प्रसिद्ध अर्थशास्त्री से समझिए एमएसपी से जुड़े तमाम तथ्य

नई दिल्ली, 19 फरवरी . एक तरफ देश में किसान फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं तो दूसरी तरफ सरकार के मंत्री लगातार किसानों से इस मामले पर बात कर रहे हैं. इस सबके बीच प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने समझाया कि एमएसपी क्या है.

इसकी मांग कितनी जायज है. सरकारों पर इसे कानून का रूप देने में कितना अतिरिक्त बोझ पड़ेगा और साथ ही किसानों का यह आंदोलन कैसे राजनीति से प्रेरित लगता है.

1966 में पहली बार लागू हुई थी एमएसपी

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने कहा कि देश में एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य 1966 से लागू हुई. तब देश में खाद्यानों का अभाव था और उसके उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए उस सरकार ने इसे लागू करने का फैसला लिया. इसमें गेहूं, चावल इत्यादि फसलों को तब शामिल किया गया. धीरे-धीरे करके इसमें और भी फसलें शामिल होती गई और इसका फॉर्मूला भी बदलता गया.

मोदी सरकार ने 23 फसलों का एमएसपी निर्धारित किया

इसके निर्धारण के लिए सरकार की तरफ से एक संस्था काम करती है. ऐसे में वर्तमान की पीएम मोदी सरकार ने इसके लिए किसानों की लंबे समय से चली आ रही मांगों को देखते हुए एम एस स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट के कुछ हिस्से को 23 फसलों पर इसको लागू किया.

किसानों को ऐसे मिल रहा एमएसपी का लाभ

बता दें कि केंद्र की वर्तमान सरकार के घोषणा पत्र में भी यह था कि कृषि उत्पादन के लागत से 50 फीसदी ज्यादा किसानों को मिले. सरकार ने वही किया और इस दर पर खरीद और कीमत दोनों बढ़ी. ऐसे में सरकार की सोच दर्शाती है कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ज्यादा से ज्यादा अनाज किसानों से खरीदना चाहती है.

सरकार पर एमएसपी पर खरीद से पड़ता है अतिरिक्त बोझ

अभी तक जो न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर व्यवस्था है, उसको लेकर बता दें कि केंद्र और राज्य सरकार जब इस मूल्य पर किसानों से अनाज खरीदती है तो उस पर अतिरिक्त वित्तीय भार भी पड़ता है. सरकार के पास कई तरह के खर्च हैं, इस सब के बीच किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के लिए सरकार के पास कितना बजट बचता है यह बड़ा सवाल है. जबकि सबको पता है कि देश में संसाधन सीमित हैं.

सरकार को इसे कानूनी जामा पहनाने में यहां आ रही परेशानी

ऐसे में सरकार के पास जब तक एक सुनिश्चित राशि नहीं आती है तो न्यूनतम समर्थन मूल्य को अमली जामा पहनाने में सरकार को परेशानी आ सकती है, क्योंकि इसके अलावा भी सरकार को कई और मदों पर खर्च करना पड़ता है. जिस समय सरकार की तरफ से न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की व्यवस्था की गई थी तब उसकी जरूरत थी. अब हमारे पास खाद्यान्न का उत्पादन सरप्लस में है. ऐसे में इस सरप्लस खाद्यान्न का हमको ऐसा नियोजन करना पड़ेगा कि किसानों को भी इसका लाभ मिले और सरकार पर भी इसका अतिरिक्त बोझ ना पड़े.

ऐसे में किसान को अनाज कम भाव पर बेचने के लिए मजबूर ना होना पड़े, इसकी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए. इसके लिए सरकार को एक मॉडल तैयार करने की जरूरत है ताकि सरकार को कम बोझ पड़े. अब तो हमारे पास वेयर हाउसेस हैं, ई-मार्केटिंग की व्यवस्था है, इसे अगर जोड़ दिया जाए तो सबकुछ बदल जाएगा.

जिन फसलों पर ज्यादा एमएसपी उसका होता है यह हाल

हम जिस फसल पर ज्यादा एमएसपी देंगे, उससे फसलों का उत्पादन बढ़ता है. लेकिन, कई बार यही फसलों का बढ़ा उत्पादन गलत दिशा में चली जाती है. ऐसे में एमएसपी और अन्य उपायों का एक मिक्सचर सरकार को तैयार करना होगा. ऐसे में नई फसलों के उत्पादन और उसके लिए प्रोत्साहन पर भी सरकार को ध्यान देना होगा.

किसान आंदोलन राजनीति से प्रेरित लगता है

जो हिस्सा देश का सबसे बड़ा एमएसपी का लाभार्थी है, वहीं से इस तरह का विरोध प्रदर्शन कई विराधाभासों का जन्म देता है. जहां किसान पहले से ही एमएसपी का लाभ उठा रहे हैं, वहां इसके लिए विरोध प्रदर्शन हो, यह अजीब लगता है. ऐसे में यह स्पष्ट है कि कहीं ना कहीं यह राजनीतिक से प्रेरित आंदोलन लगता है.

जीकेटी/एबीएम