जब उस्ताद विलायत खान ने पद्म विभूषण पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था

Mumbai , 27 अगस्त . उस्ताद विलायत खान भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान सितार वादक थे. वे इमदादखानी घराने से ताल्लुक रखते थे और अपनी अनोखी गायकी अंग शैली के लिए प्रसिद्ध हुए, जिसमें सितार से गायन की तरह भावनाएं और आलाप झलकते हैं. उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाई और दुनिया भर के मंचों पर India का गौरव बढ़ाया.

उनका योगदान केवल वादन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने सितार की तकनीक और शैली को एक नई ऊंचाई दी. उस्ताद विलायत खान को भारतीय संगीत जगत में सितार का बादशाह माना जाता है.

विलायत खान का जन्म 28 अगस्त, 1928 को पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के गौरीपुर, मैमनसिंह में हुआ था. उनके पिता, इनायत खान, अपने समय के एक प्रमुख सितार और ‘सुरबहार’ (बास सितार) वादक थे. बचपन में उनके पिता का देहांत हो गया था, तब उनके परिवारवालों ने विलायत को रियाज करवाया. उन्होंने सीखने में अपना सर्वस्व लगा दिया और अपने वंश में सबसे प्रसिद्ध नाम बन गए. इतना ही नहीं, उनके सम्मान में उनके घराने को विलायतखानी घराना के नाम से जाना जाने लगा.

इमदाद खान, इनायत खान और इमरत खान के साथ उन्हें गायकी अंग सितार बाज, या विलायतखानी बाज, के निर्माण और विकास का श्रेय दिया जाता है. उस्ताद विलायत खान को 1960 के दशक में India Government ने पद्मश्री देने की घोषणा की. तब उन्होंने यह सम्मान लेने से साफ इनकार कर दिया. इस बात का जिक्र नमिता देवीदयाल की किताब ‘द सिक्स्थ स्ट्रिंग ऑफ विलायत खान’ में है.

विलायत खान का मानना था कि संगीत में उनका योगदान किसी भी Governmentी सम्मान से ऊपर है. उन्होंने कहा था कि अगर उन्हें यह पुरस्कार लेना ही होगा, तो वह उन्हें तब मिलेगा जब वे Government से कहेंगे कि वे इसके लिए तैयार हैं.

साल 2000 में उन्हें एक बार फिर पद्म विभूषण से सम्मानित करने की घोषणा हुई. लेकिन विलायत खान ने इस बार भी इसे लेने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि उनके शिष्य पंडित रवि शंकर को पहले India रत्न (India का सर्वोच्च नागरिक सम्मान) दिया गया था और उन्हें यह स्वीकार नहीं था कि एक गुरु को उनके शिष्य के बाद सम्मानित किया जाए. यह घटना उनकी कला के प्रति सम्मान और उनके स्वाभिमान को दर्शाती है.

अपने करियर के एक पड़ाव पर उस्ताद विलायत खान ने India में प्रदर्शन करना बंद कर दिया था. उनका मानना था कि India में शास्त्रीय संगीत को वह सम्मान नहीं मिल रहा है जिसका वह हकदार है. उन्होंने कहा था कि जब तक संगीत को सही सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक वह यहां नहीं बजाएंगे. कई सालों तक उन्होंने ऐसा ही किया और सिर्फ विदेश में ही अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किए. यह उनके सिद्धांतों और संगीत के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है.

जेपी/जीकेटी