नई दिल्ली, 6 अक्टूबर . केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने रविवार को से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कांग्रेस पार्टी से सवाल पूछा कि उन्होंने अपनी सरकार के दौरान बाबा साहब को भारत रत्न से क्यों सम्मानित नहीं किया.
उन्होंने कहा कि बाबा साहब को भारत रत्न नहीं मिलने के पीछे एक बुनियादी बात समझनी होगी. जब बाबा साहब अंबेडकर को कैबिनेट में लाया गया था, उस समय भारत में कानून के क्षेत्र में सबसे ज्यादा शिक्षित और सबसे बड़ा विद्वान उनके अलावा कोई नहीं था. पंडित नेहरू, बाबा साहब का मुकाबला नहीं कर सकते थे. बाबा साहब का कद बहुत ऊंचा है. लेकिन, कांग्रेस पार्टी और जवाहरलाल नेहरू ने उनके नाम को कलंकित करने की हर संभव कोशिश की. कांग्रेस ने बाबा साहब को संसद में नहीं घुसने देने के लिए हर संभव कदम उठाया और जब उन्होंने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दिया, तब भी उनका अपमान करने का सिलसिला जारी रहा. आखिरकार 1956 में उन्होंने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया.
किरेन रिजिजू ने कहा, “आजाद भारत में हालात ऐसे थे कि पंडित नेहरू को डर था कि अगर बाबा साहब को मौका मिला तो देश में उनका कद और भी ऊंचा हो जाएगा. इसलिए कांग्रेस पार्टी ने कभी बाबा साहब अंबेडकर को भारत रत्न से सम्मानित नहीं किया और उनके काम को देश के सामने आने का मौका भी नहीं दिया. इसलिए मैं कहता हूं कि नेहरू से लेकर अब तक कांग्रेस पार्टी ने जितने भी प्रधानमंत्री दिए हैं, उनमें से किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि बाबा साहब को भारत रत्न मिलना चाहिए.”
उन्होंने कहा कि बाबा साहब ने कई बार कहा था कि कानूनी ज्ञान के अलावा उन्होंने अर्थशास्त्र, सामाजिक क्षेत्र और वाणिज्य समेत कई अन्य मुद्दों पर अध्ययन किया और ज्ञान प्राप्त किया है. वह देश के लिए योगदान दे सकते हैं. लेकिन, नेहरू ने उनको कहीं भी जगह नहीं दी. इसके बाद बाबा साहब ने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और उसके बाद भी नेहरू और कांग्रेस के लोगों ने उनको हराने के लिए हर संभव कदम उठाया. बाबा साहब जहां भी चुनाव लड़ने जाते थे, कांग्रेस उनको हराने के लिए पूरी ताकत लगा देती थी, जिससे बाबा साहेब काफी दुखी थे.
किरेन रिजिजू ने कहा कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को 1990 में भाजपा के समर्थन से बनी सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया. कांग्रेस उनसे नफरत करती थी और उनका नाम मिटाना चाहती थी. बाद में जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री बने तो गुजरात में संविधान यात्रा निकाली गई और फिर जब वे प्रधानमंत्री बने तो यहां दिल्ली आए और प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया.
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