विश्व स्वास्थ्य दिवस : भारत में अब तक कितनी हुई प्रगति?

नई दिल्ली, 7 अप्रैल . आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है. भारत ने हाल के वर्षों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी तरक्की की है, पोलियो को प्रभावी ढंग से खत्म किया है और मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने में भी अच्छी खासी प्रगति की है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, देश अभी भी गैर-संचारी रोगों, श्वसन रोगों और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा है.

विश्व स्वास्थ्य दिवस हर साल 7 अप्रैल को मनाया जाता है. इस वर्ष की थीम ‘मेरा स्वास्थ्य, मेरा अधिकार’ है जो गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक सभी की समान पहुंच पर केंद्रित है.

सर गंगा राम अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष जे पी एस साहनी ने को बताया, “देश के सामने आने वाली प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं में हृदय रोग, मधुमेह, मोटापा और हाई ब्लड प्रेशर जैसी गैर-संचारी बीमारियां हैं, साथ ही सांस से जुड़े संक्रमण और कुपोषण की समस्या भी है.”

नोएडा में फोर्टिस अस्पताल के निदेशक अजय अग्रवाल ने कहा, “तपेदिक, मलेरिया, हेपेटाइटिस आदि जैसी संक्रामक बीमारियां प्रचुर मात्रा में हैं. दूसरी तरफ गैर-संक्रामक रोग हैं, जैसे मधुमेह हृदय रोग, फेफड़ों की बीमारियां, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) और ब्रोन्कियल अस्थमा.”

इनमें से कई रोगों को जो चीजें बढ़ावा दे रही हैं वो हैं खराब आहार, शारीरिक निष्क्रियता, धूम्रपान, शराब का सेवन, पर्यावरण प्रदूषण और आर्थिक असमानताएं.

विशेषज्ञों ने स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच, क्षेत्रीय असमानताओं और अपर्याप्त जागरूकता पर भी अफसोस जताया जो इन चुनौतियों में योगदान देता है.

दिल्ली में सीके बिड़ला अस्पताल के इंटरनल मेडिसिन के निदेशक राजीव गुप्ता ने कहा कि देश में संक्रामक रोगों का एक बड़ा बोझ है, जिसमें एचआईवी, तपेदिक, मलेरिया, वेक्टर जनित रोग जैसे डेंगू बुखार और एन्सेफलाइटिस, और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल और यकृत रोग शामिल हैं.

गुप्ता ने से कहा, “इन चुनौतियों से निपटने के लिए भारत को तत्काल अपना बजट बढ़ाने की जरूरत है.”

दूसरी ओर, विशेषज्ञों ने कहा कि “पिछले दशक में भारत के स्वास्थ्य देखभाल परिदृश्य में उल्लेखनीय बदलाव आए हैं, जैसे कि जीवन ज्यादा लंबा हो गया है, पोलियो का उन्मूलन हो गया है और हाल ही में कालाजार को समाप्त कर दिया गया.

“भारत ने सभी के टीकाकरण, बेहतर स्वच्छता और बेहतर डिलीवरी प्रैक्टिस से शिशु मृत्यु दर को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है.”

डॉ गुप्ता ने कहा, “हालांकि, अभी भी सुधार की गुंजाइश है. अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों का बढ़ता उपयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य को और बेहतर बना सकता है.”

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