नई दिल्ली, 20 मार्च . आयुर्वेद में विधारा को एक शक्तिशाली औषधि माना गया है, जो विभिन्न रोगों में फायदेमंद साबित होती है. इसका उपयोग आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा में सदियों से किया जा रहा है. आधुनिक शोध भी इसके औषधीय गुणों की पुष्टि करते हैं, जिससे यह हड्डी, त्वचा, यौन स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन और पाचन संबंधी रोगों में लाभकारी मानी जाती है.
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन द्वारा दिसंबर 2010 में की गई एक रिसर्च से पता चलता है कि विधारा में सूजन-रोधी और दर्द निवारक गुण होते हैं, जो जोड़ों के दर्द, गठिया और सूजन से राहत दिलाने में मदद करते हैं. शोध बताते हैं कि इसका सेवन करने से हड्डियों और मांसपेशियों की मजबूती बनी रहती है.
शोध के अनुसार, विधारा में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण होते हैं, जो दाद, खुजली, एक्जिमा और सोरायसिस जैसी त्वचा संबंधी समस्याओं में राहत देते हैं. इसके पत्तों का लेप लगाने से घाव जल्दी भरते हैं.
आयुर्वेद में विधारा को प्राकृतिक वियाग्रा के नाम से भी जाना जाता है. शोध से पता चला है कि यह पुरुषों में शुक्राणुओं की गुणवत्ता और संख्या बढ़ाने में मदद कर सकता है. यह महिलाओं में हार्मोनल संतुलन बनाए रखने में सहायक है.
विधारा में मानसिक तनाव को कम करने वाले गुण पाए जाते हैं. यह तंत्रिका तंत्र को शांत करता है और अनिद्रा की समस्या को दूर करता है. यह ब्रेन फंक्शन को बेहतर बनाकर याददाश्त और एकाग्रता बढ़ाने में भी मदद करता है.
विधारा पेट की बीमारियों के लिए एक रामबाण औषधि मानी जाती है. यह कब्ज, अपच, पेट में गैस और पेट दर्द को दूर करने में मदद करती है. इसके नियमित सेवन से पाचन क्रिया बेहतर होती है.
शोध में यह पाया गया है कि विधारा का सेवन ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखने में मदद करता है. यह हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए भी फायदेमंद माना जाता है.
एक्सपर्ट बताते हैं कि विधारा की जड़ या पत्तों का पाउडर सुबह-शाम दूध या गुनगुने पानी के साथ लिया जा सकता है. इसके साथ ही त्वचा रोगों में इसकी पत्तियों को पीसकर लेप बनाकर लगाया जा सकता है. इसकी जड़ को पानी में उबालकर पीने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है.
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डीएससी/केआर