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New Delhi, 17 नवंबर . अडल्ट होना केवल उम्र का आंकड़ा नहीं, बल्कि जिम्मेदारियों की शुरुआत है. बचपन से किशोरावस्था तक हम जीवन को एक खेल, एक सीख और एक खोज की तरह जीते हैं, लेकिन जैसे ही हम वयस्कता की दहलीज पर कदम रखते हैं, दुनिया अचानक बदलने लगती है. विश्व वयस्क दिवस हमें याद दिलाता है कि 18 साल के होते ही हम सिर्फ बड़े नहीं होते, बल्कि जीवन बेहद जटिल, वास्तविक और चुनौतियों से भरा हो जाता है.
आज के आधुनिक दौर में अडल्ट होने का अर्थ पहले से काफी बदल चुका है. पहले वयस्कता का मतलब था परिवार की जिम्मेदारियां उठाना, नौकरी करना और समाज के नियमों का पालन करना. लेकिन आज वयस्कता की परिभाषा इससे कहीं व्यापक हो गई है. यह न केवल आर्थिक स्वतंत्रता से जुड़ा है, बल्कि समझदारी, भावनात्मकता, आत्मनिर्भरता और बदलती दुनिया के साथ सामंजस्य बैठाने से भी परिभाषित होती है.
आधुनिक समाज में हर युवा से उम्मीद की जाती है कि वह करियर चुने, पढ़ाई पूरी करे, अपने सपनों को पूरा करे और आर्थिक रूप से स्वतंत्र बने, लेकिन ये उम्मीदें कभी-कभी दबाव का रूप ले लेती हैं. यहीं से अडल्ट होने की वास्तविक चुनौती शुरू होती है. आज का युवा तकनीक, social media, तेजी से बदलती नौकरियों और भविष्य के बीच अपनी जगह तलाशने की कोशिश करता है. बाहरी दुनिया में सफल दिखने की ये दौड़ कई बार मानसिक तनाव और चिंता की वजह भी बन जाती है.
साथ ही, आज वयस्क होने का मतलब यह भी है कि व्यक्ति अपने जीवन से जुड़े फैसले खुद ले. चाहे वह शिक्षा हो, करियर हो, रिश्ते हों या जीवनशैली, हर निर्णय का बोझ सीधे व्यक्ति के कंधों पर आता है. स्वतंत्रता अच्छी है, पर इसका भार भी उतना ही भारी होता है.
अडल्ट होने का एक बड़ा पहलू खुद की पहचान भी है. पहले लोग एक निर्धारित सामाजिक ढांचे में ढल जाते थे, लेकिन आज का युवा अपनी पहचान खुद बनाना चाहता है. ये सुनने में तो अच्छा लगता है, पर उतना ही चुनौतीपूर्ण है.
इसके साथ ही, समाज में अडल्ट होने को अक्सर ‘सब समझदार हो गए’ के टैग से जोड़ दिया जाता है, जबकि सच यह है कि वयस्क भी सीखते रहते हैं, गलती करते हैं और खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं. आधुनिक समय में यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि वयस्क होना एक प्रक्रिया है, कोई एक दिन में होने वाला बदलाव नहीं. इसलिए गलती होने पर उन्हें समझाएं, न कि सिर्फ जिम्मेदारी थोपें.
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पीआईएम/