भारत को कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए 1.5 अरब डॉलर का ऋण देगा विश्व बैंक

नई दिल्ली, 29 जून . विश्व बैंक ने कम कार्बन उत्सर्जन वाले ऊर्जा उत्पादन के विकास में तेजी लाने के लिए दूसरे ऑपरेशन के तहत भारत को 1.5 अरब डॉलर के ऋण को मंजूरी दी है.

विश्व बैंक ने शुक्रवार को वाशिंगटन में बताया कि ‘लो-कार्बन एनर्जी प्रोग्रामेटिक डेवलपमेंट पॉलिसी ऑपरेशन’ का दूसरा चरण ग्रीन हाइड्रोजन और इलेक्ट्रोलाइजर के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सुधारों में मददगार होगा, जो ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण तकनीक है.

यह ऑपरेशन सरकार की ऊर्जा सुरक्षा और विश्व बैंक की हाइड्रोजन फॉर डेवलपमेंट (एच4डी) भागीदारी के अनुरूप है.

विश्व बैंक के अनुसार, सुधारों के परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2025-26 से प्रति वर्ष कम से कम 4,50,000 टन ग्रीन हाइड्रोजन और 1,500 मेगावाट इलेक्ट्रोलाइजर का उत्पादन होने की उम्मीद है.

इसके अलावा, यह अक्षय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने और कार्बन उत्सर्जन में प्रति वर्ष पांच करोड़ टन कमी लाने में भी महत्वपूर्ण रूप से मदद करेगा.

यह ऑपरेशन राष्ट्रीय कार्बन क्रेडिट बाजार को और विकसित करने के कदमों का भी समर्थन करेगा.

भारत में विश्व बैंक के निदेशक ऑगस्त तानो कुआमे ने कहा, “विश्व बैंक को भारत की लो-कार्बन विकास रणनीति का समर्थन जारी रखने की प्रसन्नता है, जो देश के शुद्ध-शून्य लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा और निजी क्षेत्र में स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में नौकरियां पैदा करेगा.”

कुआमे ने कहा, “पहले और दूसरे, दोनों ऑपरेशनों में ग्रीन हाइड्रोजन और नवीकरणीय ऊर्जा में निजी निवेश को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया गया है.”

भारतीय अर्थव्यवस्था के तेज़ी से बढ़ने की उम्मीद है. विश्व बैंक के अनुसार, आर्थिक विकास के साथ उत्सर्जन वृद्धि पर लगाम लगाने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाना होगा, ख़ास तौर पर औद्योगिक क्षेत्रों में.

ऑपरेशन के लिए टीम लीडर की भूमिका निभा रहे ऑरेलियन क्रूस, शियाओडोंग वांग और सुरभि गोयल ने कहा, “भारत ने ग्रीन हाइड्रोजन के लिए घरेलू बाज़ार विकसित करने के लिए साहसिक कदम उठाए हैं, जो तेज़ी से विस्तारित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता पर आधारित है.”

विश्व बैंक ने जून 2023 में 1.5 अरब डॉलर के पहले ऑपरेशन को मंज़ूरी दी थी, जिसमें ग्रीन हाइड्रोजन परियोजनाओं में नवीकरणीय ऊर्जा के लिए ट्रांसमिशन शुल्क की छूट, सालाना 50 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा निविदाएं शुरू करने के लिए एक स्पष्ट राह तैयार करना और राष्ट्रीय कार्बन क्रेडिट बाजार के लिए एक कानूनी ढांचा बनाना शामिल है.

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