New Delhi, 13 सितंबर . भारत के पूर्वोत्तर की धुंध से ढकी पहाड़ियों और गहरी घाटियों में, स्टील की पटरियों पर एक क्रांति उभर कर सामने आ रही है. एक वक्त में जिसे कभी सुदूर इलाका माना जाता था, अब महत्वाकांक्षी रेल परियोजनाओं से जुड़ रहा है, जो न केवल संपर्क में बढ़ोत्तरी की तरफ इशारा कर रहा है, बल्कि भारत के पूर्वोत्तर सीमांत क्षेत्र के लिए वाणिज्य, गतिशीलता और एकीकरण के एक नए युग का भी संकेत दे रहा है.
रेल मंत्रालय के अनुसार, पिछले एक दशक में पूर्वोत्तर ने अपने रेलवे मानचित्र को अभूतपूर्व रफ्तार से बदलते देखा है. लंबे समय से लंबित परियोजनाएं महज सर्वेक्षण दस्तावेजों से बाहर निकलकर हकीकत में तब्दील हो गई हैं, उन राज्यों में नए स्टेशन खुल रहे हैं, जहां एक सदी से भी ज्यादा समय से कोई स्टेशन नहीं था और राजधानियां आखिरकार राष्ट्रीय नेटवर्क से जुड़ रही हैं. इनमें मिजोरम की 51 किलोमीटर लंबी बैराबी-सैरांग रेलवे लाइन भी शामिल है, जिसका उद्घाटन Prime Minister Narendra Modi ने किया.
यह एक ऐसा अहम मुकाम है, जिसने आखिरकार आइजोल को भारत के रेलवे मानचित्र में शामिल कर दिया है. गुवाहाटी के चहल-पहल वाले इलाकों से लेकर मिजोरम और नागालैंड की शांत सीमाओं तक, पहाड़ों, सुरंगों और नदियों के पार नई लाइनें बिछाई जा रही हैं, जो न सिर्फ संपर्क, बल्कि जीवन की लय को भी बदलने का वादा करती हैं.
रेलवे का दायरा पूर्वोत्तर में विस्तृत हो रहा है. कभी महज कुछ चुनिंदा स्टेशनों पर निर्भर रहने वाला यह क्षेत्र, अब रेलवे के पुनर्जागरण के मुहाने पर खड़ा है. 2014 से इस क्षेत्र के लिए रेलवे आवंटन पांच गुना बढ़कर 62,477 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है. इसमें से 10,440 करोड़ रुपए चालू वित्त वर्ष के लिए निर्धारित किए गए हैं. 77,000 करोड़ रुपए की परियोजनाओं के साथ यह क्षेत्र अपने इतिहास में रेल निवेश की सबसे बड़ी लहर देख रहा है. मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर और अन्य राज्यों में लंबे समय से लंबित परियोजनाएं आखिरकार राजधानियों को राष्ट्रीय ग्रिड से जोड़ रही हैं.
त्रिपुरा में रेलवे लाइन सीमाओं तक पहुंच गई है, मेघालय में पहला रेलवे स्टेशन बना है, जबकि अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और असम नई लाइनों, विद्युतीकरण और दोहरीकरण कार्यों के साथ आगे बढ़ रहे हैं. हर राज्य की यात्रा दर्शाती है कि रेलवे किस तरह पूर्वोत्तर को नया आकार दे रहा है.
मिजोरम में पहाड़ों तक रेल पहुंची. Prime Minister Narendra Modi ने 8,070 करोड़ रुपए से अधिक की लागत से निर्मित 51 किलोमीटर लंबी बैराबी-सैरांग लाइन का उद्घाटन किया, जिससे आइजोल का रेलवे ट्रैक पर भव्य पदार्पण मुमकिन हो पाया. राज्य में तीन नई रेल सेवाओं, सैरांग-दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस, सैरांग-गुवाहाटी एक्सप्रेस और सैरांग-कोलकाता एक्सप्रेस को भी हरी झंडी दिखाई गई. मिजोरम की रेल यात्रा 1980 के दशक के अंत में असम सीमा के पास बैराबी स्टेशन से मीटर-गेज स्टेशन के रूप में शुरू हुई थी.
साल 2016 में 83.55 किलोमीटर लंबी कथकल-बैराबी गेज परिवर्तन परियोजना के तहत इसे ब्रॉड गेज में अपग्रेड किया गया, जहां 42 वैगन चावल के साथ पहली मालगाड़ी आई और Prime Minister Narendra Modi ने वर्चुअल रूप से एक यात्री सेवा को भी हरी झंडी दिखाई. अगर भविष्य की बात करें तो इस वक्त जारी 223 किलोमीटर लंबी सैरांग-बिछुआ परियोजना का मकसद मिजोरम की दक्षिणी सीमा तक पटरियों का विस्तार करना है, जिससे सित्तवे बंदरगाह के जरिए म्यांमार और दक्षिण पूर्व एशिया के लिए सीधे व्यापार मार्ग खुलेंगे.
20वीं सदी की शुरुआत में खोला गया दीमापुर, 100 से ज्यादा सालों तक नागालैंड का एकमात्र रेलवे स्टेशन बना रहा. 2022 में शोखुवी ने इस तथ्य को बदला और राज्य का दूसरा स्टेशन बन गया. 82.5 किलोमीटर लंबी दीमापुर-कोहिमा नई लाइन का काम प्रगति पर है, जिसमें धनसिरी-शोखुवी खंड अक्टूबर 2021 में चालू हुआ और पहली यात्री सेवा डोनी पोलो एक्सप्रेस अगस्त 2022 में शुरू हुई. शोखुवी-मोल्वोम खंड मार्च 2025 में पूरा हो गया, जबकि मोल्वोम से जुब्जा (कोहिमा के पास) तक का शेष खंड प्रगति पर है. अक्टूबर 2026 तक मोल्वोम-फेरिमा खंड (14.09 किमी) खुलने का अनुमान है. इसके बाद दिसंबर 2029 में फेरिमा-जुब्जा खंड (37.57 किमी) को खोलने की योजना है, जो एक ऐसा मील का पत्थर है, जो नागालैंड की राजधानी कोहिमा तक आखिरकार रेल संपर्क कायम करेगा.
