भारत का नया ब्रह्मास्त्र है ‘योग कूटनीति’

नई दिल्ली, 20 जून . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को जम्मू-कश्मीर के दो दिन के दौरे पर रवाना हो गए हैं. पीएम मोदी 10वें ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ पर 21 जून को श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर (एसकेआईसीसी) में आयोजित कार्यक्रम में भाग लेंगे और योग प्रेमियों के साथ योगासन करेंगे.

नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की पहल की. उन्होंने सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र में ‘योग दिवस’ मनाने का प्रस्ताव रखा था.

इस प्रस्ताव का कई देशों ने अपना समर्थन दिया और बाद में 11 दिसंबर 2014 को यूएन ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. इसके बाद से हर साल 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ मनाने का निर्णय लिया गया. 2015 के बाद से ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ भारत के साथ-साथ विश्व भर के तमाम देशों के लोग एक साथ मिलकर योग करते हैं.

आज पूरे विश्व में 10वें ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ को लेकर एक अभूतपूर्व उत्साह और उमंग देखने को मिल रहा है. भारत में योग का इतिहास 5,000 वर्ष से भी अधिक पुराना है और हमें इसका सबसे पहला उल्लेख ऋग्वेद में देखने के लिए मिलता है. यह सनातन, बौद्ध और जैन धर्म जैसे कई भारतीय दर्शन प्रणालियों का एक ऐसा पहलू है, जिसने सदियों से हमारे आध्यात्मिक विकास को सुनिश्चित करने में एक बड़ी भूमिका निभाई.

कालांतर में विदेशी शक्तियों ने हमारे देश की आस्था और परंपरा पर गहरा आघात किया और हमने अपनी मौलिकता को साख पर रखते हुए, एक ऐसे जीवनशैली को अपनाना शुरू कर दिया, जिससे हमारा कोई सरोकार ही नहीं था.

इन्हीं चिंताओं को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही भारत की धूल-धूसरित हुई पहचान को पुनर्जीवित करने के लिए ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के एक नए विमर्श को जन्म दिया. उनके अथक प्रयासों के फलस्वरूप आज भारत योग, आयुर्वेद, अध्यात्म, कला, आदि जैसे हर क्षेत्र में नई गति के साथ आगे बढ़ रहा है.

प्रधानमंत्री मोदी ने आरंभ से ही अपनी विदेश नीति में ‘योग’ को एक नम्र शक्ति के रूप में इस्तेमाल किया है. प्राचीन काल में जिस प्रकार सम्राट अशोक ने मानव जाति के नैतिक उत्थान के लिए ‘धम्म’ का सहारा लिया, अपने सत्य और अहिंसा के संदेशों से एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की. उस काल में शांति और सहिष्णुता की इतनी गहरी भावना और कहीं नहीं मिलती है.

आज प्रधानमंत्री मोदी ने योग के प्रति सभी वर्गों, समुदायों और राजनीतिक इकाइयों को एकजुट और संपूर्ण विश्व में भारतीयता को एक नया स्थायित्व प्रदान कर, ठीक उसी भावना को परिलक्षित किया है. आज हम योग की शक्ति को एक राष्ट्रीय शक्ति के तौर पर देख सकते हैं.

पीएम मोदी ने 2014 में जब संयुक्त राष्ट्र संघ में ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ मनाने का प्रस्ताव दिया था, तो उस वक्त 177 देशों ने इसे स्वीकार किया.

योग एक ऐसी विधा है, जिसमें बेहतर स्वास्थ्य और समृद्धि, समाज की कई शक्तियां निहित हैं. यह न किसी धर्म समुदाय से जुड़ा है और न ही इसकी सर्वसुलभता की कोई सीमा है. हमने बीते 10 वर्षों के दौरान अखबारों की सुर्ख़ियों और नए डिजिटल मीडिया के माध्यम से देखा है कि दुनिया में योग के प्रति दीवानगी किस कदर बढ़ रही है. आज तन-मन की शांति के लिए लोग योग का रास्ता अपना रहे हैं.

भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है ”योग : कर्मसु कौशलम्” यानी ‘योग से कर्मों में कुशलता’ का तीव्र प्रवाह होता है. जब हम अपने जीवन में योग को आत्मसात कर लेते हैं, तो इससे धैर्य, संयम और करुणा का विकास होता है. योगमय जीवन पद्धति में नकारात्मकता के लिए कोई स्थान नहीं है. कालांतर में परमहंस योगानंद, स्वामी विवेकानंद, तिरुमलाई कृष्णमचार्य, केएस. अयंगर जैसे अनगिनत महात्माओं ने हमारे योग की प्राचीन शिक्षाओं को बढ़ावा देने के लिए अथक प्रयास किए. आज पीएम मोदी उन्हीं विरासतों को संभालते हुए योग को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं और इसके लिए पूरा भारत उनका कृतज्ञ है.

प्रधानमंत्री मोदी ने सदैव यह माना है कि योग हमें प्राणी मात्र से प्रेम का आधार देती है. यह हमारी आत्मचेतना और आत्मबल को बढ़ाते हुए, मन के सभी गतिरोधों और प्रतिरोधों को समाप्त करने का कार्य करती है.

आज जब पूरे विश्व में प्राकृतिक संकट का खतरा बढ़ता जा रहा है, तो योग हमें प्रकृतिमय जीवन पद्धति के करीब ले जाने में उल्लेखनीय भूमिका निभा सकता है. हमारे लिए यहां आयुर्वेद का विशेष उल्लेख करना भी आवश्यक है. क्योंकि, आयुर्वेद एक ऐसी तकनीक है, जिसके माध्यम से हम प्रकृति को बिना नुकसान पहुंचाए सर्वोत्तम स्वास्थ्य लाभ हासिल कर सकते हैं. इसकी बानगी हम कोविड महामारी के दौर में भी देख चुके हैं.

प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में आयुर्वेद समेत पूरे आयुष प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए जो प्रयास किए गए हैं, उसके फलस्वरूप आज भारत द्वारा आयुर्वेदिक और औषधीय उत्पादों का निर्यात लगभग 700 मिलियन डॉलर पहुंच चुका है, जो 2014 से लगभग दोगुना है. हमें यह सफलता निश्चित रूप से आयुष सेवाओं का विस्तार, शैक्षणिक संस्थानों का विकास, गुणवत्ता नियंत्रण, तकनीकी विकास और औषधीय पादपों के संरक्षण के साथ-साथ व्यापक जन-भागीदारी से मिली है.

पीएम मोदी अगले 5 वर्षों में योग को भारत की नम्र शक्ति के रूप में स्थापित करने की दिशा में कोई संस्थागत आधारशिला अवश्य रखेंगे. वे एक ऐसी व्यवस्था बना सकते हैं, जिसके माध्यम से पूरे विश्व के लोगों को भारतीय ज्ञान परंपरा का अधिकाधिक लाभ सुनिश्चित हो सके. संक्षिप्त शब्दों में कहें तो योग कूटनीति इस दशक में भारत का नया ‘ब्रह्मास्त्र’ साबित होने वाला है.

एसके/