नई दिल्ली,18 सितंबर . यूपी के बहराइच में आदमखोर भेड़ियों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है. माता-पिता सोच रहे हैं कि मुनिया कब अपनी दोस्त लीला के साथ स्कूल जा पाएगी? रोहन कब अपने भाई के साथ गांव की गलियों में बेखौफ होकर खेल पाएगा? किसान सोच रहे हैं कि हम कब रात भर गांव की रखवाली छोड़कर अपनी मक्के की फसल की रखवाली कर पाएंगे?
ये कहानियां आपको काल्पनिक लग सकती हैं, लेकिन हकीकत ये है कि बहराइच में पांचवें भेड़िये के पकड़े जाने के बाद अब बचा छठा भेड़िया (लंगड़ा) लगातार महिलाओं और बच्चों को अपना निशाना बना रहा है. बहराइच के महसी इलाके में भेड़िये अब तक 10 लोगों को अपना निशाना बना चुके हैं. सवाल ये भी उठता है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है? वहां की गरीबी, भौगोलिक स्थिति, जंगल में अतिक्रमण या फिर सरकार और प्रशासन?
आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने के लिए ‘ऑपरेशन भेड़िया’ चलाया जा रहा है. सरकार पूरी ताकत से आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने का प्रयास कर रही है. ऑपरेशन भेड़िया के तहत वन विभाग की 16 टीमें इलाके में तैनात की गई हैं. इस अभियान के तहत ड्रोन कैमरे, इंफ्रारेड कैमरे और थर्मल इमेजिंग कैमरे की मदद से भेड़ियों को पकड़ने की कोशिश की जा रही है. भेड़ियों से बचने के लिए वन विभाग की टीमें और स्थानीय लोग रोज रात गश्त करते हैं और लोगों से रात में बाहर न सोने और बच्चों को अकेला न छोड़ने की अपील कर रहे हैं. आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने के वन विभाग की टीमें दिन-रात प्रयास कर रही हैं और नई तकनीक का प्रयोग कर रही हैं.
बचाव अभियान को लेकर डीएफओ बहराइच अजीत प्रताप सिंह ने बताया कि हम फील्ड में जाकर देखते हैं कि भेड़िये चलते कैसे हैं, ये किस तरह से रहते हैं? वन विभाग की टीम जब ड्रोन कैमरे का उपयोग कर इन्हें देखने की कोशिश करती है, तो धूप और भौगोलिक दशा के कारण साफ नहीं दिख पाता. फिर भी हम कोशिश में लगे रहते हैं. फील्ड में भटकने के दौरान इनके बड़े-बड़े मांद दिखाई देते हैं. ये उसी में रहते हैं. रात में ये हमलावर हो जाते हैं. उन्होंने अपने दर्द को बयां करते हुए कहा कि दिन भर भटकने के बाद जब भेड़िये गिरफ्त में नहीं आ पाते, तो बहुत निराशा के वापस लौटना पड़ता है. यह सिलसिला एक महीने से चल रहा है.
उल्लेखनीय है कि स्थानीय प्रशासन ‘ऑपरेशन भेड़िया’ को सफल बनाने की कोशिश कर रहा है. लेकिन बहराइच के महसी की भौगोलिक स्थिति और पिछड़ेपन के कारण तकनीक और कड़ी निगरानी भी फेल हो जाती है. यहां ज्यादातर घरों में दरवाजे नहीं हैं. इलाके में बिजली की सुविधा भी नहीं है. स्थानीय विधायक ने उस परिवार के घर के पास सोलर लाइट तब लगवाई, जब आदमखोर ने उसके बच्चे पर हमला कर जान ले ली. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये इलाका कितने पिछड़ेपन से जूझ रहा है. यहां आम जनता और महिलाओं को भी जागरूक किया जा रहा है. प्रभावित गांवों में जिन घरों में शौचालय नहीं हैं, वहां शौचालय की व्यवस्था की जा रही है. गांवों में रोशनी के लिए सोलर लाइट लगाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है.
भेड़ियों के हमले में जान गंवाने वालों के परिजनों को यूपी सरकार ने पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का ऐलान किया है. घायलों के लिए अलग से कैटेगरी बनाई गई है. भेड़ियों के हमले में जान गंवाने वाले पीड़ित परिजनों को पांच लाख रुपये की मुआवजा राशि मिल चुकी है.
गौरतलब है कि बहराइच जिले में आदमखोर भेड़ियों ने इसी साल मार्च में एक बच्चे पर हमला कर अपना रौद्र रूप दिखाया था. लेकिन जुलाई के बाद भेड़ियों का हमला बढ़ता जा रहा है. ये भेड़िये अक्सर घरों में सो रहे बच्चों को निशाना बनाते हैं. डेढ़ महीने में भेड़ियों का झुंड महिलाओं और बच्चों समेत दस लोगों की जान ले चुका है. इसके अलावा भेड़ियों ने 35 लोगों को घायल कर दिया है.
प्रशासन की तमाम कोशिशों के बावजूद आदमखोर भेड़ियों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है. अब सोचने वाली बात यह है कि क्या विकास की ओर बढ़ते इंसानों ने जंगली जानवरों के आवासों को छीन लिया है? जंगली जानवर अपने घरों की तलाश में भटक रहे हैं या फिर बदलती भौगोलिक परिस्थितियों ने जंगली जानवरों को गांवों और शहरों की ओर रुख कर शिकार करने पर मजबूर कर दिया है?
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आरके/