विश्वकर्मा जयंती आज, ब्रह्मांड के प्रथम इंजीनियर की पूजा से दूर होते हैं कष्ट मिलता है लाभ

नई दिल्ली, 10 फरवरी . ब्रह्मांड के प्रथम इंजीनियर यानी विश्वकर्मा जी की जयंती देश के कुछ राज्यों में आज मनाई जा रही है. शास्त्रों के अनुसार माघ शुक्ल त्रयोदशी तिथि को इनके पूजन का विशेष महत्व है. इस बार की तिथि 10 फरवरी को पड़ी है. माघ वाली विश्वकर्मा जयंती गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में हर्षोल्लास से मनाई जाती है.

भगवान विश्वकर्मा जी को देवताओं का शिल्पी माना गया है. उन्होंने ब्रह्मांड की हर वस्तु की रचना की है, इसलिए आम भाषा में उन्हें ब्रह्मांड का इंजीनियर भी कहा जाता है. उन्होंने कई नगर, अस्त्र-शस्त्र, कल कारखानों, पुष्पक विमान, कुबेरपुरी, स्वर्ग लोक, सोने की लंका, विष्णु जी के सुदर्शन चक्र आदि समेत कई बड़े मंदिरों और महलों का निर्माण किया. मान्यता के अनुसार अगर पूरे विधि-विधान से इनकी पूजा की जाए तो जीवन के कष्ट समाप्त होते हैं, व्यापार में आने वाली कठिनाइयां दूर होकर घर में हमेशा धन-संपदा का वास रहता है.

10 फरवरी का अमृत काल दोपहर 03:36 से शाम 05:12 तक है और गोधूलि मुहूर्त शाम 6 बजकर 5 मिनट से 06:31 तक है. मान्यता है कि इस समय पूजा श्रेयस्कर होती है. पूजा करते समय कुछ मंत्रोच्चारण भी श्रेयस्कर होता है. शास्त्रानुसार – ॐ आधार शक्तपे नमः, ॐ कूमयि नमः, ॐ अनंतम नमः, ॐ पृथिव्यै नमः का जाप धन-संपदा में वृद्धि और व्यापार में उन्नति का कारण बनता है.

पुराणों में ब्रह्मांड के इंजीनियर विश्वकर्मा के पांच अवतारों का वर्णन मिलता है- जिनमें से पहले विराट विश्वकर्मा (सृष्टि के रचयिता), दूसरे धर्मवंशी विश्वकर्मा (महान् शिल्प विज्ञान विधाता और प्रभात पुत्र), तीसरे अंगिरावंशी विश्वकर्मा (आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र), चौथे सुधन्वा विश्वकर्मा (महान् शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता अथवा ऋषि के पौत्र) और पांचवें भृगुवंशी विश्वकर्मा जो उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य माने जाते हैं और शुक्राचार्य के पौत्र हैं.

भगवान विश्वकर्मा की जयंती मनाकर आस्थावान सृष्टि को खूबसूरत बनाने वाले देव का आभार व्यक्त करते हैं. मशीनों, कल कारखानों की विशेष पूजा कर अपने जीवन में उनका मार्गदर्शन और सुरक्षा की कामना करते हैं.

वैसे भगवान विश्वकर्मा की जयंती 16-17 सितंबर को भी ज्यादातर राज्यों में मनाई जाती है. वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल कन्या संक्रांति के दिन विश्वकर्मा पूजा का विधान है. यह प्रायः भादो मास के शुक्ल पक्ष में पड़ता है.

केआर/