जब अर्जन सिंह ने कहा ‘एक घंटा दो’, और इतिहास बदल गया… भारत के पहले और एकमात्र 5-स्टार रैंक के वायुवीर की कहानी

New Delhi, 15 सितंबर . यह कहानी है ‘पांच सितारा’ रैंक तक पहुंचने वाले एकमात्र मार्शल अर्जन सिंह की, जिनकी रणनीति ने 1965 भारत-Pakistan युद्ध का रुख बदल दिया था. India के सामने कठिन परीक्षा की घड़ी थी, जब Pakistan ने ‘ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम’ शुरू किया. इस युद्ध में Pakistan के इरादे कश्मीर लेने के थे.

India तीन साल पहले 1962 में एक जंग लड़ चुका था, जो चीन के साथ थी. Pakistan ने फायदा उठाने की कोशिश इस बल पर की कि चीन के खिलाफ लड़कर India अब भी कमजोर है. ग्रैंड स्लैम का विचार President अयूब खान का था. इसके पहले अयूब खान के दिमाग में ‘ऑपरेशन जिबरॉल्टर’ आया था. जब अयूब ने ‘जिबरॉल्टर’ (कश्मीर को India से अलग करने के लिए एक गोरिल्ला ऑपरेशन) की योजनाओं की समीक्षा की, तो मानचित्र पर अखनूर की ओर इशारा किया था. अखनूर पर कब्जा करने से, कश्मीर तक India का स्थलीय आपूर्ति मार्ग कट जाता.

समाचारों और लेखों में जिक्र मिलता है कि ‘ऑपरेशन जिबरॉल्टर’ की जिम्मेदारी Pakistanी सेना के 5 दस्तों को दी गई थी. इन दस्तों को तारिक, कासिम, खालिद, सलाहउद्दीन और गजनवी जैसे नाम दिए गए थे. इसकी विफलता के बाद ‘ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम’ को Pakistan ने शुरू किया था. अयूब खान की ‘ग्रैंड स्लैम’ की सोच का उल्लेख भारतीय वायुसेना की वेबसाइट पर मिलता है.

Pakistan की फौज अंधेरे में करीब साढ़े 3 बजे युद्ध शुरू कर चुकी थी. Pakistanी फौज के बख्तरबंद हमले ने महत्वपूर्ण शहर अखनूर को निशाना बनाया था और सुबह 9 बजे तक चंब पर कब्जा हो चुका था. सामरिक और रणनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण अखनूर सेक्टर को India किसी भी कीमत पर खोने नहीं दे सकता था.

तब ऑर्डर मिला अर्जन सिंह को, जो उस दौर में भारतीय वायुसेना का नेतृत्व कर रहे थे. दिल्ली में साउथ ब्लॉक स्थित रक्षा मंत्रालय के कमरा नंबर 108 में मीटिंग बुलाई गई. मीटिंग में रक्षा मंत्री यशवंतराव चव्हाण और रक्षा मंत्रालय के विशेष सचिव एचसी सरीन और एयर मार्शल चीफ अर्जन सिंह थे. अर्जन सिंह को बैठक में हवाई सहायता के अनुरोध के लिए बुलाया गया था.

भारतीय वायुसेना की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, जब अर्जन सिंह से पूछा गया कि भारतीय वायुसेना को ऑपरेशन के लिए कितना समय चाहिए, तो अर्जन सिंह का जवाब था, “सिर्फ एक घंटा.” यह कोई हवा में बोली हुई बात नहीं थी, बल्कि अर्जन सिंह अपने अनुभव से स्थिति को भांप चुके थे और इसीलिए एक घंटे का वक्त तय कर दिया गया.

शाम लगभग पौने 5 बजे आदेश रिकॉर्ड हुआ, और उसके बाद अगले एक घंटे में आसमान में भारतीय वायुसेना के 36 एयरक्राफ्ट उड़ रहे थे. अपने वचन के अनुसार, वायुसेना ने एक घंटे में ही Pakistanी आक्रमण को ध्वस्त कर दिया. इंडियन एयरफोर्स ने Pakistanी टैंकों के हमले को चंब में रोक दिया था. उन्होंने Pakistan के मुख्य सैन्य बलों को इतना नुकसान पहुंचाया था कि उन्हें समझ आ चुका था कि वह अब अखनूर पर हमला नहीं कर सकते थे. इसके बाद भारतीय आर्मी भी जोश के साथ Pakistan पर टूट पड़ी थी.

इस तरह कश्मीर पर कब्जा करने की अयूब खान की भव्य योजनाओं को विफल करने का श्रेय भारतीय सेना और भारतीय वायुसेना को जाता है, और युद्ध के दौरान वायुसेना का नेतृत्व करने का श्रेय अर्जन सिंह को जाता है.

बाद में 1965 के युद्ध में उनके नेतृत्व के लिए अर्जन सिंह को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया और फिर सीएएस का पद बढ़ाकर एयर चीफ मार्शल कर दिया गया.

अर्जन सिंह भारतीय वायुसेना के पहले एयर चीफ मार्शल बने. जुलाई 1969 में वे सेवानिवृत्त हुए और उसके बाद स्विट्जरलैंड में राजदूत का पद स्वीकार किया. वे भारतीय वायुसेना में अपने कार्यकाल के अंत तक एक फ्लायर रहे, अग्रिम स्क्वाड्रनों और इकाइयों का दौरा किया और उनके साथ उड़ान भरी. अर्जन सिंह भारतीयों की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा के स्रोत थे और आज भी हैं.

उनकी सेवाओं के सम्मान में India Government ने जनवरी 2002 में अर्जन सिंह को वायु सेना मार्शल का पद प्रदान किया, जिससे वे भारतीय वायु सेना के पहले और एकमात्र ‘5 सितारा’ रैंक के अधिकारी बन गए. 2016 में पानागढ़ वायु सेना स्टेशन का नाम बदलकर अर्जन सिंह वायु सेना स्टेशन कर दिया गया.

16 सितंबर 2017, ऐसा दिन था, जिसने इस वायुवीर को हमेशा के लिए न सिर्फ वायुसेना, बल्कि पूरी दुनिया से दूर कर दिया. उनका निधन भारतीय वायुसेना के एक गौरवशाली युग का अंत था.

डीसीएच/