लखनऊ,18 दिसंबर . भारतीय परंपरा में पतित पावनी, मोक्षदायिनी मानी जाने वाली मां गंगा को अविरल, निर्मल और प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए योगी सरकार इसके अधिग्रहण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्राकृतिक खेती और वनीकरण को बढ़ावा दे रही है.
सरकार की योजना है कि प्रदेश में गंगा जिन जिलों से गुजरती है उनके दोनों किनारों पर 10 किलोमीटर के दायरे में प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन दिया जाए. ऐसी खेती जिसमें रासायनिक खादों और जहरीले कीटनाशकों की जगह उपज बढ़ाने और फसलों के सामयिक संरक्षण के लिए पूरी तरह जैविक उत्पादों का प्रयोग हो ताकि रिसाव के जरिए रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का जहर गंगा में न घुल सके. गंगा के तटवर्ती 27 जनपदों में ‘नमामि गंगे योजना’ चलाई जा रही है जिसके अंतर्गत रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.
अद्यतन आंकड़ों के अनुसार गंगा के किनारे के 1000 से अधिक गांवों में प्राकृतिक खेती हो रही है. प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश के 54 जनपदों में परंपरागत कृषि विकास योजना संचालित की जा रही है. सरकार की मंशा निराश्रित गोवंश के नाते सबसे प्रभावित बुंदेलखंड को प्राकृतिक खेती के लिहाज से उत्तर प्रदेश का हब बनाना है. फिलहाल वहां करीब 24 हजार हेक्टेयर भूमि में प्राकृतिक खेती हो रही है.
योगी सरकार-1 से ही यह सिलसिला शुरू हो चुका है. जिन करीब 5,000 क्लस्टर्स में 18,000 से अधिक किसान लगभग 10 हजार हेक्टेयर में प्राकृतिक खेती कर रहे हैं, उनमें नमामि गंगा योजना के तहत करीब 3300 क्लस्टर्स में 6 लगभग 6500 हेक्टेयर में प्राकृतिक खेती हो रही है. इस खेती से जुड़े किसानों की संख्या एक लाख से अधिक है. इस तरह देखा जाए तो जैविक खेती का सर्वाधिक रकबा गंगा के मैदानी इलाके का ही है. इंडो-गंगेटिक मैदान का यह इलाका दुनिया की सबसे उर्वर भूमि में शुमार होता है.
इसी नाते ऑर्गेनिक फार्मिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से नवंबर 2017 में इंडिया एक्सपो सेंटर एंड मार्ट ग्रेटर नोएडा में आयोजित जैविक कृषि कुंभ में विशेषज्ञों ने यह संस्तुति की थी गंगा के मैदानी इलाकों को जैविक खेती के लिए आरक्षित किया जाए. चूंकि हर साल आने वाली बाढ़ के कारण इस क्षेत्र की मिट्टी बदलकर उर्वर हो जाती है, इस नाते पूरे क्षेत्र में जैविक खेती की बहुत संभावना है. यही वजह है कि योगी सरकार-2 में गंगा के किनारे के सभी जिलों में जैविक खेती को विस्तार दिया गया.
एक तरफ जहां योगी सरकार का जोर प्राकृतिक खेती के प्रोत्साहन पर है तो वहीं गंगा की गोद को हरा भरा करने के लिए सरकार पौधरोपण अभियान के दौरान इस क्षेत्र में अधिक से अधिक पौधारोपण भी करवा रही है. उल्लेखनीय है कि अपने दूसरे कार्यकाल के शुरुआत में ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने छह महीने में गंगा के किनारे 6,759 हेक्टेयर में वनीकरण का लक्ष्य रखा है. इसके लिए जिन जिलों से गंगा गुजरती है उनमें से 503 जगहों का चयन किया गया था. अब ये सिलसिला और आगे तक बढ़ चुका है.
गंगा के किनारे सभी जिलों में गंगा वन लगाए जाने हैं. कासगंज और कई और जगहों पर इसकी शुरुआत भी हो चुकी है. प्रयास यह है कि ये वन बहुपयोगी हों और इनमें संबंधित जिले के कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुसार परंपरागत से लेकर दुर्लभ और औषधीय प्रजाति के पौधे लगाए जाएं. कुछ ऐसी ही परिकल्पना गंगा सहित अन्य नदियों के किनारे बनने वाले बहुउद्देश्यीय तालाबों के किनारे भी होने वाले पौधरोपण के बारे में की गई है. मकसद एक है पर्यावरण संरक्षण. इससे होने वाले अन्य लाभ बोनस होंगे.
गंगा के अधिग्रहण क्षेत्र में हरियाली बढ़ाने के उद्देश्य से सरकार पहले से ही गंगा वन, गंगा तालाब और सिर्फ गंगा ही नहीं, गंगा की सहायक नदियों और अपेक्षाकृत प्रदूषित नदियों के किनारों पर भी सरकार की योजना सघन पौधरोपण की है. इससे न सिर्फ हरियाली बढ़ेगी, बल्कि प्राकृतिक तरीके से संबंधित नदियों का प्रदूषण भी दूर होगा. साथ ही कटान रुकने से उन क्षेत्रों में बाढ़ की समस्या या विकरालता भी कम होगी.
मालूम हो कि गंगा के मैदानी इलाके का अधिकांश इलाका उत्तर प्रदेश में ही है. गंगा की कुल लंबाई बांग्लादेश को शामिल करते हुए 2,525 किलोमीटर है. इसमें से भारत और उत्तर प्रदेश के क्रमशः 2,971 एवं 1,140 किलोमीटर का सफर गंगा नदी तय करती है. कुल मिलाकर गंगा नदी प्रदेश के बिजनौर, बदायू, अमरोहा, मेरठ, बुलंदशहर, अलीगढ़, फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर शहर, कानपुर देहात, फतेहपुर, प्रयागराज, मीरजापुर, वाराणसी, गाजीपुर, बलिया आदि से होकर गुजरती है.
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एसकके/एएस