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New Delhi, 8 सितंबर . नेपाल में Monday को युवाओं के एक विशाल विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों की सुरक्षा बलों के साथ झड़प हुई, हिंसा भड़की और कई लोगों की मौत हो गई. भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और कई मीडिया ऐप्स पर Governmentी प्रतिबंध के खिलाफ आंदोलनकारी सड़क पर उतरे थे और जो हुआ वो पूरी दुनिया ने देखा.
इस छोटे से हिमालयी देश ने अतीत में कई विद्रोह देखे हैं – जिनमें युवाओं की अग्रणी भूमिका रही है. पिछले साल, यहां प्रदर्शनकारियों ने एक हिंसक आंदोलन में राजशाही को उखाड़ फेंकने के डेढ़ दशक बाद राजशाही की वापसी की मांग की थी.
पहले की शासन व्यवस्था में वापसी की मांग लंबे समय तक चली Political अस्थिरता के बाद उठी, जहां 16 वर्षों में 13 बार Government बदली. लेकिन अब यह भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के खिलाफ अन्य जगहों पर हुए युवा आंदोलनों के बाद हो रहा है. ठीक ऐसे ही प्रदर्शन श्रीलंका और बांग्लादेश में हुए जिसके बाद दक्षिण एशियाई देशों में सत्ता परिवर्तन हुआ.
नेपाल की तरह श्रीलंका (2022) और बांग्लादेश (2024) में भी जेन जी ने बदलाव का झंडा बुलंद किया था.
जेन जी 1997 और 2012 के बीच पैदा हुई पीढ़ी को दिया गया शब्द है. इंटरनेट और social media सहित आधुनिक तकनीक के साए तले पली बढ़ी ये पहली पीढ़ी है.
श्रीलंका और बांग्लादेश में, यही पीढ़ी सड़क पर उतरी थी. नेपाल की तरह, अन्य दोनों देशों में भी तत्कालीन सत्ताधारी Government के खिलाफ आंदोलन हुए. तीनों ही मामलों में, विरोध प्रदर्शन गैर-Political रूप से शुरू हुए.
पैटर्न लगभग एक सा ही दिखा, प्रदर्शनकारी स्थापित दलों के संघर्ष में शामिल होने से बचने की कोशिश करते ही दिखे.
कोलंबो में, ईंधन और खाद्यान्न की बढ़ती कमी ने जेनरेशन जी और मिलेनियल्स के नेतृत्व वाले प्रदर्शनों को बढ़ावा दिया. जो धरना-प्रदर्शनों से शुरू हुआ, वह President भवन पर बड़े पैमाने पर कब्जे में बदल गया, जिसकी परिणति President गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे के रूप में हुई.
बाद में प्रदर्शनकारियों ने President आवास और Prime Minister कार्यालय पर धावा बोल दिया, जिससे इस आंदोलन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों का काफी ध्यान खींचा. परिणाम ये हुआ कि अधिकारियों के साथ मांगों पर बातचीत करने के लिए अनौपचारिक परिषदें तक गठित हुईं.
कई रिपोर्टों में प्रदर्शनकारियों के बीच Political ताकतों की मौजूदगी का संकेत दिया गया, जिनके अपने निहित स्वार्थ थे.
2024 में नई Government के सत्ता पर काबिज होने के बाद से, नीति और शासन में कुछ प्रमुख बदलाव हुए हैं.
बांग्लादेश में, छात्रों ने तत्कालीन Government की नौकरी-कोटा नीति के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू किए. प्रदर्शनकारियों का तर्क था कि आरक्षण में योग्यता की बजाय Political वफादारों को ज्यादा तरजीह दी गई है.
जैसे-जैसे प्रदर्शन बढ़ते गए, सुरक्षा बलों ने बल का प्रयोग किया. प्रदर्शनकारियों ने अंततः Prime Minister आवास को घेर लिया, जिसके कारण शेख हसीना को 5 अगस्त, 2024 को देश छोड़कर भागना पड़ा, जिससे उनका 16 साल का शासन समाप्त हो गया.
इसके बाद, छात्र नेताओं ने भविष्य के चुनाव लड़ने के लिए नेशनल सिटिजन पार्टी का गठन किया और नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. मुहम्मद यूनुस की देखरेख वाली अंतरिम Government में शामिल हो गए.
एक नियुक्त राष्ट्रीय सहमति आयोग ने संवैधानिक और सिविल सेवा सुधारों का मसौदा तैयार करना शुरू कर दिया, जिसका उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना और भाई-भतीजावाद पर अंकुश लगाना था.
नेपाल की तरह, बांग्लादेश का आंदोलन डिजिटल रूप से कुशल युवा कार्यकर्ताओं ने संचालित किया था, जिन्होंने पारंपरिक पार्टी ढांचों को दरकिनार करके वायरल वीडियो और एन्क्रिप्टेड चैट के माध्यम से विरोध प्रदर्शन आयोजित किए.
श्रीलंका की तरह, बांग्लादेश के छात्रों ने निरंतर शिविरों और जन-आंदोलन के माध्यम से Government को गिराने में सफलता प्राप्त की.
श्रीलंका में जहां अब एक निर्वाचित Government है, वहीं बांग्लादेश में सत्ता का हस्तांतरण एक अंतरिम Government को हुआ है, जहां जल्द ही चुनाव होने की संभावना नहीं है.
बांग्लादेश में छात्र नेताओं ने अपने आंदोलन को तेज़ी से एक औपचारिक Political दल में बदल दिया; काठमांडू में, जेन जी अभी भी जमीनी स्तर पर अपनी प्रामाणिकता बनाए रखने के लिए नेतृत्वविहीन गठबंधन और क्रमिक नीतिगत मांगों को प्राथमिकता दे रहे हैं.
नेपाल की जेन जी ने मौजूदा पार्टियों से जुड़ने से साफ इनकार कर दिया है. यह रुख मजबूती और कमजोरी दोनों प्रदान करता है.
दो पड़ोसी देशों में हुए बदलाव इशारा करते हैं कि ये प्रदर्शनकारी भी दलगत राजनीति में अंततः शामिल होंगे.
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केआर/