नई दिल्ली, 2 दिसंबर . स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा है कि मिर्गी (तंत्रिका संबंधी बीमारी) का जल्द ही पता लगाने और बेहतर उपचार से इससे पीड़ित 70 प्रतिशत रोगियों को सामान्य जीवन जीने में मदद मिल सकती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि दुनिया भर में लगभग 50 मिलियन लोग मिर्गी से पीड़ित हैं.
फोर्टिस अस्पताल में न्यूरोलॉजी के प्रमुख निदेशक और प्रमुख डॉ. प्रवीण गुप्ता ने को बताया, “भारत में 10-12 मिलियन लोग मिर्गी से पीड़ित हैं, जो कुल आबादी का एक प्रतिशत से अधिक और वैश्विक का लगभग छठा हिस्सा है. भारत में इसका आंकड़ा प्रति 1,000 जनसंख्या पर 3.0 से 11.9 के बीच है. यह तेजी से बढ़ते मामले हमारे लिए एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनते जा रहे है. इस ओर जल्द ही काम करने की जरूरत है.”
मिर्गी के लक्षणों में अचानक सुन्न होना, शरीर में अकड़न, कांपना, बेहोशी, बोलने में कठिनाई और अनियंत्रित पेशाब (इनवोलंटरी यूरिनेशन) शामिल हैं. यह बीमारी काफी लंबे समय से चली आ रही है. इसके बावजूद भी लोगों में इसको लेकर जागरूकता की कमी है.
आकाश हेल्थकेयर के निदेशक एवं न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. मधुकर भारद्वाज ने कहा कि भारत में 8-12 वर्ष की आयु के बच्चों में मिर्गी की बीमारी आम है. पिछले 5 वर्षों में 1,000 बच्चों में से 22.2 बच्चे इस बीमारी से प्रभावित हुए हैं.
हालांकि, गुप्ता ने कहा कि वयस्कों में भी यह स्थिति काफी बढ़ रही है.
गुप्ता ने कहा, “बच्चों में जन्मजात विकार और संक्रमण प्रमुख कारण होते हैं, जबकि युवा वयस्कों में ट्रॉमेटिक ब्रेन इंजरी, न्यूरोसिस्टीसर्कोसिस और मेनिन्जाइटिस इसके महत्वपूर्ण कारक है. हमारे देश में टेपवर्म संक्रमण के कारण होने वाला न्यूरोसिस्टीसर्कोसिस लगभग 30 प्रतिशत मिर्गी के मामलों के लिए जिम्मेदार है. बुजुर्गों में स्ट्रोक और न्यूरोडीजेनेरेटिव स्थितियां प्रमुख कारण होती हैं.”
विशेषज्ञों ने मिर्गी से पीड़ित महिलाओं के सामने शादी और गर्भावस्था को लेकर आने वाली अनूठी चुनौतियों के बारे में भी बताया.
गुप्ता ने कहा, “हार्मोनल परिवर्तन इस समस्या को बढ़ा सकते हैं ,जैसा कि कैटामेनियल मिर्गी में देखा जाता है जबकि सामाजिक दृष्टिकोण अक्सर उनके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करते हैं. इसके बावजूद उपचार में प्रगति ने अधिकांश महिलाओं को सामान्य जीवन जीने की अनुमति दी है क्योंकि आधुनिक दवाएं गर्भावस्था के दौरान सुरक्षित साबित हुई हैं.”
भारद्वाज ने कहा, “समय पर इसका पता लगाने के साथ और इसके बेहतर उपचार से 70 प्रतिशत रोगियों को उचित दवा और एक खास जीवनशैली के जरिए सामान्य जीवन जीने में मदद मिल सकती है.”
इन स्थितियों से निपटने के लिए में एंटी-एपिलेप्टिक दवाएं, आहार चिकित्सा जैसे कि केटोजेनिक आहार, शराब से परहेज और सर्जिकल हस्तक्षेप जैसे कि रेसेक्टिव ब्रेन सर्जरी और वेगस नर्व स्टिमुलेशन शामिल हैं.
भारद्वाज ने मिर्गी से पीड़ित व्यक्तियों से यह भी आग्रह किया कि वे ड्राइविंग, विमान उड़ाने या फैक्ट्री में काम करने जैसे जोखिम भरे कामों से बचें, जिसमें नुकीली वस्तुएं शामिल हों, क्योंकि ये दौरे के दौरान खुद को और दूसरों को खतरे में डाल सकते हैं.
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एमकेएस/एएस