वाराणसी, 29 जून . समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा रविवार को कथावाचकों को लेकर दिए गए बयान पर संत समाज में गहरा आक्रोश देखने को मिला है. अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती और जगतगुरु बालक देवाचार्य महाराज ने अखिलेश के बयान को सनातन धर्म के प्रति असम्मान और राजनीतिक हताशा का प्रतीक बताया है.
स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने समाचार एजेंसी से खास बातचीत में अखिलेश यादव के बयान के बारे में पूछे जाने पर कहा कि राजनीति करने के लिए देश और प्रदेश में बहुत सारे मुद्दे हैं. विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, बेरोजगारी जैसे विषयों पर राजनीति हो सकती है, लेकिन जब कोई नेता धर्म और आस्था के क्षेत्र में घुसकर सनातन विरोधी और हिंदू द्रोही सोच के साथ बयानबाजी करता है, तो वह न केवल समाज की भावनाओं को आहत करता है, बल्कि स्वयं को राजनीतिक रूप से भी कमजोर कर लेता है.
उन्होंने कहा, “अब आपने व्यक्तिगत रूप से संतों और कथावाचकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है, जो आपके अंदर की कुंठा को दिखाता है. यह साफ दर्शाता है कि जमीन पर आप कहीं नहीं टिक पा रहे हैं. इन कथावाचकों को आमजन स्वयं श्रद्धा से बुलाते हैं. जो धन उन्हें दिया जाता है वह उनकी भक्ति और भाव का प्रतीक होता है, न कि कोई सौदेबाजी.”
स्वामी जितेंद्रानंद ने कहा कि एक 25 वर्षीय युवा कथावाचक ने अपनी कथा से मिले पैसे से एक कैंसर अस्पताल की नींव रखी है. दूसरी ओर, अखिलेश यादव और उनके पिता ने वर्षों तक सत्ता में रहकर प्रदेश को लूटा, लेकिन एक भी ऐसा अस्पताल नहीं खड़ा किया जिस पर जनता गर्व कर सके. अगर सैफई में कोई उत्कृष्ट अस्पताल खड़ा किया हो तो उसे भी सार्वजनिक किया जाए.
वहीं, जगतगुरु बालक देवाचार्य महाराज ने अखिलेश यादव पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि अखिलेश अब पागलों जैसी स्थिति में बयान दे रहे हैं. उन्हें समाज में भाईचारे को खत्म करके मतभेद बढ़ाने का जरिया चाहिए, इसलिए ऐसे उल्टे-सीधे बयान दे रहे हैं. शायद यादव समाज के कुछ कथावाचकों ने ही जाकर अखिलेश को यह बताया होगा कि कथावाचक पैसा लेते हैं और उन्होंने उसी पर आधारित बयान दे दिया. यादव समाज के कथावाचकों की कथावाचन शैली पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि ढोलक-मंजीरा लेकर सिर्फ भजन गाने वाले, जिनको एक भी श्लोक शुद्ध नहीं आता, वह कथावाचन के नाम पर केवल अशुद्धता फैला रहे हैं.
उन्होंने अखिलेश यादव को चुनौती देते हुए कहा कि वह अपने यदुवंशी कथावाचकों को इकट्ठा करें और श्रीमद्भागवत के श्लोकों का शुद्ध उच्चारण करके दिखाएं. यदि वे ऐसा कर पाएं, तो संत समाज उनकी बातों को मानने को तैयार होगा. साथ ही उन्होंने कथित तौर पर फर्जी शास्त्री उपाधि धारण करने वालों पर भी नाराजगी जताई और कहा कि शास्त्री एक डिग्री होती है, न कि कोई मंचीय उपाधि. जो लोग शास्त्रीयता की मर्यादा को तोड़ रहे हैं, उन पर भी रोक लगनी चाहिए.
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि दक्षिणा देना सनातन परंपरा का हिस्सा है, जो पूर्ण श्रद्धा से दी जाती है और उसका कोई लेन-देन या बाजार जैसा व्यवहार नहीं होता. देवाचार्य महाराज ने कहा कि जो कथा आयोजक होते हैं, वे श्रद्धा से, भक्तिभाव से दक्षिणा देते हैं. कथा, यज्ञ या अनुष्ठान के बाद यदि जजमान दक्षिणा न दे, तो वह कर्म भी फलदायी नहीं होता. इसलिए दक्षिणा को ‘पैसा लेना’ कहना नासमझी और परंपरा का अपमान है.
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पीएसके/एकेजे