क्यों और किसे दिया जाता है वीरता पुरस्कार? जानें कब हुई इस परंपरा की शुरुआत

नई दिल्ली, 26 जनवरी . भारत ने 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन से आजादी प्राप्त की थी. इसके बाद से हर भारतवासी इस दिन को गर्व और खुशी से स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाता है. इसके साथ ही स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जान की बाजी लगाने वाले वीरों के बलिदान को भी याद किया जाता है.

आजादी के बाद वीरता पुरस्कारों के माध्यम से सरकार ने उन सैनिकों, अधिकारियों और आम नागरिकों को सम्मानित करना शुरू किया जिन्होंने साहस, बहादुरी और देशभक्ति का परिचय दिया है. वीरता पुरस्कारों की शुरुआत 1950 के दशक में हुई, जिनमें प्रमुख रूप से परम वीर चक्र, महावीर चक्र, वीर चक्र और शौर्य चक्र जैसे पुरस्कार शामिल हैं. इसका मुख्य उद्देश्य देश के उन महान नायकों और वीरों को सम्मानित करना था जिन्होंने देश की सुरक्षा और अखंडता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है.

परम वीर चक्र : यह भारतीय सेना का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है. यह उन सैन्य कर्मियों को दिया जाता है जिन्होंने युद्ध के दौरान असाधारण वीरता और साहस का प्रदर्शन किया हो. इसे युद्ध के दौरान उच्चतम साहस के लिए दिया जाता है. यह मेडल 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आया था.

महावीर चक्र : परम वीर चक्र के बाद महावीर चक्र सम्मान आता है. यह पुरस्कार भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना के जवानों को दिया जाता है जिन्होंने युद्ध के दौरान असाधारण साहस और वीरता का परिचय दिया है. यह मेडल सफेद और नारंगी रंग के फीते से बंधा होता है. यह भी 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आया.

वीर चक्र : यह पुरस्कार उन सैनिकों को दिया जाता है जिन्होंने अपने जीवन को संकट में डालकर असाधारण साहस का प्रदर्शन किया हो. यह मेडल गोलाकार होता है, जिसके बीच में पांच नोक बने होते हैं. यह भी 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आया.

अशोक चक्र : इस पुरस्कार की शुरुआत 1952 में हुई थी, उस वक्त इसका नाम अशोक चक्र श्रेणी-1 था. बाद में जनवरी 1967 को इसका नाम बदलकर सिर्फ अशोक चक्र कर दिया गया. यह पदक शांति काल में अदम्य साहस का परिचय देने और जान न्योछावर करने के लिए दिया जाता है.

कीर्ति चक्र : इस सम्मान की स्थापना 1952 में अशोक चक्र श्रेणी–2 के नाम से हुई थी. जनवरी 1967 में इसका नाम बदलकर कीर्ति चक्र किया गया. यह पुरस्कार सेना, वायुसेना और नौसेना के अधिकारियों और जवानें के अलावा, टेरिटोरियल आर्मी और आम नागरिकों को भी दिया जाता है. अब तक 198 बहादुरों को यह पुरस्कार मरणोपरांत दिया गया है.

शौर्य चक्र: यह पुरस्कार उन व्यक्तियों को दिया जाता है जिन्होंने असाधारण बहादुरी और शौर्य का प्रदर्शन किया हो, विशेषकर युद्ध की स्थिति में. इसकी शुरुआत 1952 में अशोक चक्र श्रेणी-3 के नाम से हुई थी और 1967 में इसे शौर्य चक्र का नाम दिया गया. भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना के वीर जवानों को यह पदक दिया जाता है. शौर्य चक्र कांसे से बना हुआ गोलाकार पदक होता है. यह मेडल पीस टाइम गैलेंट्री अवॉर्ड की श्रेणी में आता है.

आजादी के पश्चात भारत सरकार ने 26 जनवरी 1950 को परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र नामक प्रथम तीन वीरता पुरस्कार स्थापित किए गए, जो 15 अगस्त 1947 से प्रभावी माने गए. इसके बाद, सरकार ने 4 जनवरी 1952 को अन्य तीन वीरता पुरस्कार अशोक चक्र श्रेणी-1, अशोक चक्र श्रेणी-2 और अशोक चक्र श्रेणी-3 स्थापित किए गए, जो 15 अगस्त 1947 से प्रभावी माने गए. इसके बाद जनवरी 1967 में इन पुरस्कारों का नाम बदलकर क्रमशः अशोक चक्र, कीर्ति चक्र और शौर्य चक्र कर दिया गया.

इन वीरता पुरस्कारों की घोषणा साल में दो बार की जाती है. पहले गणतंत्र दिवस के अवसर पर और फिर स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर. इन पुरस्कारों के वरीयता क्रम में हिसाब से सबसे पहले परमवीर चक्र आता है. इसके बाद अशोक चक्र, महावीर चक्र, कीर्ति चक्र, वीर चक्र और शौर्य चक्र आता है. इन पुरस्कारों के माध्यम से सरकार वीरों की वीरता को सलाम करती है और उनकी बहादुरी को भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनाती है.

वीरता पुरस्कारों के द्वारा सरकार अपने वीर सैनिकों और नागरिकों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करती है, जो समय-समय पर देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने में पीछे नहीं रहते. इन पुरस्कारों को हासिल करने वाले न केवल उच्च रैंक के अधिकारी होते हैं, बल्कि आम नागरिक भी होते हैं जो अदम्य बहादुरी दिखाते हैं.

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