विश्व आयोडीन अल्पता दिवस : स्वस्थ जीवन के लिए आयोडीन की भूमिका

नई दिल्ली, 19 अक्टूबर . आयोडीन हमारे जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण तत्व है, जिसकी कमी से मानसिक और शारीरिक विकास प्रभावित हो सकता है. ये एक ऐसा तत्व है, जो हमारी सेहत की नींव मजबूत करता है, भले ही इसकी मौजूदगी हमें दिखाई न दे. आयोडीन की इसी अहम भूमिका को देखते हुए प्रत्येक वर्ष 21 अक्टूबर को विश्व आयोडीन अल्पता दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य दुनिया भर में आयोडीन की कमी से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति जागरूकता बढ़ाना और सही जानकारी प्रदान करना है.

आपके शरीर को आयोडीन की जरूरत होती है, लेकिन यह आपके खाने से ही मिलता है. मनुष्य का शरीर खुद इसका निर्माण नहीं कर सकता. इसकी कमी से कई गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, खासकर बच्चों और गर्भवती महिलाओं में. आयोडीन की कमी शरीर में थायराइड हार्मोन के उत्पादन को प्रभावित करती है, जिससे विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं. गॉयटर एक ऐसी ही बीमारी है; जब शरीर में आयोडीन की मात्रा कम हो जाती है, तो थायराइड ग्रंथि सूज जाती है.

आयोडीन की कमी को हाइपोथायरायडिज्म के नाम से जाना जाता है. इस प्रभाव सीधा थायराइड ग्रंथि पर पड़ता है, जिससे मेटाबोलिज्म प्रभावित होता है और वजन बढ़ने, थकान, ठंड महसूस होना जैसी समस्याएं हो सकती हैं. इसके अलावा, बच्चों में आयोडीन की कमी से शारीरिक और मानसिक विकास धीमा हो जाता है. गर्भवती महिलाओं में इसकी कमी से भ्रूण का विकास प्रभावित हो सकता है, जिससे बच्चे में बौद्धिक या शारीरिक विकार हो सकते हैं. इतना ही नहीं, गर्भवती महिलाओं में आयोडीन की कमी होने से गर्भपात, मृत जन्म या शिशु मृत्यु दर बढ़ सकती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 200 करोड़ लोग आयोडीन की कमी से प्रभावित हैं. आयोडीन की कमी दुनिया भर में पहचानी गई है. यह 130 देशों में महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है और 74 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है. दुनिया की एक तिहाई (33%) आबादी आयोडीन की कमी के जोखिम में है. भारत में, 6.1 करोड़ से अधिक लोग गॉयटर से पीड़ित हैं और 88 लाख लोग मानसिक या शारीरिक विकलांगता से पीड़ित हैं.

दुनिया की लगभग 30% आबादी वैश्विक रूप से आयोडीन की कमी और इसके परिणामों वाले क्षेत्रों में रहती है. भारत में, 1950 के दशक में आयोडीन की कमी के कारण गॉयटर और अन्य थायराइड संबंधी समस्याएं देखी गई थीं. तब से सरकार ने आयोडीन युक्त नमक का उपयोग अनिवार्य कर दिया. इससे आयोडीन की कमी से जुड़ी समस्याओं में काफी कमी आई है, लेकिन फिर भी कई क्षेत्रों में इसकी जागरूकता की कमी है.

आयोडीन की व्यापक कमी और इसके बड़े प्रभाव को देखते हुए आयोडीन अल्पता दिवस की अवधारणा ने जन्म लिया था. सन् 1990 में, बच्चों के लिए विश्व शिखर सम्मेलन में कई संगठन एक साथ आए थे. उन्होंने आयोडीन के महत्व और आयोडीन की कमी के बढ़ते मामलों को रोकने के तरीकों पर चर्चा की. सन् 2002 में, कई संगठनों ने जागरूकता कार्यक्रम शुरू किए. समय के साथ, अधिक से अधिक देश इस कारण से जुड़ते गए और यह विश्व आयोडीन कमी दिवस बन गया.

आयोडीन की मात्रा व्यक्ति की आयु और जीवन स्थिति के आधार पर अलग-अलग होती है. सामान्यतः: एक वयस्क को प्रतिदिन लगभग 150 माइक्रोग्राम आयोडीन की आवश्यकता होती है. गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसकी मात्रा अधिक चाहिए होती है, क्योंकि उनके शरीर में थायराइड हार्मोन की जरूरत बढ़ जाती है. आयोडीन की कमी को पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है, यदि हम सही आहार और जानकारी पर ध्यान दें. नमक के अलावा, दूध, मांस, समुद्री मछली, अंडे, अनाज, नमक, दही, समुद्री सब्जियां, सब्जियां और फल आदि में भी प्रचुर मात्रा में आयोडीन मिलता है.

आयोडीन की कमी से बचने का सबसे सरल और प्रभावी तरीका आयोडीन युक्त नमक का सेवन करना है. एक समय भारत में, आयोडीन की कमी एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या थी. लेकिन आयोडीन युक्त नमक के उपयोग को प्रोत्साहित करने से इसे काफी हद तक नियंत्रित किया गया है. 90 के दशक के वह टीवी विज्ञापन बड़े चर्चित हुए थे जब नमक को आयोडीन से जोड़कर दिखाया जाता था. वह नमक ही बेकार माना जाता था जिसमें आयोडीन ना हो.

विश्व आयोडीन कमी दिवस हमें याद दिलाता है कि यह एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य मुद्दा है, जिसे हमें नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं. अपने परिवार और खासकर बच्चों के आहार में आयोडीन युक्त खाद्य पदार्थों को शामिल करें और स्वस्थ जीवन के लिए जागरूक रहें. सही आहार और जागरूकता से आयोडीन की कमी से होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है और एक स्वस्थ समाज का निर्माण किया जा सकता है.

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