कभी अंधेपन का प्रमुख कारण था ट्रेकोमा, भारत ने किया पूर्ण उन्मूलन

नई दिल्ली, 13 अक्टूबर . स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने रविवार को कहा कि मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामुदायिक समर्थन ने भारत को ट्रेकोमा से मुक्त होने में मदद की है.

ट्रेकोमा एक अत्यधिक संक्रामक जीवाणु संक्रमण है, जो दुनिया भर में रोकथाम योग्य अंधेपन का एक प्रमुख कारण रहा है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पिछले सप्ताह भारत को “आधिकारिक तौर पर ट्रेकोमा से मुक्त” घोषित किया है. एक समय था जब 1950 और 1960 के दशक के दौरान यह अंधेपन का प्रमुख कारण था.

मंत्रालय ने कहा, “यह उपलब्धि लाखों लोगों की दृष्टि की रक्षा के लिए सरकार द्वारा वर्षों के समर्पित प्रयासों के बाद मिली है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वस्थ दृष्टि के महत्व पर बल दिया गया है.”

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अनुमानतः विश्व भर में 15 करोड़ लोग ट्रेकोमा से प्रभावित हैं और उनमें से 60 लाख लोग अंधे हैं या उन्हें दृष्टि संबंधी जटिलताओं का खतरा है.

ट्रेकोमा एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग है, जो क्लैमाइडिया ट्रैकोमैटिस जीवाणु के संक्रमण के कारण होता है. यह रोग निकट शारीरिक संपर्क, तौलिये और तकिए जैसी निजी वस्तुओं को साझा करने, तथा खांसने और छींकने से फैलता है.

यह एक बहुत ही दर्दनाक बीमारी है, जिसके कारण दृष्टि धुंधली हो जाती है, आंखें लाल और सूजी हुई हो जाती हैं, पलक झपकते या सोते समय दर्द होता है और दृष्टि कम हो जाती है. अगर इसका इलाज न किया जाए तो यह बीमारी स्थाई अंधेपन का कारण बन सकती है.

खराब स्वच्छता प्रथाएं, घनी आबादी वाले इलाके में रहने, पानी की कमी, और अपर्याप्त शौचालय और स्वच्छता सुविधाएं ट्रेकोमा के संचरण को बढ़ावा देती हैं.

इसके अलावा मंत्रालय ने कहा कि बच्चे ट्रेकोमा के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं.

भारत में 1950 और 1960 के दशक में ट्रेकोमा एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय था, जिससे गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और निकोबार द्वीप समूह की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी प्रभावित थी.

साल 1971 तक देश में अंधेपन के सभी मामलों में से पांच प्रतिशत के लिए ट्रेकोमा जिम्मेदार था.

इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए भारत ने राष्ट्रीय अंधत्व एवं दृश्य हानि नियंत्रण कार्यक्रम (एनपीसीबीवीआई) के तहत अनेक उपाय लागू किए हैं.

भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित ‘सेफ’ रणनीति को भी अपनाया है.

ट्राइकियासिस के लिए सर्जरी, संक्रमण को दूर करने के लिए एंटीबायोटिक्स तथा संक्रमण को कम करने के लिए चेहरे की सफाई और पर्यावरण में सुधार जरूरी होता है.

सरकार ने 1963 में राष्ट्रीय ट्रेकोमा नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया, जिसमें सर्जिकल उपचार, एंटीबायोटिक वितरण, स्वच्छता को बढ़ावा देने और संक्रमण को कम करने के लिए चेहरे की सफाई, तथा जल और सफाई तक पहुंच बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया.

साल 1976 में ट्रेकोमा को राष्ट्रीय कार्यक्रमों में शामिल किया गया.

मंत्रालय ने कहा कि इन प्रयासों के महत्वपूर्ण परिणाम सामने आए हैं और भारत में अंधेपन के कुल मामलों में ट्रेकोमा की हिस्सेदारी चार प्रतिशत तथा 2018 तक यह घटकर मात्र 0.008 प्रतिशत रह गई.

मंत्रालय ने कहा, “इन निरंतर प्रयासों के माध्यम से भारत ने ट्रेकोमा उन्मूलन की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है. साल 2017 तक भारत को संक्रामक ट्रेकोमा से मुक्त घोषित कर दिया गया था.”

राष्ट्रीय ट्रेकोमा सर्वेक्षण रिपोर्ट (2014-17) ने संकेत दिया कि सभी सर्वेक्षण जिलों में बच्चों में सक्रिय ट्रेकोमा संक्रमण को समाप्त कर दिया गया है तथा इसका समग्र प्रचलन केवल 0.7 प्रतिशत है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की उन्मूलन सीमा पांच प्रतिशत से काफी कम है.

इस उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद भारत ने रोग के किसी भी पुनरुत्थान की जांच के लिए 2019 से 2024 तक “ट्रैकोमा मामलों के लिए सतर्क निगरानी” जारी रखी.

इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी ट्रेकोमा के खिलाफ भारत के प्रभावी उपायों की सराहना की.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस घेब्रेयेसस ने ट्रेकोमा से होने वाली पीड़ा को कम करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की प्रशंसा की तथा सरकार स्वास्थ्य पेशेवरों और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के बीच महत्वपूर्ण सहयोग पर जोर दिया, जिससे यह उपलब्धि संभव हो सकी.

यह रोग 39 अन्य देशों में चुनौती बना हुआ है. भारत के अलावा नेपाल, म्यांमार और 19 अन्य देशों ने भी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में ट्रेकोमा को सफलतापूर्वक समाप्त कर दिया है.

एकेएस/एकेजे