नई दिल्ली, 15 मार्च . लगातार तीसरी बार एनडीए को 400 से भी अधिक लोकसभा सीटों के साथ केंद्र की सत्ता में लाने में जुटे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह मिशन क्या कामयाब होगा? क्या भाजपा आगामी लोकसभा चुनावों के बाद 370 के निर्धारित लक्ष्य को हासिल कर पाएगी? क्या विपक्षी गठबंधन मोदी लहर के समक्ष टिक भी पाएगा?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ क्या विपक्ष के लिए वोट जुटा पाएगी? दक्षिणी सूबों में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन के बाद भाजपा का कमल वहां कितना खिलेगा? ऐसे ही कई अहम सवालों पर भारत की सर्वाधिक विश्वसनीय चुनाव सर्वे एजेंसी एक्सिस माई इंडिया के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक प्रदीप गुप्ता ने के साथ बातचीत की. इस विशेष साक्षात्कार में उन्होंने पूरी तस्वीर खींचकर समझाया कि एनडीए सत्ता में किस तरह से लौट सकती है. उन्होंने इस पर भी स्पष्टता से बताया कि क्या एनडीए 400 पार का लक्ष्य पूरा कर लेगा?
प्रदीप गुप्ता ने बताया कि एनडीए की 400 पार सीटें जीतने की जो सोच है तो इसमें एक बात तो साफ है कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा नीत इस गठबंधन ने 352 सीटें जीती थीं. इसका मतलब यह है कि उन्हें 48 सीटें और चाहिए. एनडीए को अपनी 400 सीटें जीतने की कल्पना को छूने के लिए कुछ बातें महत्वपूर्ण हैं. एनडीए ने पिछले लोकसभा चुनाव में 352 सीटें जिन-जिन राज्यों से जीती थी, उसको बनाए रखना बहुत जरूरी होगा, अगर उसमें कमी होगी तो भाजपा को दिक्कत हो सकती है.
उन्होंने बताया, “मैं हमेशा से इसको तीन ग्रुप में बांट के देखता हूं एक ग्रुप वह है, जहां पर बीजेपी ने 257 सीटों में से 238 सीटें जीती यानी केवल 19 सीटें विपक्षी पार्टियों ने जीतीं. इनमें सबसे प्रमुख महाराष्ट्र और बिहार हैं. जहां पर परिदृश्य काफी कुछ बदला है, पिछले लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था. लेकिन, अब दोनों अलग हो गए हैं. वहीं, एनसीपी और कांग्रेस ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. लेकिन, अब एनसीपी और शिवसेना का बंटवारा हुआ है जो कि दो हिस्से के रूप में भाजपा और एनडीए के साथ आए हैं. ऐसे में महाराष्ट्र एनडीए के लिए काफी अहम राज्य है.”
उन्होंने आगे बताया कि बिहार में नीतीश कुमार महागठबंधन में गए और फिर वापस एनडीए में शामिल हो गए. बिहार में कहा जा सकता है कि स्थिति गठबंधन के लिहाज से करीब-करीब वही है. पिछले 5 सालों में तेजस्वी यादव की लोकप्रियता में इजाफा हुआ है और वो हमने विधानसभा चुनाव में भी देखा था, यह कहा जा सकता है कि 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में लगभग उन्होंने भाजपा और जेडीयू को कड़ी टक्कर दी थी. भाजपा थोड़े से मार्जिन से चुनाव जीत पाई थी. ऐसे में बिहार-महाराष्ट्र इन राज्यों की श्रेणी में महत्वपूर्ण हैं. इसके अलावा कर्नाटक भी महत्वपूर्ण राज्य है. जहां पर पिछले साल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अच्छी खासी जीत हासिल की और भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था.
उन्होंने आंकड़ों को रखते हुए बताया कि पिछली बार लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में 28 सीटों में से भाजपा ने अकेले 25 सीट जीती और एक निर्दलीय उम्मीदवार का भी भाजपा को सीट समर्थन मिला था. जबकि, कांग्रेस और जेडीएस को गठबंधन के बावजूद एक-एक सीट पर जीत मिली थी. तो, एक राज्य कर्नाटक, यह बात हो गई एक श्रेणी की. जिसके अंदर एनडीए का प्रदर्शन चरम सीमा पर था. वहां पर अब बढ़ने की उम्मीद बहुत कम है. देखना यह होगा अगर सीटें घटती हैं तो कितना कम होती हैं. इनमें सभी तरह के राज्य आ जाते हैं, जिनमें गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और कर्नाटक हैं.
