उत्तम कुमार: बांग्ला फिल्मों का ‘महानायक’, जिसे कभी मिला था ‘फ्लॉप मास्टर जनरल’ का तमगा

नई दिल्ली, 3 सितंबर . ‘ओति उत्तम’, हाल ही में बांग्ला फिल्म रिलीज हुई. इसका ट्रेलर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने शेयर किया लिखा उस दौर के अभिनेता को जीवंत करना ‘ओति उत्तम’. बेहद खास मूवी है ये. डायरेक्टर ने गढ़ने में 6 साल लगा दिए. पर्दे पर उस एक्टर को चार दशक बाद फिर जिंदा कर दिया जिसे बांग्ला फिल्म का महानायक कहते हैं.

हिंदी सिनेमा के ‘अमानुष’, बांग्ला सिनेमा के सरताज और देश का पहला नेशनल अवॉर्ड जीतने वाले नायक अरुण कुमार चट्टोपाध्याय यानि प्रशंसकों के ‘गुरु’ उत्तम कुमार. साधारण परिवार में पले बढ़े उत्तम कुमार आज भी बंगाल की एक बड़ी आबादी का क्रश माने जाते हैं. करियर का आगाज इतना बेहतरीन नहीं था. लोगों का प्यार भी नहीं मिला और निर्देशकों का साथ भी. क्लर्क की नौकरी भी करते थे और फिल्म में एक्टिंग भी. एक मजबूरी थी तो दूसरा पैशन था.

1947 से स्ट्रगल शुरू हुआ और 1951 तक जारी रहा. यही वजह है कि उस दौर में लोग इन्हें ‘फ्लॉप मास्टर जनरल’ नाम से पुकारने लगे. असफलता पर 1952 में जाकर विराम लगा. इसी साल रिलीज हुई बांग्ला फिल्म ‘बासु परिबॉर’ सफल रही. इसके बाद तो जैसे फिल्म दर फिल्म हिट की झड़ी लग गई. लोगों के दिलों में बस गए और गोल्डेन एरा के गोल्डेन स्टार बन गए. उनकी फिल्में आज भी बंगाली सिनेमा की धरोहर मानी जाती हैं.

कहा जाता है कि बांग्ला सिनेमा के स्वर्ण युग का पटाक्षेप इनकी अकाल मृत्यु के बाद हो गया. इस कलाकार को अभिनय करने, गीत गाने-रचने, फिल्मों का निर्माण और निर्देशन करने में महारत हासिल थी. इनका जन्म 3 सितंबर 1926 को उत्तर कलकत्ता (अब कोलकाता) के एक साधारण परिवार में हुआ. शुरू से ही कला के प्रति रुझान जबरदस्त था. घर का माहौल भी कुछ ऐसा था.

हैरानी होगी ये जानकर कि बांग्ला फिल्मों के इस महानायक ने शुरुआत हिंदी फिल्म से की थी. 1947 की फिल्म, नाम था माया डोर. जो डिब्बा बंद रही यानि कभी रिलीज ही नहीं हो पाई. लेकिन फिर इन्होंने बंगाल की ओर फोकस बढ़ाया और कुछ सालों बाद जो हुआ वो किसी जादू से कम नहीं था. उत्तम कुमार एक व्यक्ति नहीं बल्कि संस्था थे- ऑल इन वन. मतलब एक अभिनेता, निर्माता, निर्देशक, पटकथा लेखक, गायक और संगीतकार सब कुछ ! उन्होंने छह बांग्ला फ़िल्में और एक हिंदी फिल्म का निर्माण किया. संगीतकार के रूप में, उन्होंने फ़िल्म ‘काल तुमी अलेया’ (1966) के लिए संगीत दिया, जिसमें हेमंत कुमार और आशा भोसले ने अपनी आवाज़ दी.

हिंदी सिनेमा का कैनवास बड़ा था सो उत्तम कुमार ने किस्मत दोबारा आजमाई. लेकिन फिर निराशा ही हाथ लगी. 1967 में उत्तम कुमार ने वैजयंतीमाला को लेकर एक हिंदी फ़िल्म ‘छोटी सी मुलाकात’ बनाई. इस फिल्म का निर्देशन अलो सरकार ने किया था. संगीत शंकर-जयकिशन की जोड़ी ने दिया था, जो 1960 के दशक में सिल्वर जुबली फिल्मों की गारंटी हुआ करती थी. लेकिन उनका जादू नहीं चला. बॉक्स ऑफिस पर पिट गई, जिसके बाद उत्तम कुमार पर भारी कर्ज हो गया. अपना कर्ज चुकाने के लिए उन्होंने कई फिल्में भी कीं.

इस फिल्म ने उन्हें बुरी तरह तोड़ दिया. नतीजतन उत्तम कुमार को पहला दिल का दौरा रे की ‘चिड़ियाखाना’ (1967) की शूटिंग के दौरान पड़ा. ‘छोटी सी मुलाक़ात’ (1967) के फ्लॉप होने के बाद उनकी सेहत बिगड़ने लगी और उन्हें दो और दौरे पड़े.

23 जुलाई 1980 की आधी रात को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और कोलकाता बेलेव्यू क्लिनिक में भर्ती कराया गया जहाँ पाँच हृदय रोग विशेषज्ञ उनको ट्रीट करते रहे. 16 घंटे बाद, जुलाई 1980 में रात 9:35 बजे 53 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई.

उत्तम कुमार की मृत्यु ने बंगाली सिनेमा को एक बड़ा झटका दिया था. उनकी मृत्यु के बाद, बंगाली सिनेमा में एक नए युग की शुरुआत हुई, लेकिन उत्तम कुमार जैसा कोई नहीं आया. वे एक अनोखे कलाकार थे जिन्होंने अपनी प्रतिभा से बंगाली सिनेमा को समृद्ध बनाया.

केआर/