अरियलूर, 27 जुलाई . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने Sunday को तमिलनाडु के गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में ‘आदि तिरुवथिराई उत्सव’ में हिस्सा लिया. उन्होंने कहा कि चोल राजाओं ने अपने राजनयिक और व्यापारिक संबंधों का विस्तार श्रीलंका, मालदीव और दक्षिण-पूर्व एशिया तक किया था. ये भी एक संयोग है कि मैं Saturday को ही मालदीव से लौटा हूं और अभी तमिलनाडु में इस कार्यक्रम का हिस्सा बना हूं.
चोल वंश के महान सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती पर गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने सम्राट के सम्मान में स्मारक सिक्का भी जारी किया. कार्यक्रम में भजन प्रस्तुति की गई, जिसे सुनकर प्रधानमंत्री मोदी भी भावविभोर हो गए.
उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि मैं काशी का सांसद हूं और जब मैं ‘ऊं नमः शिवाय’ सुनता हूं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. प्रधानमंत्री ने कहा कि शिव दर्शन की अद्भुत ऊर्जा, श्री इलैयाराजा का संगीत और मंत्रोच्चार, यह आध्यात्मिक अनुभव मन को भावविभोर कर देता है.
बृहदेश्वर शिव मंदिर का निर्माण शुरू होने के 1000 साल के ऐतिहासिक अवसर पर सावन के पवित्र महीने में मुझे भगवान बृहदेश्वर शिव के चरणों में पूजा करने का सौभाग्य मिला है. मैंने इस मंदिर में देशभर के 140 करोड़ लोगों के कल्याण और देश की निरंतर प्रगति के लिए प्रार्थना की. भगवान शिव का आशीर्वाद सभी को मिले, यही मेरी कामना है. इस दौरान पीएम मोदी ने ‘हर-हर महादेव’ का जयकारा भी लगाया.
सांस्कृतिक मंत्रालय की सराहना करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि विभाग ने यहां अद्भुत प्रदर्शनी लगाई है. यह ज्ञानवर्धक और प्रेरक है. हमें गर्व होता है कि 1000 साल पहले हमारे पूर्वजों ने किस तरह मानव कल्याण को लेकर दिशा दी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘सेंगोल’ का उल्लेख किया. उन्होंने कहा, “जब देश की नई संसद का लोकार्पण हुआ, तो हमारे शिव आदीनम के संतों ने उस ऐतिहासिक आयोजन का आध्यात्मिक नेतृत्व किया था. तमिल संस्कृति से जुड़े ‘सेंगोल’ को संसद में स्थापित किया गया. मैं आज भी उस पल को याद करता हूं तो गौरव से भर जाता हूं.”
उन्होंने कहा कि चोल साम्राज्य का इतिहास और उसकी विरासत भारत के वास्तविक सामर्थ्य का प्रतीक है. यह उस भारत के सपने की प्रेरणा है, जिसे लेकर आज हम विकसित भारत के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रहे हैं. चोल राजाओं ने भारत को सांस्कृतिक एकता में पिरोया था. आज हमारी सरकार चोल युग के उन्हीं विचारों को आगे बढ़ा रही है. काशी-तमिल संगमम् और सौराष्ट्र-तमिल संगमम् जैसे आयोजनों के माध्यम से हम एकता के सदियों पुराने सूत्रों को और अधिक मजबूत कर रहे हैं.
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डीसीएच/केआर