बेंगलुरु, 21 नवंबर . मौलाना फजलुर रहीम मुजद्दिदी ने वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर जारी बहस के बीच खुलकर अपनी बात रखी.
उन्होंने कहा, “जब यह मुद्दा सामने आया कि सरकार वक्फ़ कानून में संशोधन करने जा रही है, तो इसका सीधा असर मुस्लिम समुदाय पर होने वाला था. विशेष रूप से 8 अगस्त को संसद में जब यह बिल पेश किया गया, उससे पहले ही यह जानकारी मिलने लगी थी कि सरकार वक्फ़ एक्ट, 1995 में संशोधन करने वाली है. इससे पहले के कुछ दिनों में ही इस बिल का ड्राफ्ट भी सामने आ चुका था, और इस ड्राफ्ट को देखकर यह अंदाजा हो गया था कि सरकार वक्फ़ को समाप्त करने की दिशा में कदम उठाने वाली है.”
उन्होंने कहा, “हमने यह महसूस किया कि यह एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि यह बिल केवल वक्फ़ को खत्म करने का नहीं, बल्कि इस तरह के एक ऐतिहासिक कानून को बदलने का प्रयास था, जो मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और सामाजिक हितों से जुड़ा हुआ था. जब पिछले सरकार में इस मुद्दे पर कोई बातचीत नहीं हुई थी, तो हमें अंदाजा हो गया था कि यह बिल किसी न किसी रूप में फिर से सामने आएगा और जैसा कि हम समझ रहे थे, नयी सरकार ने इसे पेश किया. यह सिर्फ एक संशोधन नहीं था, बल्कि 42 संशोधनों के साथ एक महत्वपूर्ण बदलाव था, जो वक्फ़ के अस्तित्व को ही खतरे में डाल सकता था.”
उन्होंने कहा, “जब यह बिल संसद में पेश हुआ, तो हमारी तैयारी पहले से ही थी. हम पहले ही 50-60 सांसदों से मिल चुके थे, और इस मुद्दे पर हमारा परिप्रेक्ष्य बहुत मजबूत था. जब यह चर्चा संसद में शुरू हुई, तो विपक्ष और उनके सहयोगी दलों ने भी इसका विरोध किया. हम समझते हैं कि इसका दबाव सरकार पर था, और इसी वजह से यह बिल जॉइंट पार्लियामेंटरी कमेटी को भेजा गया. इसका उद्देश्य था कि इस पर और गहराई से विचार किया जाए और विभिन्न पक्षों की राय ली जाए.”
उन्होंने कहा, “ इस पूरे मसले में मुस्लिम समुदाय के संगठनों और वक्फ बोर्ड ने अपनी चिंता व्यक्त की. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यह संशोधन वक्फ को खत्म करने की दिशा में पहला कदम होगा. भारत के मुसलमानों के लिए यह एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा था, क्योंकि यह उनके धार्मिक अधिकारों और संपत्तियों से जुड़ा हुआ था. इससे पहले भी जब इस तरह के बिल लाए गए थे, तो मुस्लिम संगठनों से बातचीत कर उनके सुझाव लिए गए थे, लेकिन इस बार जो संशोधन लाया गया था, उससे उनकी राय और चिंताएं बिल्कुल स्पष्ट थीं. उनका मानना था कि यह बदलाव उनके अधिकारों को सीमित कर देगा और उनकी संपत्तियों के नियंत्रण को कमजोर कर देगा.”
उन्होंने कहा, “सभी मुस्लिम संगठनों की राय एक जैसी थी, और वे इस संशोधन को मंजूर करने के खिलाफ थे. उनका कहना था कि सरकार को इस संशोधन के दौरान मुस्लिम समुदाय के दृष्टिकोण और उनके अधिकारों को समझने की जरूरत थी. इसलिए, इस संशोधन के खिलाफ मुस्लिम संगठनों की एकजुटता और उनकी पूरी ताकत के साथ सरकार से यह मांग थी कि इस बिल को पारित न किया जाए.”
–
एसएचके/