आईएएनएस रिव्यू: आखिर कब तक बर्दाश्त करेंगे बलात्कार के मामले, समाज को आइना दिखाती हैं ‘दशमी’,

फिल्म: दशमी

फिल्म की अवधि: 155 मिनट

कलाकार: वर्धन पुरी, गौरव सरीन, अंकित खेड़ा, दलजीत कौर और राजेश जैस

लेखक: निर्देशक शांतनु अनंत तांबे

गीतकार और संगीतकार: शब्बीर अहमद

निर्माता: संजना विनोद तांबे, भरणी रंग और सारिका विनोद तांबे

रेटिंग: 4 स्टार

मुंबई, 15 फरवरी . कुछ फिल्मों का प्रभाव इतना बड़ा होता है कि वह आपके दिमाग पर लंबे समय तक रहता है और आपको अंदर तक झकझोर भी देता है.

अच्छाई बनाम बुराई की कहानी सदियों पुरानी है, लेकिन ‘दशमी’ में यह एक समकालीन मोड़ लेती है और कई महत्वपूर्ण सवाल उठाती है जिन्हें हम अब आदतन सबसे सामान्य तरीके से नजरअंदाज कर देते हैं. ‘दशमी’ समाज के लिए एक आइना की तरह है, जो अपना कुरूप चेहरा दिखाती है और बदलाव का आह्वान करती है.

हमारे समाज में नाबालिगों के साथ बलात्कार की खबरें इन दिनों इतनी आम हो गई हैं कि धीरे-धीरे एक समाज के रूप में हम ऐसे अपराधों के प्रति सुन्न और उदासीन होते जा रहे हैं. जब कानून ऐसे अपराधियों को पकड़ने में असमर्थ हो और आरोपी अपना रोजमर्रा का काम करते हुए अगले शिकार की तलाश में खुलेआम घूम रहा हों, तो इसका समाधान क्या है?

फिल्म ऐसे शक्तिशाली बलात्कार के आरोपियों को अपने साहसी और नए तरीकों से सबक सिखाने के लिए लोगों को एकजुट होने के लिए प्रेरित करती है. फिल्म काफी ईमानदारी और मेहनत से बनाई गई है, जो स्क्रीन पर नजर आती है.

‘दशमी’ उन फिल्मों में से एक है जिसे आने वाले सालों तक याद किया जाएगा और जिसके बारे में बात की जाएगी. फिल्म आपको यह पूछने पर मजबूर कर देगी कि हम अपने देश में इस बलात्कार के मामलों को कब तक बर्दाश्त करते रहेंगे? हम कब तक पीड़ितों और उनके अभिभावकों की पीड़ा को नजरअंदाज करते रहेंगे? और एक समाज के रूप में हम इसके बारे में कुछ क्यों नहीं कर पा रहे हैं?

फिल्म की कास्टिंग शानदार है. प्रत्येक अभिनेता ने अपनी भूमिकाएं शानदार ढंग से निभाई हैं. प्रत्येक अभिनेता द्वारा किया गया प्रयास स्क्रीन पर साफ नजर आता है.

वर्धन पुरी, गौरव सरीन, अंकित खेड़ा, दलजीत कौर, राजेश जैस, चारुल मलिक, खुशी हजारे, मनोज सिंह टाइगर, संजय पांडे, राम नरेश दिवाकर, तीर्थ भानुशाली, ऐश्वर्या अनिष्का, स्वाति सेमवाल और शाबाज़ बदी सभी अपने-अपने किरदार में बखूबी निखरकर आए हैं.

‘दशमी’ में छोटी-छीटी चीजों पर ध्यानपूर्वक काम किया गया है. चाहे राइटिंग हो, एक्टिंग हो, सिनेमाटोग्राफी हो, एडिटिंग हो, म्यूजिक हो या स्टोरीटेलिंग हो, फिल्म अंत तक दर्शकों को बांधे रखती है. इस दिल दहला देने वाले ड्रामा के निर्देशक शांतनु अनंत तांबे ने शानदार काम किया है, वह लेखक भी हैं. यह फिल्म उनकी क्षमता को दर्शाती है.

लोगों को यह विचारोत्तेजक फिल्म ‘दशमी’ को जरुर देखना चाहिए. यह न्याय और नैतिकता से प्रेरित समाज के विचार का प्रचार करता है जिसे बड़े पर्दे पर अनुभव करने की आवश्यकता है.

पीके/