क्यों पानी में डूबा रहता है रत्नेश्वर महादेव मंदिर? श्राप या फिर कोई चमत्कार

वाराणसी, 21 नवंबर . धर्म नगरी काशी में स्थित रत्नेश्वर महादेव मंदिर अपने आप में एक बड़ा रहस्य है. दुनिया में भगवान शिव के जितने भी मंदिर हैं, उनमें यह मंदिर अपनी अलग पहचान रखता है. वजह है इसका साल भर में आधे से ज्यादा समय पानी में डूबा रहना.

महीनों तक यह मंदिर गंगा की गोद में समाया रहता है और सिर्फ कुछ ही दिनों के लिए पूरी तरह दिखाई देता है. अब सवाल यह है कि क्या यह श्राप का असर है या फिर कोई चमत्कार?

मान्यता है कि रत्नेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण रत्नाबाई नाम की एक महिला ने करवाया था, जो अहिल्याबाई होल्कर की दासी थीं. रत्नाबाई भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थीं और उन्होंने पूरी श्रद्धा से यह मंदिर बनवाया.

कहते हैं कि जब अहिल्याबाई को पता चला, तो उन्हें यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई. क्रोध में उन्होंने रत्नाबाई को श्राप दे दिया कि यह मंदिर कभी पूरी तरह पानी से बाहर नहीं आएगा और इसका शिवलिंग हमेशा गंगा के पानी में डूबा रहेगा.

अब इस श्राप की कहानी कितनी सच है, यह कोई पक्के रूप में नहीं कह सकता, लेकिन लोगों की आस्था और मान्यता आज भी यही कहती है कि मंदिर का पानी में डूबा रहना उसी श्राप का असर है. यही वजह है कि बहुत से लोग इसे चमत्कार भी मानते हैं.

यह मंदिर गंगा नदी के बहुत करीब, लगभग पानी के स्तर पर ही बनाया गया है. जब गंगा का जलस्तर बढ़ जाता है, तो मंदिर डूब जाता है. साल में कुछ ही दिन मंदिर में विराजमान शिवलिंग के दर्शन हो पाते हैं. इसके बावजूद मंदिर की संरचना इतनी मजबूत है कि यह सदियों से पानी और तेज बहाव को झेलते हुए भी जस की तस खड़ी है. यही बात इसे और भी रहस्यमयी बनाती है.

एक और दिलचस्प बात यह है कि यह मंदिर लगभग 9 डिग्री तक झुका हुआ है. लोग कहते हैं कि यह झुकाव भी किसी दिव्य शक्ति का संकेत है, क्योंकि इतने पानी, बाढ़ और प्राकृतिक आपदाओं के बाद भी मंदिर गिरा नहीं.

इसके अलावा, मंदिर का शिवलिंग पूरे साल पानी में डूबा रहता है. सिर्फ तभी दर्शन मिलते हैं जब गंगा का जलस्तर बहुत कम हो जाता है. भक्त मानते हैं कि पानी में डूबा शिवलिंग भगवान शिव की दिव्य शक्ति का प्रतीक है और यहां प्रार्थना करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

पीआईएम/एबीएम