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New Delhi, 27 अक्टूबर . India के प्राचीन और लोकप्रिय खेल ‘कुश्ती’ के प्रमाण महाIndia और रामायण काल से देखने को मिलते हैं, जिसकी जड़ें देहात के अखाड़ों से जुड़ी हैं. पहलवानों को पारंपरिक मिट्टी के दंगल से अंतरराष्ट्रीय मंच के मैट तक पहुंचाने वाले इस खेल में India का दबदबा रहा है.
करीब 7,000 ईसा पूर्व कुश्ती वैश्विक स्तर पर ‘मार्शल आर्ट’ के रूप में अस्तित्व में आई. India में इसे ‘मल्ल युद्ध’ कहा गया, यानी बगैर किसी शस्त्र के सिर्फ हाथों से लड़ा जाने वाला मुकाबला.
एक दौर था, जब बाहुबल और मनोरंजन के लिए कुश्ती खेली जाती थी. राजा-महाराजा इन खेलों का आयोजन करवाते थे. उत्तर India में इसे दंगल, कुश्ती और पहलवानी के नाम से पहचान मिली.
एक ओर यूरोप में सॉफ्ट मैट पर इसे खेला जा रहा था, तो India में मिट्टी के अखाड़ों में इसका अभ्यास जारी था. उस दौर में इसे फिट रहने के तरीके के रूप में भी देखा जाता था. कुश्ती जीतने वाले पहलवानों को उचित इनाम भी मिलता, ताकि उन्हें प्रोत्साहन मिले.
साल 1930 में पेशेवर कुश्ती की शुरुआत हुई. इसी बीच कुश्ती पर फ्रांसीसी प्रभाव भी देखने को मिला, जिसके चलते ‘ग्रीको-रोमन शैली’ अस्तित्व में आई.
साल 1904 में सेंट लुइस में खेले गए ओलंपिक में फ्रीस्टाइल कुश्ती को शामिल किया गया. इसके बाद साल 1908 में भी यह खेल ओलंपिक का हिस्सा रहा. इसी बीच India को गुलाम मोहम्मद बख्श उर्फ ‘गामा पहलवान’ जैसा सुपरस्टार मिला, जिन्होंने पांच दशक के करियर में एक भी मैच नहीं गंवाया. साल 1947 में भारत-Pakistan के बंटवारे के बाद गामा लाहौर में बस गए.
खाशाबा दादासाहेब जाधव ने साल 1948 में लंदन में ओलंपिक डेब्यू किया. मिट्टी पर कुश्ती लड़ने वाले केडी जाधव यहां पहली बार मैट पर लड़े. साल 1952 में हेलसिंकी ओलंपिक में उन्होंने बैंटमवेट वर्ग में India को ब्रॉन्ज मेडल जिताया. यह आजादी के बाद India का पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक था.
इसके बाद उदय चंद, बिशंबर सिंह, करतार सिंह, मारुति माने, सतपाल सिंह, राजेंद्र सिंह जैसे पहलवानों ने India को इस खेल में शोहरत दिलाई, लेकिन India को कुश्ती में अगला ओलंपिक पदक जीतने के लिए 56 वर्ष इंतजार करना पड़ गया.
इस बीच साल 2006 में अलका तोमर विश्व चैंपियनशिप मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला रेसलर बन गई थीं. इन्हीं के नक्शेकदम पर चलते हुए गीता फोगाट, बबीता फोगाट, विनेश फोगाट, साक्षी मलिक जैसी महिला रेसलर भी सामने आईं.
आखिरकार, 2008 बीजिंग ओलंपिक में सुशील कुमार ने इस सूखे को समाप्त किया. उन्होंने 66 किलोग्राम भारवर्ग में देश को ब्रॉन्ज मेडल जिताया.
साल 2012 में लंदन में खेले गए ओलंपिक में एक बार फिर सुशील कुमार ने पदक जीता. इस बार पदक का रंग बदल गया था. यह सिल्वर मेडल था. इसी ओलंपिक में योगेश्वर दत्त ने India को ब्रॉन्ज दिलाया.
साल 2016 में साक्षी मलिक एकमात्र सफल भारतीय रहीं, जिन्होंने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. वह ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला रेसलर बनीं.
2020 टोक्यो ओलंपिक में रवि कुमार दहिया ने देश को सिल्वर, जबकि बजरंग पुनिया ने ब्रॉन्ज मेडल जिताया. 2024 पेरिस ओलंपिक में अमन सहरावत ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया.
मिट्टी के अखाड़े से निकलकर ओलंपिक के मैट पर पदक जीतने वाले इन पहलवानों ने वैश्विक स्तर पर कुश्ती के खेल में India के दमखम को दिखाया है. इन्हीं से प्रेरित होकर हजारों युवा आज भी इस खेल में अपना करियर बनाने की चाहत रखते हैं.
India की माटी में प्रतिभाशाली युवा पहलवानों की कमी नहीं है. आधुनिक प्रशिक्षण सुविधाओं के साथ खेल नीतियों में सुधार से इन पहलवानों को बेहतर अवसर मिले हैं. यह कहा जाना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस खेल में India का भविष्य उज्ज्वल है.
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आरएसजी/एबीएम