‘ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम’ का इलाज दिमाग से जुड़ा! अध्ययन में खुला राज

New Delhi, 18 सितंबर . दुनिया भर में लाखों लोग ‘ताकोत्सुबो कार्डियोमायोपैथी’ से पीड़ित हैं. इसे ही ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम के नाम से जाना जाता है. इस बीमारी के कारण हृदय की मांसपेशियों का आकार बदल जाता है और वे अचानक कमजोर हो जाती हैं. यह आमतौर पर किसी अपने को खोने जैसे गंभीर भावनात्मक या शारीरिक तनाव के कारण होता है.

‘ताकोत्सुबो सिंड्रोम’ हृदय गति रुकने और समय से पहले मृत्यु का कारण भी बन सकता है. पहले इसके इलाज को लेकर असमंजस की स्थिति थी लेकिन अब डॉक्टरों का मानना ​​है कि इलाज संभव है.

‘ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम’ के लक्षण हार्ट अटैक जैसे ही होते हैं. कुछ लोगों को हार्ट फेलियर का अनुभव होता है, जिसके परिणामस्वरूप थकान जैसे दुर्बल करने वाले लक्षण दिखाई देते हैं. ये मानसिक और भावनात्मक स्थिति से उत्पन्न होता है, इसलिए माना जाता रहा है कि इसका कोई इलाज नहीं है.

लेकिन अब, डॉक्टरों के पास इसका जवाब हो सकता है. ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम को लेकर दुनिया के पहले कंट्रोल्ड ट्रायल में पाया गया है कि 12 हफ्ते की कोग्नेटिव बिहेवियरल थेरेपी ( ) या तैराकी, साइकिलिंग और एरोबिक्स से मरीजों के दिल को ठीक होने में मदद मिल सकती है.

इस सफलता का विवरण मैड्रिड में यूरोपियन सोसाइटी ऑफ कार्डियोलॉजी के वार्षिक सम्मेलन में किया गया.

एबरडीन विश्वविद्यालय में कार्डियोलॉजी के क्लिनिकल लेक्चरर डॉ. डेविड गैंबल ने कहा, “ताकोत्सुबो सिंड्रोम में, हृदय पर गंभीर असर पड़ता है. इसका प्रभाव मरीज पर जीवन भर पड़ा रह सकता है.”

गैंबल ने कहा कि परीक्षण के आंकड़ों ने “ब्रेन-हार्ट एक्सिस” के महत्व को उजागर किया. बोले, “यह दर्शाता है कि संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (मनोचिकित्सक के सेशन) या व्यायाम करने से मरीजों को ठीक होने में मदद मिल सकती है. दोनों ही बहुत किफायती उपाय हैं, और हमें उम्मीद है कि आगे के अध्ययनों से इससे जूझ रहे लोगों की मदद हो सकेगी.”

इस अध्ययन में ताकोत्सुबो सिंड्रोम से पीड़ित 76 मरीजों को शामिल किया गया, जिनमें से 91 फीसदी महिलाएं थीं, जिनकी औसत आयु 66 वर्ष थी. मरीजों को उनकी इच्छा के मुताबिक , व्यायाम कार्यक्रम या फिर हेल्थकेयर के लिए चुना गया था. सभी को उनके कार्डियोलॉजिस्ट की ओर से सुझाए उपायों को जारी रखने को भी कहा गया.

समूह के लिए शोधकर्ताओं ने 12 सत्र आयोजित किए और जरूरत पड़ने पर दैनिक सहायता भी प्रदान की गई.

व्यायाम करने वाला समूह 12-सप्ताह के व्यायाम पाठ्यक्रम का हिस्सा बना. जिसमें साइकिलिंग, एरोबिक्स और तैराकी जैसे शारीरिक श्रम शामिल था, और हर हफ्ते सत्रों की संख्या और तीव्रता में धीरे-धीरे वृद्धि होती गई.

शोधकर्ताओं ने 31पीमैग्नेटिक रेजोनेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी नामक एक इमेजिंग तकनीक का उपयोग किया, जिससे उन्हें यह अध्ययन करने में मदद मिली कि मरीज हृदय ऊर्जा का उत्पादन, भंडारण और उपयोग कैसे कर रहे हैं. और व्यायाम करने वाले समूहों में, मरीजों के हृदय को पंप करने के लिए उपलब्ध ईंधन की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो सामान्य देखभाल प्राप्त करने वाले लोगों में नहीं देखी गई.

प्राप्त करने वाले मरीज जो पहले छह मिनट में औसतन 402 मीटर तक की दूरी तय करते थे, वो बढ़कर 458 मीटर हो गया. व्यायाम कार्यक्रम पूरा करने वाले लोग जो छह मिनट में पहले 457 मीटर चल पाते थे, वो औसतन 528 मीटर की दूरी तय करने लगे.

विशेषज्ञों ने कहा कि निष्कर्ष बताते हैं कि ये उपचार आगे चलकर काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं.

इस परीक्षण को वित्तपोषित करने वाली ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन की नैदानिक ​​निदेशक डॉ. सोन्या बाबू-नारायण ने कहा: “ताकोत्सुबो सिंड्रोम एक विनाशकारी स्थिति हो सकती है जो किसी बड़ी जीवन घटना के कारण होने पर आपको बेहद संवेदनशील बना देती है.”

केआर/