नई दिल्ली, 27 फरवरी . दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक विवादों में आय छुपाने के प्रचलित मुद्दे पर खेद व्यक्त किया है. अदालत ने कहा है कि भरण-पोषण भुगतान से बचने के लिए पक्षकारों द्वारा अपनी वास्तविक कमाई नहीं बताने की आम प्रथा है.
न्यायमूर्ति नवीन चावला ने हाल के एक आदेश में भरण-पोषण दायित्वों के निर्धारण के लिए पति-पत्नी की वास्तविक आय का आकलन करने में अदालतों के सामने आने वाली चुनौतियों की ओर इशारा किया.
अदालत ने ऐसे आकलन में अंतर्निहित कठिनाई को ध्यान में रखते हुए पति की आय का अनुमान लगाने के लिए उपलब्ध साक्ष्यों पर भरोसा करने की आवश्यकता पर बल दिया.
न्यायमूर्ति चावला की टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान आई, जहां एक पति ने पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसे अपनी पत्नी और नाबालिग बेटे को अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया था.
पति की शुरुआती घोषणा 24,000 रुपये प्रति माह की थी, जिसे बाद में संशोधित कर 14,000 रुपये प्रति माह कर दिया गया, लेकिन देश भर में संगीत अकादमी चलाने और प्रदर्शन में उनकी भागीदारी को देखते हुए, पारिवारिक अदालत ने उनकी आय 70,000 रुपये प्रति माह निर्धारित की.
हाईकोर्ट ने पति के दावों को खारिज करते हुए ऐसे मामलों में तथ्यात्मक विचार की जरूरत पर बल देते हुए फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा.
हालांकि, इसने पति को परिस्थितियों में किसी भी बदलाव विशेष रूप से पत्नी की रोजगार स्थिति के संबंध में फैमिली कोर्ट के समक्ष एक उचित आवेदन के माध्यम से संबोधित करने का निर्देश दिया.
कार्यवाही का समापन करते हुए उच्च न्यायालय ने पति को पारिवारिक अदालत के आदेश के अनुसार आठ सप्ताह के भीतर सभी बकाया गुजारा भत्ता का भुगतान करने का निर्देश दिया.
इसने पति को बदली हुई परिस्थितियों के आधार पर अंतरिम रखरखाव आदेश में संशोधन की मांग करने का अवसर भी दिया, जिससे चल रहे वैवाहिक विवाद में निष्पक्ष और न्यायसंगत समाधान सुनिश्चित हो सके.
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एसएचके/एबीएम