालत में कोई मुकदमा नहीं होता, कोई लंबी बहस नहीं होती. यहां न्यायाधीश, वकील और पक्षकार एक साथ बैठकर समझौता करते हैं.

मामले तेजी से निपटते हैं, जिससे वर्षों तक चलने वाले मुकदमों से राहत मिलती है. लोक अदालत का फैसला अंतिम होता है और इस पर कहीं और अपील नहीं की जा सकती, जिससे मुकदमेबाजी हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है.

यदि कोई मामला अदालत से लोक अदालत में आता है, तो जमा की गई अदालती फीस वापस कर दी जाती है.

मोटर दुर्घटना, बैंक ऋण और वैवाहिक विवाद जैसे लाखों मामले लोक अदालतों के माध्यम से हर साल सुलझाए जाते हैं, जिससे देश की न्याय प्रणाली पर बोझ भी कम होता है.

राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस हमें याद दिलाता है कि न्याय केवल अमीरों या शक्तिशाली लोगों का विशेषाधिकार नहीं है. यह एक मौलिक मानव अधिकार है जिसे हर नागरिक तक पहुंचाना सामूहिक कर्तव्य है.

वीकेयू/एबीएम