New Delhi, 11 सितंबर . मिर्गी एक गंभीर बीमारी है, जिसमें मस्तिष्क की गतिविधियां असामान्य हो जाती हैं और व्यक्ति को बार-बार दौरे पड़ते हैं. यह बीमारी अचानक किसी भी समय व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकती है, जिससे शरीर में झटके आना, बेहोशी, या होश में रहते हुए भी अजीब हरकतें करना जैसी स्थितियां बन जाती हैं.
मिर्गी का इलाज आमतौर पर दवाइयों से किया जाता है, लेकिन कई मामलों में मरीज को नियमित दवाइयों के बावजूद दौरे पड़ते रहते हैं. ऐसे में योग एक प्रभावी और प्राकृतिक विकल्प है.
आयुष मंत्रालय के मुताबिक, योग न सिर्फ दिमाग को शांत करता है, बल्कि मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को संतुलित रखने में भी मदद करता है.
अनुलोम-विलोम प्राणायाम मिर्गी के मरीजों के लिए बेहद खास है, क्योंकि यह मस्तिष्क की नसों पर सकारात्मक असर डालता है और मानसिक तनाव को घटाता है, जो मिर्गी के ट्रिगर को कम करने में मददगार हो सकता है. इसे रोजाना 10 से 15 मिनट तक करने से दिमाग में स्थिरता आती है और दौरे की संभावनाएं कम हो सकती हैं.
कपालभाति प्राणायाम का उपयोग मिर्गी में इसलिए उपयोगी माना गया है क्योंकि यह मस्तिष्क की कोशिकाओं को सक्रिय करता है और ताजी ऑक्सीजन उन तक पहुंचाता है. साथ ही, यह योगासन नर्वस सिस्टम को मजबूती देता है, जिससे मानसिक अस्थिरता दूर होती है.
यह एक प्रकार की तीव्र श्वास क्रिया है. इसमें सांस को तेजी से बाहर फेंका जाता है और पेट को अंदर की ओर खींचा जाता है. यह क्रिया शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करती है.
मिर्गी के मरीजों के लिए ताड़ासन बेहद फायदेमंद है. यह आसन शरीर के संतुलन को सुधारता है और मानसिक रूप से एकाग्रता बढ़ाता है. सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया से दिमाग को शांति मिलती है, जिससे दौरे पड़ने की संभावना कम हो सकती है.
इस आसन में जब हम शरीर को पूरी तरह सीधा करके हाथों को ऊपर खींचते हैं, तब रीढ़ की हड्डी में खिंचाव आता है और शरीर में ऊर्जा का संचार होता है.
मिर्गी में हलासन खासतौर पर सहायक होता है, क्योंकि इस आसन को करते वक्त सिर की ओर रक्त का बहाव बढ़ता है, जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएं ज्यादा सक्रिय होती हैं और संतुलित रूप से काम करती हैं.
इससे दौरे के जोखिम को कम किया जा सकता है. हलासन करने से न केवल मस्तिष्क को फायदा पहुंचता है, बल्कि यह पाचन और रीढ़ की हड्डी के लिए भी बेहद उपयोगी माना जाता है.
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पीके/एबीएम