अनूठी परंपरा : यात्रा काल में भी हर दिन खोले और बंद किए जाते हैं बद्रीनाथ धाम के कपाट

देहरादून/बद्रीनाथ, 22 मई . कहते हैं कि क्षीर सागर में श्री हरि विष्णु माता लक्ष्मी के साथ शेषनाग पर रहते हैं, जिसे बैकुंठ धाम कहा जाता है. जहां वही पुण्य आत्मा जाती है जिसने अपने जीवन से मोक्ष की प्राप्ति कर ली होती है.

क्या आपको पता है कि इस धरती पर भी एक ऐसी जगह है, जिसे दूसरा बैकुंठ धाम कहा जाता है. ये भी कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में एक बार यहां दर्शन करने आ जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.

इस धरती पर जिस धाम को दूसरे बैकुंठ धाम के रूप में जाना जाता है वो उत्तराखंड यानि देवभूमि में मौजूद है. जहां हर साल लाखों श्रद्धालु बड़ी आस्था और श्रद्धा से दर्शन करने आते हैं.

उत्तराखंड के चमोली जनपद के अलकनंदा नदी पर स्थित है बद्रीनाथ धाम. बद्रीनाथ धाम हिंदुओं के चार प्रमुख धामों में से एक है. यह पवित्र स्थल भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर एवं नारायण की तपोभूमि है. इस धाम के बारे में कहावत है कि “जो जाए बद्री, वो न आए ओदरी” यानी जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे माता के गर्भ में दोबारा नहीं आना पड़ता. प्राणी जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है.

उत्तराखंड में इस साल की चारधाम यात्रा की शुरुआत हो चुकी है. 12 मई को बद्रीनाथ धाम के भी कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं. जहां हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु भगवान बद्री विशाल के दर्शनों के लिए पहुंच रहे हैं.

यूं तो इस धाम को लेकर कई रोचक कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं. लेकिन, एक रोचक और सच बात आपको मालूम नहीं है. ये अजब है, पर सच है. आपको पता है कि रोज बद्रीनाथ धाम के कपाट ‘खोले’ और ‘बंद’ किए जाते हैं.

ये बात हम सबको पता है कि ‘ऑफ सीजन’ यानी शीतकाल में बद्रीनाथ धाम के कपाट छह माह तक बंद रहते हैं. लेकिन, ये जानकारी बहुत कम लोगों को होगी कि ‘यात्रा सीजन’ में भी बद्रीनाथ धाम के कपाट रोज खोले और बंद किए जाते हैं. रात में जब कपाट बंद किए जाते हैं. तो, उस पर एक नहीं तीन ताले लगाए जाते हैं. दूसरे दिन तड़के ताले खोल दिए जाते हैं. ताले यूं ही खोले और बंद नहीं किए जाते. इसमें मुहूर्त और धार्मिक परंपराओं का निर्वहन पूरे विधि-विधान के साथ किया जाता है. इस प्रक्रिया में हक-हकूक धारियों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है.

बद्रीनाथ धाम के मंदिर के कपाट खोलने की पौराणिक मान्यताएं विशिष्ट हैं. पारंपरिक रीति-रिवाज के अनुसार ग्रीष्म काल में बद्रीनाथ धाम के कपाट खुले रहते हैं. जबकि, शीतकाल में छह माह के लिए बंद रहते हैं. कपाट बंद करते समय मंदिर पर तीन ताले लगाए जाते हैं. इनमें से एक ताला मंदिर समिति (बीकेटीसी) का जबकि एक–एक ताला हक हकूकधारी ‘मेहता थोक’ व ‘भंडारी थोक’ का होता है.

ग्रीष्म काल में जब निर्धारित मुहूर्त पर कपाट खोले जाते हैं तो कपाट खुलने से पहले बद्रीनाथ मंदिर के सिंहद्वार के आगे सभा मंडप के मुख्य द्वार पर विधिवत तौर पर भगवान श्री गणेश और भगवान श्री बद्री विशाल का आह्वान किया जाता है.

मंदिर के धर्माधिकारी और वेदपाठी जिन चाबियों से द्वार के ताले खोलते हैं, पहले उन चाबियों की पूजा-अर्चना करते हैं. पहला ताला टिहरी महाराजा के प्रतिनिधि के रूप में राजगुरु नौटियाल के द्वारा खोला जाता है. उसके बाद मंदिर के हक-हकूकधारी ‘मेहता थोक’ व ‘भंडारी थोक’ के प्रतिनिधियों द्वारा ताले खोले जाते हैं.

कपाट खुलने से पूर्व जिन चाबियों की पूजा होती है, उनमें से गर्भ गृह के द्वार पर लगे ताले की चाबी मंदिर प्रबंधन द्वारा डिमरी पुजारी भितला बड़वा को सौंपी जाती है और गर्भगृह का ताला भितला बड़वा द्वारा खोला जाता है.

इस तरह गर्भगृह द्वार खुलते ही विधिवत तौर पर भगवान के कपाट छह माह के यात्रा काल के लिए खुल जाते हैं. कपाट खुलते ही वहां उपस्थित श्रद्धालु भगवान बदरी विशाल की अखंड ज्योति के दर्शन का पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं.

दिलचस्प बात यह है कि कपाट खुलने के बाद पूरे ग्रीष्मकालीन (यात्रा काल) में भी हर रोज मंदिर के दरवाजे पर ताले (तीन) लगाए और खोले जाते हैं. अन्य दिनों में ताले खोलने की प्रक्रिया थोड़ी सूक्ष्म होती है. लेकिन, इसमें भी रोज शुभ मुहूर्त का ध्यान रखा जाता है. शीतकाल के लिए कपाट बंद होने के दिन तक यह प्रक्रिया अनवरत जारी रहती है.

कुल मिलाकर बद्रीनाथ धाम से जुड़ी पौराणिक परंपरा और रीति-रिवाज तमाम रोचक जानकारियों से भरे पड़े हैं.

स्मिता/एबीएम