त्रिपुरा में 152 किलोमीटर लंबी बदरपुर-अगरतला लाइन को अप्रैल 2016 में ब्रॉड गेज में परिवर्तित किया गया. अगरतला-सबरूम लाइन (112 किलोमीटर) ने 2016 और 2019 के बीच चरणों में बांग्लादेश सीमा के निकट, त्रिपुरा के सबसे दक्षिणी भाग तक रेलवे का विस्तार किया. त्रिपुरा में संपूर्ण रेलवे नेटवर्क का विद्युतीकरण किया गया है. अगरतला तक दोहरीकरण कार्य की योजना है.
मणिपुर में असम सीमा के निकट स्थित जिरीबाम स्टेशन को 49.61 किलोमीटर लंबी अरुणाचल-जिरीबाम परियोजना के तहत मार्च 2016 में मीटर गेज से ब्रॉड गेज में परिवर्तित किया गया था. 110.625 किलोमीटर लंबी जिरीबाम-इम्फाल लाइन निर्माणाधीन है. जिरीबाम-वांगाईचुंगपाओ (11.8 किलोमीटर) का पहला खंड फरवरी 2017 में चालू किया गया था, उसके बाद वांगाईचुंगपाओ-खोंगसांग (43.56 किलोमीटर) खंड चालू किया गया.
असम में पूर्वोत्तर रेल ग्रिड की रीढ़ है. 2014 से 2017 के बीच पूर्वोत्तर में 833.42 किलोमीटर मीटर-गेज ट्रैक, जिनमें असम में 671.52 किलोमीटर शामिल हैं, को ब्रॉड गेज में परिवर्तित किया गया. प्रमुख गॉज परिवर्तन में लुमडिंग-सिलचर (210 किलोमीटर), उत्तरी लखीमपुर-श्रीपानी (81.46 किलोमीटर), और कटखल-बैराबी (75.66 किलोमीटर) आदि शामिल हैं. लुमडिंग-फुरकटिंग (140 किलोमीटर) जैसी दोहरी लाइन परियोजनाओं के खंड 2026 से शुरू होंगे, जबकि दिगारू-होजाई (102 किलोमीटर) खंड 2020-22 के बीच पूरे हो चुके हैं. पूरा होने में बोगीबील पुल और कनेक्टिंग लाइनें (73 किमी, 2018), तेतेलिया – कमलाजारी (10.15 किमी, 2018) और अन्य खंड शामिल हैं.
अरुणाचल प्रदेश में ईटानगर को जोड़ने वाला नाहरलागुन स्टेशन, 21.75 किलोमीटर लंबी हरमुती-नाहरलागुन नई लाइन परियोजना के तहत अप्रैल 2014 में चालू किया गया था. 505 किलोमीटर लंबी रंगिया-मुरकोंगसेलेक परियोजना के तहत मई 2015 में बालीपारा-भालुकपोंग लाइन को ब्रॉड गेज में परिवर्तित किया गया था. तवांग, पासीघाट-परशुराम कुंड-वाकरो और बामे-आलो-मेचुका तक नई लाइनों के लिए अंतिम स्थान सर्वेक्षण (एफएलएस) पूरा हो चुका है.
सिक्किम में 44.96 किलोमीटर लंबी सेवोक-रंगपो लाइन निर्माणाधीन है और इसके दिसंबर 2027 तक पूरी होने का लक्ष्य है, जो सिक्किम को पहला रेल संपर्क प्रदान करेगी. मेघालय में 19.62 किलोमीटर लंबी दुधनोई-मेंदीपाथर योजना के तहत, 2014 में मेंदीपाथर मेघालय का पहला रेलवे स्टेशन बना, जिसमें मेघालय के अंदर 8.67 किलोमीटर लंबी रेल पटरियां शामिल बिछीं.
पूर्वोत्तर में रेलवे की कहानी दृढ़ता और तरक्की की कहानी है. एक दशक से भी कम वक्त में इस क्षेत्र ने सदियों पुरानी मीटर-गेज लाइनों का आधुनिकीकरण देखा है और लंबे वक्त से लंबित परियोजनाओं का पुनरुद्धार और आइजोल तथा इम्फाल जैसी राजधानियों को रेलवे मानचित्र पर जगह मिली है. असम विद्युतीकरण और दोहरीकरण के साथ सशक्त रूप में उभरा है, जबकि मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश जैसे सीमावर्ती राज्य अपनी सीमाओं और व्यापार द्वारों की ओर रेल लाइनों को आगे बढ़ा रहे हैं. त्रिपुरा पहले ही बांग्लादेश पहुँच चुका है, और मेघालय तथा सिक्किम अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. कुल मिलाकर ये सभी उपलब्धियां महज इंजीनियरिंग की उपलब्धियों से कहीं बढ़कर हैं, ये पूर्वोत्तर के अलगाव से एकीकरण की ओर लगातार बढ़ते कदम का संकेत देते हैं, जहां स्टील की पटरियां विकास, संपर्क और नए क्षितिज की उम्मीदें दिखा रही हैं.
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डीकेपी/