बेतिया, 30 जनवरी . 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या की घटना को पूरा देश ‘शहीद दिवस’ के रूप में याद करता है. लेकिन, बहुत कम लोग जानते हैं कि महात्मा गांधी की हत्या की साजिश 1917 में भी रची गई थी. इस साजिश को नाकाम करने वाले थे बत्तख मियां, जो महात्मा गांधी की जान बचाने वाले एक गुमनाम नायक हैं.
बत्तख मियां का जन्म पश्चिमी चंपारण जिले के एकवा परसौनी गांव में हुआ था. वह महात्मा गांधी के समय में अंग्रेजों के रसोईया थे. 1917 में अंग्रेजों ने गांधी जी की हत्या की साजिश रची और गांधी जी को जहर मिला दूध देने के लिए बत्तख मियां को चुना. बत्तख मियां को इस साजिश का पता चल गया और उन्होंने गांधी जी को दूध पीने से रोकने के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद से आग्रह किया. इसके बाद गांधी जी की जान बच गई, लेकिन अंग्रेजों ने बत्तख मियां को सजा दी और उनके घर को आग के हवाले कर दिया. उन्हें जेल भेजकर कई यातनाएं दी गईं.
बत्तख मियां के पोते कलाम मियां के साथ बातचीत में बताते हैं कि हमारे दादा (बत्तख मियां) अंग्रेजों के समय में काम करते थे. 1917 में महात्मा गांधी और राजेंद्र प्रसाद जब मोतिहारी आए, तो अंग्रेज़ों ने हमारे दादा से दूध में जहर मिलाकर गांधी जी को देने को कहा. लेकिन हमारे दादा जी ने मना कर दिया. अंग्रेज़ों ने उन्हें धमकी दी और लालच भी दिया कि हम तुम्हें अच्छी नौकरी देंगे. अब नौकरी वाली बात थी. गरीबी वाली बात थी. इसके बाद वो दूध लेकर गए, लेकिन उनकी आंखों में आंसू आ गए. वो सोचने लगे कि अगर गांधी जी मर जाएंगे, तो देश कैसे आजाद होगा. इसके बाद मेरे दादाजी ने दूध का गिलास रखते हुए बता दिया कि इसमें जहर है. उस समय राजेंद्र बाबू भी वहीं मौजूद थे. इसके बाद मेरे दादाजी ने बातचीत करते हुए दूध का गिलास नीचे गिरा दिया. इसके बाद वहां बिल्ली आई, जो दूध को चाटकर बाद में मर गई. इसके बाद गांधी जी वहां से चले गए. वहीं, अंग्रेजों को जब इस बारे में पता लगा, तो उन्होंने मेरे दादाजी को जेल भेज दिया और हमारे घर को आग के हवाले कर दिया. अंग्रेजों ने हमारे परिवार को बर्बाद कर दिया.
उन्होंने कहा कि जब देश आजाद हुआ, तो राजेंद्र बाबू मोतिहारी आए. इस दौरान कई लोग उनसे मिलने गए, तो मेरे दादाजी भी गए. उस वक्त राजेंद्र बाबू ने मेरे दादाजी को देख लिया. राजेंद्र बाबू ने उन्हें स्टेज पर बुलाकर सम्मानित किया. स्टेज पर राजेंद्र बाबू ने कहा कि अगर महात्मा गांधी 1917 में मर जाते, तो देश आजाद नहीं हो पाता. ये हमारे बत्तख भाई की देन है कि देश आजाद हो पाया .
उन्होंने कहा कि जब हमारे दादा का इंतकाल हो गया, तो हमारे पास कोई सहारा नहीं था. हमारे अब्बा ने राष्ट्रपति से मुलाकात की और अपनी स्थिति बताई. उसी समय बिहार सरकार से 35 बीघा ज़मीन मिली, लेकिन वह जमीन नदी में चली गई और हम अपनी झोपड़ी में रहकर किसी तरह अपना जीवन चला रहे हैं. अब हमें ज़मीन की जरूरत है, ताकि हम अपने बच्चों को एक बेहतर जीवन दे सकें.
उन्होंने कहा कि हमने डीएम साहब से मिलकर आवेदन किया है और उम्मीद करते हैं कि हमें जमीन मिले, ताकि हम शहर के पास घर बना सकें और एक छोटा सा व्यवसाय कर अपने बच्चों के लिए बेहतर जीवन प्रदान कर सकें.
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एसएचके/