नई दिल्ली, 5 अक्टूबर . आप कभी मथुरा और वृंदावन जरूर गए होंगे. मथुरा से वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर जाते हुए रास्ते में जिले का सबसे भव्य मंदिर दिखाई देता है. इस मंदिर का नाम प्रेम मंदिर है. इसे दुनिया के सबसे भव्य मंदिरों में से एक माना जाता है.
54 एकड़ पर बने भगवान राधा कृष्ण और सीता राम को समर्पित इस मंदिर का निर्माण जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने कराया. 150 करोड़ रुपये की लागत से बने इस मंदिर का निर्माण कार्य 2012 तक चला, जिसे कृपालु महाराज की कृपा से बनवाया गया.
जगद्गुरु कृपालु महाराज का जन्म 6 अक्टूबर 1922 को शरद पूर्णिमा की रात में प्रतापगढ़ जिले के मनगढ़ में हुआ. उनका असली नाम राम कृपालु त्रिपाठी था. उनके माता-पिता का नाम भगवती देवी और ललिता प्रसाद था. कृपालु जी महाराज ने गांव में 7वीं कक्षा तक की पढ़ाई के बाद मध्य प्रदेश में आगे की शिक्षा प्राप्त की. केवल 14 साल की उम्र में उन्होंने तृप्त ज्ञान हासिल किया और उसके बाद उनका विवाह हुआ. उन्होंने पत्नी के साथ मिलकर गृहस्थ जीवन जीवन बिताया. उनकी पांच संताने थीं. दो बेटे, घनश्याम और बालकृष्ण त्रिपाठी. साथ ही तीन बेटियां, विशाखा, श्यामा और कृष्णा.
कृपालु महाराज ने आध्यात्मिक मार्ग अपनाया और राधा-कृष्ण की भक्ति में डूब गए. उनके प्रवचन और कथाओं को सुनने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने लगी, इससे उनकी पहचान धीरे-धीरे देश-विदेश में फैल गई. 14 जनवरी 1957 को वाराणसी की काशी विद्वत परिषद ने उन्हें मकर संक्रांति के अवसर पर “जगद्गुरु” की उपाधि से सम्मानित किया. तब उनकी उम्र केवल 34 वर्ष थी.
एक प्रसिद्ध हिंदू अध्यात्मिक प्रवचनकर्ता के रूप में, कृपालु जी महाराज ने वेदों, उपनिषदों, पुराणों, गीता और अन्य शास्त्रों का गहन ज्ञान प्राप्त किया. उनके प्रवचनों में संस्कृत मंत्रों का उल्लेख होता था, जो उनकी अद्वितीय स्मरण शक्ति और शास्त्रों के प्रति उनके गहरे ज्ञान को दर्शाता है.
उन्होंने मथुरा के निकट वृंदावन में प्रेम मंदिर का निर्माण किया, जो 11 वर्षों में पूर्ण हुआ. इस मंदिर का निर्माण इटालियन करारा संगमरमर से किया गया. इसमें उत्तर प्रदेश और राजस्थान के एक हजार शिल्पकारों का योगदान रहा. कृपालु जी महाराज ने इस मंदिर का शिलान्यास 14 फरवरी 2001 को किया, और यह 17 फरवरी 2012 को पूर्ण हुआ.
कृपालु जी महाराज का निधन 15 नवंबर 2013 को 91 वर्ष की उम्र में हुआ. सिर में चोट लगने के कारण वे कोमा में चले गए थे और बाद में गुड़गांव के एक निजी अस्पताल में उनका निधन हुआ.
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