जब नींद से जगा एक अर्थशास्त्री बना भारत का ‘एक्सीडेंटल’ वित्त मंत्री, मनमोहन सिंह और 1991 के आर्थिक सुधारों की कहानी

New Delhi, 25 सितंबर . जब भी India के आर्थिक इतिहास में निर्णायक मोड़ों की बात होती है, तो देश के 14वें Prime Minister रहे मनमोहन सिंह का नाम भी उभर कर सामने आता है. उन्हें अक्सर ‘India का एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ कहा जाता है, लेकिन इससे भी पहले वे देश के ‘एक्सीडेंटल वित्त मंत्री’ थे. एक ऐसा दायित्व, जो उन्होंने न योजना और न ही राजनीति से पाया, बल्कि जो उन्हें ऐसे समय सौंपा गया जब देश गहरे आर्थिक संकट में डूबा हुआ था.

कहानी 1990 के दशक की है. इस दशक की शुरुआत India के लिए चुनौतियों से भरी थी. 21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या हुई थी और उसके बाद देश की कमान संभालने की जिम्मेदारी विश्वनाथ प्रताप सिंह के कंधों पर आई. उसी दौर में Political अस्थिरता के अलावा, India की अर्थव्यवस्था बढ़ते राजकोषीय असंतुलन, मुद्रास्फीति और कम होते अंतरराष्ट्रीय विश्वास के कारण गंभीर तनाव से जूझ रही थी. उस समय वीपी सिंह की सबसे बड़ी खोज मनमोहन सिंह ही थे.

1990 में जिनेवा में दक्षिण आयोग के महासचिव के रूप में अपनी जिम्मेदारियां निभाकर मनमोहन सिंह India लौटे थे. इस समय वीपी सिंह की Government थी और मनमोहन सिंह को इकोनॉमिक पॉलिसी टीम का हिस्सा बनना था. बाद में वे आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बनाए गए, लेकिन पद स्वीकार करने से पहले ही वीपी सिंह की Government चली गई.

चंद्रशेखर के नेतृत्व में नई Government बनने के बाद मनमोहन सिंह को Prime Minister कार्यालय में आर्थिक सलाहकार की नियुक्ति मिली, लेकिन यह Government भी लंबे समय तक नहीं चली. फिर पीवी नरसिम्हा राव Prime Minister बने थे, लेकिन अर्थव्यवस्था लगभग डूब चुकी थी. पीवी नरसिम्हा राव को एक ऐसे विद्वान की जरूरत थी, जो India को अर्थव्यवस्था के संकट से उभार सके.

वित्त मंत्री के तौर पर शुरुआत में नाम आईजी पटेल था, लेकिन उन्होंने पद लेने से मना कर दिया. इससे पीवी नरसिम्हा राव के सामने एक नया संकट खड़ा हुआ था और सवाल यही था कि वित्त मंत्री किसे बनाया जाए? बाद में यह खोज मनमोहन सिंह के नाम पर जाकर खत्म हुई.

यहीं से मनमोहन सिंह के ‘एक्सीडेंटल वित्त मंत्री’ की कहानी शुरू हुई. हालांकि, इससे आगे का किस्सा और भी दिलचस्प है, क्योंकि मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री चुने जाने के फैसले की जानकारी खुद पीवी नरसिम्हा राव की तरफ से नहीं दी गई थी, बल्कि यह संदेश लेकर पीसी एलेक्जेंडर गए थे. यह घटनाक्रम शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले का था.

पीसी एलेक्जेंडर, पीवी नरसिम्हा राव के प्रिंसिपल सेक्रेटरी हुआ करते थे. 20 जून 1991 की रात मनमोहन सिंह जब सो रहे थे, क्योंकि उनका नीदरलैंड से लौटना हुआ था, उसी बीच पीसी अलेक्जेंडर ने उनके घर जाकर पीवी नरसिम्हा राव का संदेश पहुंचाया कि उन्हें वित्त मंत्री बनना है.

मनमोहन सिंह को पीसी एलेक्जेंडर की बात पर यकीन नहीं था. वे बात को सीरियसली लेने की बजाय अगले दिन यूजीसी ऑफिस पहुंच गए. अगली सुबह शपथ ग्रहण का समय आया तो मनमोहन सिंह समारोह में नजर नहीं आए. पीवी नरसिम्हा राव के कहने पर तुरंत खोज शुरू की गई.

पता चला कि मनमोहन सिंह यूजीसी दफ्तर में हैं. पीवी नरसिम्हा राव ने उनसे कहा कि ‘क्या एलेक्जेंडर ने तुम्हें नहीं बताया कि वित्त मंत्री के तौर पर शपथ लेनी है?’ इस पर मनमोहन सिंह ने वही शब्द दोहराए कि उन्होंने एलेक्जेंडर की बात को गंभीरता से नहीं लिया. इसके बाद नरसिम्हा ने कहा, “नहीं, तुम तैयार होकर शपथ ग्रहण समारोह में आओ.”

इस तरह मनमोहन सिंह देश के वित्त मंत्री बने. 2018 में अपनी पुस्तक ‘चेंजिंग इंडिया’ के विमोचन के अवसर पर मनमोहन सिंह ने खुद देश से वह किस्सा शेयर किया था.

बाद में वित्त मंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह ने अपनी नीतियों और रणनीति से देश को आर्थिक संकट से बाहर निकाला. उन आर्थिक सुधारों के लिए व्यापक नीति के निर्धारण में मनमोहन सिंह की भूमिका को सभी ने सराहा.

डीसीएच/जीकेटी