केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने ब्रिटेन यात्रा के दौरान डिजिटल इंफ्रा और इनोवेशन में भारत की प्रगति पर डाला प्रकाश

नई दिल्ली, 20 जून . केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने ब्रिटेन की अपनी यात्रा के दौरान कई शीर्ष ब्रिटिश अधिकारियों और उद्योग जगत के नेताओं से मुलाकात की. उन्होंने फाइनेंशियल फ्रेमवर्क और एआई जैसी उभरती तकनीकों में सहयोग के अवसरों पर चर्चा की.

केंद्रीय मंत्री ने ब्रिटेन में एक्सचेकर की चांसलर रेचल रीव्स से मुलाकात की और भारत-ब्रिटेन आर्थिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए फाइनेंशियल फ्रेमवर्क्स, सस्टेनेबल फाइनेंस और नए व्यापार अवसरों को पेश करने में सहयोग के अवसरों पर चर्चा की.

केंद्रीय मंत्री गोयल ने ब्रिटेन स्थित बिजनेस फाइनेंशियल प्लेटफॉर्म टाइड के सीईओ ओलिवर प्रिल के साथ भी महत्वपूर्ण चर्चा की.

केंद्रीय मंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “डिजिटल दुनिया में भारत की प्रगति के साथ, हमने फिनटेक इकोसिस्टम, डिजिटल सशक्तीकरण और दोनों अर्थव्यवस्थाओं में एसएमई के नेतृत्व वाली वृद्धि को बढ़ावा देने पर चर्चा की.”

उन्होंने लंदन के फ्यूचर फ्रंटियर्स फोरम में साइंस म्यूजियम ग्रुप के निदेशक और मुख्य कार्यकारी सर इयान ब्लैचफोर्ड से भी बातचीत की.

केंद्रीय मंत्री गोयल ने कहा, “डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और इनोवेशन में भारत की प्रगति पर प्रकाश डाला और बताया कि कैसे दुनिया हमारी कुशल प्रतिभा, लागत प्रभावी समाधानों और एआई और उभरती टेक्नोलॉजी में बढ़ती क्षमताओं से लाभान्वित हो सकती है. साथ ही, दोनों देशों के बीच साइंस, टेक्नोलॉजी और इनोवेशन में सहयोग को गहरा करने के लिए भारत-ब्रिटेन एफटीए की क्षमता को रेखांकित किया.”

केंद्रीय मंत्री गोयल ने मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को बातचीत के जरिए तैयार किए गए पाठ से एक परिवर्तनकारी आर्थिक साझेदारी में बदलने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की फिर से पुष्टि की है.

केंद्रीय मंत्री ने लंदन में इंडिया ग्लोबल फोरम (आईजीएफ) 2025 में भारत के रणनीतिक वैश्विक दृष्टिकोण और आर्थिक नेतृत्व को प्रदर्शित किया.

मई 2025 में भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते पर ऐतिहासिक हस्ताक्षर के बाद उनकी यात्रा एक महत्वपूर्ण क्षण थी.

केंद्रीय मंत्री ने एफटीए को दो जीवंत लोकतंत्रों के बीच साझा महत्वाकांक्षा का प्रतिबिंब बताया. उन्होंने कहा कि यह समझौता न केवल द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाता है, बल्कि भारत की अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप संतुलित और भविष्योन्मुखी व्यापार ढांचे पर बातचीत करने की क्षमता को भी प्रदर्शित करता है.

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