विनायक पांडुरंग करमरकर : छत्रपति शिवाजी की कांस्य की प्रतिमा बनाने वाले पहले शिल्पकार

नई दिल्ली, 12 जून . विनायक पांडुरंग करमरकर देश के एक प्रसिद्ध शिल्पकार थे. उन्हें नाना साहेब करमरकर के नाम से भी जाना जाता था. करमरकर ने छत्रपति शिवाजी की साढ़े तेरह फीट ऊंची कांस्य की प्रतिमा बनाई थी और ऐसी प्रतिमा बनाने वाले वह देश के पहले मूर्तिकार थे.

विनायक पांडुरंग करमरकर का जन्म 2 अक्टूबर 1891 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के सासवाने में हुआ था. वह किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे.

बचपन से ही उन्हें मूर्तिकला/शिल्पकला में दिलचस्पी थी, जो समय के साथ और बढ़ती चली गई और युवा अवस्था में आने के बाद उन्होंने इसी क्षेत्र में करियर बनाने का दृढ़ संकल्प किया. मूर्तिकला के क्षेत्र में करियर बनाना और अपनी पहचान हासिल करना कभी भी आसान नहीं रहा है. करमरकर के जमाने में यह और भी मुश्किल था. लेकिन, अपने दृढ़ निश्चय और कड़ी मेहनत के बल पर उन्होंने अपने लिए रास्ता बनाया.

अपने तकनीकी कौशल, अध्ययनशीलता और आत्मविश्वास के दम पर उन्होंने न सिर्फ मूर्तिकला के क्षेत्र में खुद को स्थापित किया बल्कि इस क्षेत्र के दिग्गज के रूप में उभरे. उनकी बनाई मूर्तियों की खासियत कलात्मकता के साथ-साथ सजीवता है.

विनायक पांडुरंग करमरकर मुंबई के सर जमशेदजी जीजाभाई स्कूल ऑफ आर्ट के छात्र रहे थे. वह परीक्षा में टॉप रहे थे और उन्हें लॉर्ड मेयो मेडल से सम्मानित किया गया था.

विनायक पांडुरंग छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्तियों के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं. महाराष्ट्र के साथ-साथ देश में उनकी लोकप्रियता का यह भी एक बड़ा कारण है. इसके अलावा गणेश उत्सव में उनकी बनाई भगवान गणेश की मूर्तियों की बड़ी मांग रहती थी.

अपनी मूर्तिकला के माध्यम से उन्होंने देश-विदेश में बहुत सम्मान पाया. 1964 में उन्हें ‘पद्म श्री’ से नवाजा गया था.

अलीबाग के पास सासवाने गांव में उनके घर पर करमरकर मूर्तिकला संग्रहालय स्थापित किया गया है, जहां उनकी बनाई गई मूर्तियों की प्रदर्शनी लगाई गई है. मूर्तिकला में रुचि रखने वाले लोग संग्रहालय में जाते रहते हैं.

इस मशहूर मूर्तिकार का निधन 13 जून 1967 को हो गया था.

पीएके/एकेजे