![]()
New Delhi, 29 अक्टूबर . आज के युग में जहां डिजिटल तकनीक मन की शांति को छीन लेती है, वहां बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था का ‘मिशन राजीपो’ एक ऐसा प्रकाश-पथ बनकर उभरा है, जहां आध्यात्मिक शिक्षा और चरित्र-निर्माण साथ-साथ चलते हैं.
2024 में परम पूज्य महंत स्वामी महाराज ने यह दिव्य संकल्प किया कि विश्वभर के बालकों को संस्कृत श्लोकों का अध्ययन और पाठ करना चाहिए.
उन्होंने कहा, “संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है.” उन्होंने समझाया कि जो बालक संस्कृत श्लोकों को आत्मसात करते हैं और उन्हें जीवन में उतारते हैं, वे केवल आध्यात्मिक रूप से ही नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति करते हैं.
महंत स्वामी महाराज ने यह लक्ष्य रखा कि एक वर्ष में 10,000 बालक संस्कृत श्लोकों को कंठस्थ करें. यह प्रेरणा तो जैसे पवित्र अग्नि बनकर फैल गई. जो लक्ष्य के रूप में प्रारंभ हुआ था, वह शीघ्र ही आन्दोलन बन गया- 40,000 से अधिक बालकों ने उत्साहपूर्वक इसमें भाग लिया. इनमें से 15,666 बालक-बालिकाओं ने सत्संग दीक्षा ग्रंथ के सभी 315 संस्कृत श्लोकों को पूर्णतः कंठस्थ किया और परीक्षा में उत्तीर्ण हुए. हजारों अन्य बालक आज भी इस अध्ययन, चिंतन और आत्म-परिवर्तन की साधना-यात्रा में आगे बढ़ रहे हैं.
महंत स्वामी महाराज की दृष्टि आध्यात्मिक होने के साथ-साथ वैज्ञानिक भी थी. उन्होंने कहा कि संस्कृत उच्चारण को परिष्कृत, शब्द-भंडार को समृद्ध और बुद्धि को तीक्ष्ण बनाती है. नियमित संस्कृत श्लोक-जप से एकाग्रता, स्पष्टता और मानसिक पवित्रता बढ़ती है, जिसे अब आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार करता है. इस प्रकार, उन्होंने संस्कृत को केवल धार्मिक भाषा नहीं, बल्कि आंतरिक अनुशासन और आत्म-परिवर्तन का आध्यात्मिक विज्ञान बताया.
इन श्लोकों के माध्यम से बच्चे सीख रहे हैं कि सच्चा ज्ञान वही है जो आचरण में उतरे. वे केवल संस्कृत नहीं सीख रहे, बल्कि करुणा, नम्रता, सत्य और सामंजस्य जैसे संस्कारों को आत्मसात कर रहे हैं, जो दिव्य जीवन का सार हैं.
India से लेकर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, यूएई, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और अफ्रीका तक — बालक-बालिकाओं ने इस भक्ति और अनुशासन-यज्ञ में भाग लिया. उनके पीछे थे 103 साधुगण, 17,000 स्वयंसेवक, और 25,000 अभिभावक, जिनके सामूहिक पुरुषार्थ ने इस पहल को विश्वव्यापी संस्कार-आंदोलन में बदल दिया.
यह अभियान सिद्ध करता है कि जब संस्कार बचपन में बोए जाते हैं, तब भविष्य प्रकाश से खिल उठता है. आज के ये बालक ही कल के “परंपरा-प्रदीपक” बन रहे हैं – जो आधुनिकता के साथ आध्यात्मिकता, बुद्धि के साथ ईमानदारी, और अध्ययन के साथ प्रेम को जोड़ते हैं.
–
एसके/एबीएम