नई दिल्ली, 3 नवंबर . भारत में बीते 10 वर्षों में पूंजी-प्रधान उद्योगों जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल, मशीनरी में रोजगार के अवसरों में बढ़त देखने को मिली है. साथ ही इन क्षेत्रों से निर्यात में भी वृद्धि हुई है. यह जानकारी गोल्डमैन सैश की एक रिपोर्ट में दी गई.
रिपोर्ट में बताया गया कि इन सेक्टरों में तेजी आई है, क्योंकि सरकार इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और दवा उत्पादों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. इसके परिणामस्वरूप विकसित बाजारों में इन सेक्टरों से निर्यात में दोहरे अंकों की वृद्धि हुई है.
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में श्रम प्रधान क्षेत्रों की तुलना में पूंजी प्रधान क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में अधिक वृद्धि हुई है.
रिपोर्ट के मुताबिक, बीते 10 वर्षों में पूंजी प्रधान उपक्षेत्रों जैसे मैन्युफैक्चरिंग में केमिकल प्रोडक्ट्स और मशीनरी में रोजगार में अधिक बढ़ोतरी हुई है. इसके मुकाबले श्रम प्रधान क्षेत्रों जैसे टेक्सटाइल, फुटवेयर, फूड और बेवरेज में वृद्धि दर कम रही है.
रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया कि पूंजी-प्रधान क्षेत्र में रोजगार में अधिक वृद्धि होने के बाद भी देश में नौकरियों में श्रम आधारित क्षेत्र की हिस्सेदारी अधिक है.
देश का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बड़े बदलाव से गुजर रहा है. सरकार द्वारा प्रतिस्पर्धा और आर्थिक विकास दर बढ़ाने के लिए तेजी से सुधारों को लागू किया जा रहा है.
प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) जैसी स्कीम से देश में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को काफी सहारा मिला है. इसे 2020 में लॉन्च किया गया था. पीएलआई स्कीम 14 सेक्टरों के लिए लागू है. इसमें फार्मा से लेकर स्पेशिएलिटी स्टील जैसे सेक्टर शामिल है.
पीएलआई स्कीम के तहत दिए जाने वाले प्रोत्साहनों का उद्देश्य उत्पादन क्षमता को बढ़ाना, रोजगार के अवसर पैदा करना, निर्यात को बढ़ावा देना और आयात पर निर्भरता को कम करना है, साथ ही भारत को आत्मनिर्भर बनाना है.
जून 2024 तक पीएलआई स्कीमों ने 1.32 लाख करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया है. साथ ही मैन्युफैक्चरिंग आउटपुट में 10.9 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है. इसके अतिरिक्त पीएलआई से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 8.5 लाख नौकरियां पैदा हुई हैं.
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एबीएस/