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New Delhi, 22 नवंबर . शीत ऋतु का मौसम मां और शिशु दोनों के लिए सावधानी वाला समय होता है. खासकर मां को अपने शिशु के लिए खास देखभाल की आवश्यकता होती है.
शीत ऋतु में सिर्फ गर्म कपड़े पहनाकर ही शिशु का ध्यान नहीं रखा जाता, बल्कि कुछ अन्य आयुर्वेदिक तरीकों से शिशु को पोषण भी दिया जा सकता है.
आयुर्वेद में माना गया है कि शीत ऋतु के समय बच्चे के स्वभाव में भी परिवर्तन आता है. शिशु थोड़ा चिड़चिड़ा हो जाता है, त्वचा में बहुत रूखापन आ जाता है, बालों में रूसी हो जाती है और नींद भी प्रभावित होती है. ऐसे में शिशु को स्नेह के साथ-साथ गर्माहट और तेल मालिश की जरूरत होती है.
आयुर्वेद में शिशु अभ्यंग को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. इसके लिए एक दिन छोड़कर बादाम (जो कड़वा न हो) के तेल से बच्चे की मालिश करनी चाहिए. पहले सिर, फिर हाथ, उसके बाद पैर, छाती और पीठ की मालिश करनी चाहिए. ये मालिश करने का एक सही तरीका है. ऐसा करने से शिशु के शरीर में रक्त संचार बढ़ता है, हड्डियों को पोषण मिलता है, और शरीर को गर्माहट भी मिलती है. मालिश करने के बाद शिशु को सूती कपड़े में या तौलिये में लपेटें और धूप दिखाना न भूलें.
शीत ऋतु में शिशुओं के सिर पर रूखापन जम जाता है जो स्कैल्प से बुरी तरीके से चिपक जाता है. ऐसे में हफ्ते में दो बार शिशु के सिर पर गुनगुने तेल से मालिश जरूर करें और हल्के हाथ से रूसी को हटाने की कोशिश करें. ऐसा करने से शिशु को आराम मिलेगा और उसे अच्छे से नींद भी आएगी. अभ्यंग के तुरंत बाद शिशु को कभी नहीं नहलाना चाहिए. तकरीबन आधे घंटे बाद शिशु को हमेशा हल्के गुनगुने पानी से सौम्यता के साथ नहलाना चाहिए, जिसके बाद शिशु को पहले सूती कपड़े पहनाएं और फिर बाद में सर्दी के ऊनी कपड़े पहनाएं.
शिशु की त्वचा बहुत कोमल होती है. ऊनी या गर्म कपड़े उनकी त्वचा पर खुजली की समस्या कर सकते हैं.
शिशु की मानसिक और शारीरिक वृद्धि के लिए नींद बहुत जरूरी है. मालिश और नहाने के बाद शिशु को अच्छी नींद आती है. ऐसे में मालिश के बाद माताएं बच्चों को स्तनपान जरूर कराएं. साथ ही जब शिशु सो जाए तो उसके तलवों पर गुनगुना घी जरूर लगाएं, इससे शिशु के शरीर में गर्माहट बनी रहेगी और तलवे भी कोमल रहेंगे.
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पीएस/एएस