उन्होंने आगे बताया कि दूसरी श्रेणी में वह राज्य हैं, जहां ‘कभी खुशी कभी गम’ जैसी स्थिति थी. भाजपा ने बहुत अच्छा किया. लेकिन, उसे और ज्यादा अच्छा करने की जरूरत है. इस द्वितीय श्रेणी के अंदर पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में से 18 सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई. वहां पर 24 सीटों की कमी है, जिसमें से 23 सीटें टीएमसी ने और एक सीट कांग्रेस ने पिछली बार जीती थी. इसी श्रेणी में उत्तर प्रदेश भी है.
“उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से एनडीए ने 64 सीटों पर जीत हासिल की थी यानी 16 सीटों की कसर रह गई है, पिछली बार सपा-बसपा गठबंधन ने 15 सीट और एक सीट रायबरेली पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. यहां 16 सीट, बंगाल में 24 सीटें और तीसरा अहम राज्य ओडिशा, जहां 21 सीटों में से 8 सीटें हासिल की थी. भाजपा के लिए यहां पर करीब-करीब 13 सीटों का स्कोप पिछली बार था. तो, इन सबको मिला दें तो ये 53 सीटें हैं, जहां पर एक स्कोप बनता है. लेकिन, मैं कह रहा हूं कि पश्चिम बंगाल में खासकर 42 में से 20 सीटें ऐसी हैं, जहां पर मुस्लिम वोटर निर्णायक होते हैं. इस बार कांग्रेस-टीएमसी में गठबंधन नहीं हो पाया और दोनों ही दल अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं.”
प्रदीप गुप्ता ने आगे जिक्र किया कि अब देखना यह होगा कि कांग्रेस और लेफ्ट पार्टी का अलायंस होता है, क्या वह मुस्लिम वोट का बंटवारा कर पाते हैं, उसके ऊपर काफी कुछ निर्भर करेगा कि भाजपा को 18 में से कितनी ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद है. दूसरी बात क्या वह 18 सीटें भी मेंटेन कर पाते हैं, क्योंकि यहां पर भी विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसमें भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था. वहीं, टीएमसी से कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन नहीं होने के बावजूद भी 294 में से एक सीट भी हासिल नहीं हुई और टीएमसी ने अकेले 213 सीटें जीती थी. तीसरी श्रेणी है, जहां पर सबकी नज़रें लगी हुई है क्योंकि, इस श्रेणी में 100 के करीब सीटें आती हैं. इस श्रेणी में तमिलनाडु-पुडुचेरी की 40 सीटें, आंध्र प्रदेश 25 सीटें, पंजाब और चंडीगढ़ 14 सीटें हैं. इसके अलावा केरल की 20 सीटें है. कुल मिलाकर 101 सीटें हैं, जिसमें एनडीए ने केवल पांच सीटें जीती थी.
उन्होंने आगे बताया कि तमिलनाडु में एआईडीएमके पिछली बार एनडीए गठबंधन का हिस्सा थी, इस बार काफी कुछ बातें चल रही हैं, चर्चा चल रही है, लेकिन, अभी तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है. 40 में से एक सीट एआईडीएमके ने जीती थी. यहां पर भाजपा का खाता भी नहीं खुला था. केरल में जहां लेफ्ट और कांग्रेस पार्टी का मुकाबला है. वहां पर भी भाजपा की एक भी सीट नहीं आई थी. पिछले चुनाव में पंजाब में दो सीटें अकाली दल और दो सीटें भाजपा गठबंधन ने जीती थी. हालांकि, इस बार दोनों के बीच गठबंधन नहीं हुआ है. देखने वाली बात है कि इन राज्यों में पांच सीटें एनडीए ने जीती थी. इनमें से आंध्र प्रदेश में एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी.
“लेकिन, अब आंध्र प्रदेश में भाजपा टीडीपी और जेएसपी को एनडीए में शामिल कर पाने में सफल हुई है. पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक ही दिन हुए थे. जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी ने 25 में से 22 सीटें हासिल की थी और टीडीपी को केवल तीन सीटें मिली थी और विधानसभा चुनाव में धुआंधार 175 में से 151 सीटें वाईएसआरसीपी ने जीती थी. इसका मतलब यह है कि क्या टीडीपी, भाजपा और जेएसपी का गठबंधन इस बार कुछ कमाल कर पाएगा. यदि कमाल करता है तो यहां पर एनडीए के लिए अच्छा स्कोप है कि पिछले बार के अंतर की भरपाई कर सके.”
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एसके/