विश्व फोटोग्राफी दिवस: एक तस्वीर हजार शब्दों की, यादें होती हैं कैद

New Delhi, 18 अगस्त . “एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होती है.” यह कथन फोटोग्राफी की ताकत को बयां करता है, जो समय को ठहरा देती है और क्षणभंगुर पलों को हमेशा के लिए अमर कर देती है.

हर साल 19 अगस्त को ‘विश्व फोटोग्राफी दिवस’ मनाया जाता है, एक ऐसा दिन जो उन तस्वीरों को समर्पित है जो न केवल आंखों को सुकून देती हैं, बल्कि दिल को छूती हैं और कहानियां कहती हैं. फोटोग्राफी की कहानी 19वीं सदी से शुरू होती है. 1839 में फ्रांस के दो वैज्ञानिकों, जोसेफ नीसफोर नीप्स और लुई डागुएरे ने डागोरोटाइप प्रक्रिया का आविष्कार किया, जिसे दुनिया की पहली फोटोग्राफी तकनीक माना जाता है. 19 अगस्त 1839 को फ्रांसीसी सरकार ने इस प्रक्रिया का पेटेंट खरीदकर इसे दुनिया के लिए मुफ्त घोषित किया, और यही वह दिन था जो ‘विश्व फोटोग्राफी दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा.

वह दौर था जब फोटो खींचने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता था. पहली तस्वीर को कैद करने में कई मिनट लगते थे, और उपकरण इतने जटिल थे कि केवल विशेषज्ञ ही इसका इस्तेमाल कर पाते थे. लेकिन समय के साथ तकनीक ने फोटोग्राफी को हर घर तक पहुंचा दिया. आज स्मार्टफोन के दौर में हर जेब में एक कैमरा है, और हर कोई फोटोग्राफर बन सकता है.

फोटोग्राफी केवल खूबसूरत नजारे कैद करने तक सीमित नहीं है. यह सामाजिक बदलाव का भी एक सशक्त माध्यम है. युद्ध, भुखमरी, प्राकृतिक आपदाओं और मानवाधिकारों के उल्लंघन को उजागर करने में फोटोग्राफी ने हमेशा अहम भूमिका निभाई है. 1972 में वियतनाम युद्ध के दौरान निक उट द्वारा खींची गई ‘द टेरर ऑफ वॉर’ तस्वीर ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया था. यह तस्वीर युद्ध की भयावहता को दर्शाने का एक जीवंत उदाहरण है.

भारत में फोटोग्राफी के इतिहास की बात करें, तो 19वीं सदी में अंग्रेजों ने भारत में फोटोग्राफी की शुरुआत की, और धीरे-धीरे यह कला भारतीयों के बीच लोकप्रिय हो गई. आज भारत में फोटोग्राफी न केवल एक शौक है, बल्कि एक पेशा भी है, जिसने कई लोगों को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई. रघू राय, दयानिता सिंह और होमी व्याल्ला जैसे फोटोग्राफरों ने अपनी तस्वीरों से भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता को दुनिया के सामने पेश किया.

‘विश्व फोटोग्राफी दिवस’ के मौके पर भारत में कई आयोजन होते हैं. दिल्ली, Mumbai , कोलकाता जैसे शहरों में फोटो प्रदर्शनियां, कार्यशालाएं और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं. भारत में भी फोटोग्राफी ने सामाजिक मुद्दों को उठाने में योगदान दिया है. चाहे वह पर्यावरण संरक्षण हो, महिलाओं के अधिकार हों या ग्रामीण भारत की कहानियां, फोटोग्राफरों ने अपनी तस्वीरों के जरिए समाज को जागरूक किया है. ‘विश्व फोटोग्राफी दिवस’ पर फोटोग्राफरों को यह मौका मिलता है कि वे अपनी कला के जरिए समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में योगदान दें.

हर साल ‘विश्व फोटोग्राफी दिवस’ एक खास थीम के तहत मनाई जाती है. इस बार की थीम “मेरी पसंदीदा तस्वीर” है. यह थीम हर फोटोग्राफर को अपने सबसे प्रिय क्षण को साझा करने के लिए प्रेरित करती है. यह थीम व्यक्तिगत अनुभवों और भावनाओं को सामने लाती है, जो फोटोग्राफी को और भी खास बनाती है.

आज डिजिटल युग में फोटोग्राफी ने नए आयाम छुए हैं. ड्रोन फोटोग्राफी, अंडर वॉटर फोटोग्राफी, मैक्रो फोटोग्राफी और 360 डिग्री फोटोग्राफी जैसे क्षेत्रों ने इस कला को और विस्तृत किया है. स्मार्टफोन कैमरों की गुणवत्ता में सुधार और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग फोटोग्राफी को और सुलभ बना रहा है. लेकिन इसके बावजूद, एक अच्छी तस्वीर के लिए तकनीक से ज्यादा जरूरी है रचनात्मकता और संवेदनशीलता.

एससीएच/केआर