नई दिल्ली, 6 जनवरी . आपने कई बार यह गौर किया होगा कि हम उसी के प्रति सबसे ज्यादा आकर्षित होते हैं, जो हमें इग्नोर करता है. इस तरह की समस्या आमतौर पर कम उम्र के युवक और युवतियों के बीच देखने को मिलती है. कई बार यह समस्या इतनी गंभीर हो जाता है कि यह लोगों की मानसिक मनोदशा को बुरी तरह प्रभावित कर जाता है.
इसी संबंध में ने फोर्टिस अस्पताल के मनोचिकित्सक सलाहकार नेहा अग्रवाल से खास बातचीत की.
नेहा अग्रवाल ने इस स्थिति को लेकर कहा कि यह बात बिल्कुल सच है कि हम उसी के प्रति ज्यादा आकर्षित होते हैं, जो हमें इग्नोर करता है. इसके पीछे मनोवैज्ञानिक दृष्टि से कई तरह की थ्योरी काम करती है, जिसमें सबसे पहली ‘थ्योरी ऑफ प्रिंसिपल’ है. इसके तहत जब हमें कोई चीज बड़ी मुश्किल से मिलती है, तो हम उसे खोने से डरते हैं और उसे सबसे ज्यादा अहम मानते हैं. मिसाल के तौर पर कोई पदार्थ सीमित मात्रा में किसी दुकान में आता है, तो उसकी कीमत में इजाफा दर्ज किया जाता है, ठीक उसी प्रकार से मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी ऐसा ही देखने को मिलता है, जब हमें कोई इंसान बहुत मुश्किल से अपने जीवन में मिलता है, तो हम उसे खोने से डरते हैं और ऐसी स्थिति में जब हमें वो इग्नोर करता है, तो हमें तकलीफ होती है.
डॉ नेहा अग्रवाल बताती हैं कि इन सबके पीछे तीसरा सबसे बड़ा कारण ‘थ्योरी ऑफ चेस’ है. इसके तहत हम उस व्यक्ति के पीछे ज्यादा भागते हैं, जो हमें बहुत ज्यादा पसंद होता है. लेकिन, कई बार जब हमें वो नहीं मिलता है, तो हम उसे चेस करते हैं. कई बार हम इसे एक चुनौती के रूप में लेते हैं और जब हम उसे प्राप्त कर लेते हैं, तो हमें लगता है कि इससे हमारी व्यक्तिगत गरिमा में इजाफा हुआ है . यह एक तरह की मनोवैज्ञानिक स्थिति होती है.
डॉ बताती हैं कि इसके अलावा एक तीसरी ‘थ्योरी ऑफ इनफोर्समेंट’ है. इसके तहत जब हमें किसी व्यक्ति से किसी भी प्रकार की कोई उम्मीद नहीं होती है, तो हम उसे इग्नोर करते हैं. ऐसी स्थिति में वो व्यक्ति हमें पाने की उम्मीद कर सकता है. यह एक प्रकार का मानसिक खेल होता है.
डॉ नेहा अग्रवाल ने कहा कि थ्योरी ऑफ इमोशन भी इन सभी स्थितियों में अहम भूमिका निभाती है. इसके तहत कई बार कोई व्यक्ति हमें इग्नोर करता है, तो कभी हमें अटेंशन देता है. ऐसी स्थिति में हमारा दिमाग कन्फ्यूज हो जाता है कि हमें उस व्यक्ति के साथ क्या करना है. क्या हमें उस व्यक्ति को अपनी जिंदगी में तवज्जो देना है या नहीं.
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इन सबसे कैसे बचा जाए? इस पर डॉ नेहा अग्रवाल बताती हैं कि सबसे पहले हमें यह पहचानना चाहिए कि कहीं सामने वाला व्यक्ति हमारे साथ किसी प्रकार का मनोवैज्ञानिक खेल तो नहीं खेल रहा है. ऐसी स्थिति में हमें अपने चारों तरफ एक बाउंड्री सेट करके रखना चाहिए और ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए. इसके अलावा, हमें खुद को बेहतर बनाने पर काम करना चाहिए. आप अपने हेल्थ पर या अपनी फिटनेस पर ऐसी स्थिति में ध्यान दे सकते हैं. इसके अलावा, ऐसी स्थिति में आप अपना समय ऐसे लोगों के साथ बिताएं, जो आपको तवज्जो देते हों.
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