विनायक पांडुरंग करमरकर : पद्मश्री से पुरस्कृत भारत के प्रसिद्ध शिल्पकार

नई दिल्ली, 1 अक्टूबर . विनायक पांडुरंग करमरकर ऊर्फ नानासाहेब करमरकर, एक प्रसिद्ध शिल्पकार थे. उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज की साढ़े तेरह फीट ऊंची कांस्य से बनी एकल प्रतिमा बनाई. ऐसी मूर्ति बनाने वाले वह भारत के पहले मूर्तिकार बने. सजीवता और समानता उनकी मूर्तियों की पहचान मानी जाती है.

विनायक का जन्म 2 अक्टूबर, 1891 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के सासवाने में हुआ था और उन्होंने 13 जून, 1967 मुंबई में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था. एक मशहूर मूर्तिकार के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने वाले नानासाहेब करमरकर किसी पहचान के मोहताज नहीं.

उन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्तियों के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है. अलीबाग के पास सासवाने गांव में उनके घर पर करमरकर मूर्तिकला संग्रहालय स्थापित किया गया है. जहां उनकी बनाई गई मूर्तियों को उनके बंगले में प्रदर्शित किया गया है. अपनी मूर्तिकला के माध्यम से उन्होंने देश-विदेश में बहुत सम्मान पाया. साल 1964 में मूर्तिकार विनायक पांडुरंग करमरकर को ‘पद्मश्री’ पुरस्कार से नवाजा गया.

गणेश उत्सव में गणेश की मूर्तियों को तराशने से लेकर विनायक अपने घर की दीवारों को पेंट करते और मिट्टी से छोटी-छोटी मूर्तियां बनाते. उनके पिता एक किसान थे और संगीत के प्रति झुकाव रखते थे.

विनायक का मूर्तिकार बनने का सफर बड़ा दिलचस्प रहा और बचपन से ही उन्होंने इसमें रुचि रखी. शुरुआत में उन्होंने इसे बस शौक के रूप में अपनाया, लेकिन धीरे-धीरे इसमें करियर बनाने की ठानी और सफलता भी हासिल की. अपने सभी तकनीकी कौशल, अध्ययनशीलता, आत्मविश्वास और अपने सहयोगियों के साथ अथक परिश्रम करके, उन्होंने इस मूर्तिकला और अपने सपने को साकार किया. यह उनकी कड़ी मेहनत और हाथों के हुनर का ही फल है, जो उनके निधन के कई वर्षों बाद भी उनका नाम दिग्गजों में शुमार है.

एएमजे/जीकेटी