खेड़ा, 20 अप्रैल . लोकसभा चुनाव निकट आते ही गुजरात का खेड़ा निर्वाचन क्षेत्र राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया है. यहां भाजपा व कांग्रेस एक और चुनावी मुकाबले के लिए हैं.
भारत के पहले उप प्रधानमंत्री वल्लभभाई पटेल के जन्मस्थान और तंबाकू की खेती के लिए प्रसिद्ध खेड़ा गुजरात के राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रभावशाली क्षेत्र रहा है.
अपने ऐतिहासिक महत्व और जीवंत राजनीतिक गतिविधियों के लिए मशहूर इस क्षेत्र में भाजपा के निवर्तमान सांसद देवुसिंह जेसिंगभाई चौहान और कांग्रेस उम्मीदवार कालूसिंह डाभी के बीच मुकाबला है.
वर्तमान में संचार राज्य मंत्री चौहान 17वीं लोकसभा में खेड़ा का प्रतिनिधित्व करते हुए, गुजरात की राजनीति में एक प्रमुख शख्शियत रहे हैं.
इस क्षेत्र में चौहान की राजनीतिक यात्रा 2014 के आम चुनाव में जीत के साथ शुरू हुई. यहां उन्होंने भाजपा उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की.
2019 के चुनाव में उन्होंने 714,572 वोट हासिल करतेे हुए 367,145 वोटों के अंतर से जीत हासिल की.
उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के बिमल शाह को 347,427 वोट मिला था.
इस साल 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक समारोह के अवसर पर खेड़ा में “मांस-निषेध” दिवस मनाने की घोषणा कर देवुसिंह चर्चा में आए थे.
दूसरी ओर, कांग्रेस ने स्थानीय समुदाय में अपनी गहरी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ नेता कालूसिंह डाभी पर दाव लगाया है.
66 वर्षीय डाभी ने अपना राजनीतिक जीवन एक सरपंच (ग्राम प्रधान) के रूप में शुरू किया और कांग्रेस पार्टी में अपनी पहचान बनाई. उन्होंने कठलाल तालुका इकाई के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया.
उन्होंने राज्य विधानसभा में कपडवंज का भी प्रतिनिधित्व किया. 2017 के राज्य विधानसभा के चुनाव में उन्होंने 27 हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल की.
ऐतिहासिक नाम कैरा से भी जाना जाने वाले खेड़ा की न केवल राजनीतिक पहचान है, बल्कि सांस्कृतिक और कृषि की दृष्टि से भी यह इलाका महत्वपूर्ण है.
इस निर्वाचन क्षेत्र में दसक्रोई, ढोलका, मटर, नडियाद, महुधा और कपडवंज सहित सात विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं.
खेड़ा में उल्लेखनीय जाट आबादी है. इस जाति के लोग प्रदेश में मुख्य रूप से बनासकांठा, मेहसाणा, सबरभांथा और कच्छ जिलों में रहते हैं.
खेड़ा में जैन धर्म की एक विशेष पहचान है. जिले में राजपूतों में चौहान सबसे अधिक हैं.
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