नई दिल्ली, 30 दिसंबर . सोमवार को आई एक रिपोर्ट के अनुसार, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में लैब में बनाए गए मांस को लेकर लोगों की रुचि तेजी से बढ़ रही है.
मांस प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन का एक प्रमुख स्रोत है, जो शरीर की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करता है. लेकिन पारंपरिक पशुपालन तकनीकें बढ़ती मांग को पूरा करने में असमर्थ साबित हो रही हैं. इस स्थिति में, लैब में उगाया गया मांस एक प्रभावी प्रोटीन विकल्प बनकर उभरा है.
ग्लोबल डेटा की रिपोर्ट के अनुसार, एशिया-प्रशांत के देश तकनीकी प्रगति और टिकाऊ तरीकों को लेकर बढ़ती जागरूकता के कारण लैब में मांस उत्पादन के अवसर तलाश रहे हैं.
पारंपरिक पशुपालन पद्धतियां पर्यावरणीय समस्याएं, जैसे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन, पानी की कमी और भूमि के अत्यधिक उपयोग, को बढ़ावा देती हैं.
बैनगरी सुस्मिता, ग्लोबल डेटा में उपभोक्ता विश्लेषक ने बताया कि करीब तीन-चौथाई कृषि भूमि का उपयोग पशुपालन के लिए किया जाता है, जिससे अनाज की खेती के लिए बहुत कम जगह बचती है. इसके अलावा, मांस उत्पादन खाद्य उद्योग से ग्रीनहाउस गैसों का बड़ा कारण बनता है. वहीं, लैब में बना मांस टिकाऊ है और पर्यावरण पर इसका कम प्रभाव पड़ता है.
रिपोर्ट ने उपभोक्ताओं की पसंद में बदलाव का भी उल्लेख किया. सुस्मिता के अनुसार, लोग वैकल्पिक प्रोटीन स्रोतों की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे लैब में बने मांस के प्रति स्वीकार्यता बढ़ रही है.
सिंगापुर को इसका सबसे अच्छा उदाहरण माना गया है. सिंगापुर ने इस नए प्रकार के खाद्य पदार्थों को अपनाते हुए खुद को वैश्विक नेतृत्व की ओर ले जाने का अवसर देखा है.
ग्लोबल डेटा के सर्वे में पाया गया कि एशिया और ऑस्ट्रेलिया के 81% उपभोक्ता खाद्य और पेय पदार्थ खरीदते समय उनके पर्यावरण-अनुकूल होने पर ध्यान देते हैं.
सुस्मिता ने कहा कि लैब में बना मांस ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करता है, जानवरों के प्रति नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देता है और उच्च प्रोटीन वाले भोजन की बढ़ती मांग को पूरा करता है.
रिपोर्ट में बताया गया कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा और स्थिरता के लक्ष्यों को पाने के लिए इस तकनीक में निवेश और कानूनों को बढ़ावा दिया जाएगा. इससे क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और वैज्ञानिक नवाचार को बल मिलेगा.
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