नई दिल्ली, 21 सितंबर . विश्व अल्जाइमर दिवस पर विशेषज्ञों ने शनिवार को बताया कि रक्तचाप (बीपी), मधुमेह (डायबिटीज) और मोटापे को रोकने वाले कारक डिमेंशिया के खतरे को 60 फीसदी तक कम कर सकते हैं.
विश्व अल्जाइमर दिवस हर वर्ष 21 सितम्बर को मनाया जाता है, ताकि डिमेंशिया और अल्जाइमर रोग बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके और इन बीमारियों के बारे में लोगों की समझ बढ़ाई जा सके.
इस वर्ष का थीम”डिमेंशिया पर कार्रवाई का समय, अल्जाइमर पर कार्रवाई का समय” है.
अल्जाइमर रोग दिमाग को कमजोर करने वाला, न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार है, जिससे धीरे-धीरे व्यक्ति की याददाश्त, भाषा, विचार और सबसे सरल कार्य करने की क्षमता को भी नष्ट कर देता है.
यह मुख्य रूप से 65 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों को प्रभावित करता है तथा वृद्धों में डिमेंशिया बीमारी का प्रमुख कारण है.
यह डिमेंशिया बीमारी या याददाश्त खोने के सबसे आम कारणों में से एक है. भारत में अल्जाइमर रोगियों की तादाद लगातार बढ़ रही हैं, हालांकि यह चिंताजनक नहीं है. यह बीमारी बुजुर्गों को ज्यादा प्रभावित कर रही है, लेकिन युवा आबादी में भी इसके बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं.
एम्स में न्यूरोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. मंजरी त्रिपाठी ने से बताया, “डिमेंशिया को रोकने के लिए डिमेंशिया के जोखिम कारकों पर काम करना जरूरी है और अगर हम इसमें कामयाब होते हैं तो डिमेंशिया को 60 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं.”
रोके जा सकने वाले जोखिम कारक क्या हैं?
सवाल पर डॉक्टर कहती हैं , “रक्तचाप और मधुमेह को नियंत्रित रखना, धूम्रपान या शराब न पीना और शरीर का वजन या मोटापे के स्तर को कम करना. अनिद्रा भी नहीं होनी चाहिए. अनिद्रा और ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया का इलाज करवाएं, क्योंकि नींद खराब होने पर याददाश्त भी खराब हो सकती है.”
इसके अलावा, अनियमित दिनचर्या, जिसमें काम न करना, व्यायाम न करना, या बुढ़ापे में कोई नया कौशल न सीखना, निष्क्रिय रहना, केवल कुर्सी पर बैठे रहना, या सोफे पर अधिक समय बिताना भी नुकसान पहुंचा सकता है.
अल्जाइमर और डिमेंशिया के बारे में प्रकाशित एक शोध से पता चलता है कि भारत में 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के 7.4 प्रतिशत लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं. मतलब भारत में करीब 8 करोड़ 80 लाख लोग इससे पीड़ित हैं. भारत में 2017 से 2020 के बीच ये आंकड़ा जुटाया गया था.
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पीएसएम/केआर