साइटिका हो या पथरी, भुजंगासन से पाएं आराम, जानें इसे करने का सही तरीका

नई दिल्ली, 30 मई . जब बात शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखने की हो, तो योग और आयुर्वेद का नाम सबसे पहले आता है. सदियों पुरानी इन भारतीय विधाओं ने न केवल हमारी जीवनशैली को बेहतर बनाया है, बल्कि बीमारियों से लड़ने की ताकत भी दी है. योग में शरीर को मजबूत और लचीला बनाए रखने के लिए योगासनों का अहम स्थान है. इन्हीं योगासनों में एक है- भुजंगासन, जिसे अंग्रेज़ी में ‘कोबरा पोज’ कहा जाता है. इस आसन में धड़ का पोज फन फैलाए हुए सांप की तरह होता है, और यही इसकी खास पहचान है. भुजंगासन कोई साधारण योगासन नहीं है, यह पैरों की उंगलियों से लेकर सिर तक शरीर के हर हिस्से पर असर डालता है. चलिए आपको बताते हैं कि नियमित रूप से भुजंगासन करने के फायदे-

योग विशेषज्ञों के अनुसार, भुजंगासन पीठ की मांसपेशियों को मजबूत और स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है. इस आसन के नियमित अभ्यास से रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है और शरीर में लचीलापन बढ़ता है. भुजंगासन किडनी की पथरी की समस्या के इलाज में फायदेमंद माना जाता है. इसका नियमित रूप से अभ्यास करने से किडनी पर जोर पड़ता है, जिससे किडनी में मौजूद विषाक्त पदार्थ निकलने लगते हैं और इसकी कार्यक्षमता में सुधार होता है. यह छाती, कंधों और पेट की मांसपेशियों को फैलाता है, जिससे शरीर में खिंचाव आता है और ताकत बढ़ती है. इसे करने से श्वसन तंत्र मजबूत होता है. इसके अलावा यह मानसिक तनाव और थकान को दूर करने में भी सहायक होता है. नियमित अभ्यास से मन शांत रहता है और शरीर में फुर्ती बनी रहती है.

भुजंगासन साइटिका की समस्या को कम करता है और अस्थमा के लक्षणों को भी घटाता है. यह प्रजनन प्रणाली को मजबूत करता है और महिलाओं में अनियमित मासिक धर्म की समस्या को ठीक करने में मदद करता है. भुजंगासन करने से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है, जिससे चेहरे पर चमक आती है और त्वचा निखरती है. यह आसन आसान है और रोजाना करने से शरीर में ऊर्जा और ताजगी बनी रहती है.

चलिए अब आपको बताते हैं भुजंगासन करने का सही तरीका-

भुजंगासन करने के लिए सबसे पहले पेट के बल सीधा लेट जाएं और पैरों के बीच थोड़ी दूरी रखें. अब अपने दोनों हाथों को धीरे-धीरे छाती के पास लाएं और हथेलियों को जमीन पर टिका दें. इसके बाद गहरी सांस लेते हुए अपनी नाभि के हिस्से को ऊपर उठाएं और सिर को पीछे की ओर ले जाते हुए ऊपर छत या आसमान की तरफ देखें. इस स्थिति में आपकी पीठ धीरे-धीरे ऊपर की (एक्सटेंशन पोजीशन में) ओर मुड़ेगी. इस मुद्रा में कुछ देर तक बने रहें और सामान्य रूप से सांस लेते रहें. यह स्थिति रीढ़ की हड्डी और पेट की मांसपेशियों के लिए लाभकारी होती है. फिर धीरे-धीरे वापस पहले वाली स्थिति में आ जाएं और कुछ समय के लिए शरीर को ढीला छोड़ दें. इस प्रक्रिया को तीन से चार बार दोहराएं. ये आसन करने से शरीर में लचीलापन बढ़ता है और तनाव कम होता है.

पीके/एएस