सांबा, 17 अक्टूबर . जम्मू-कश्मीर के सांबा जिले के किसान मशरूम की खेती को लेकर जागरूक हो गए हैं. जिले के कार्थोली गांव के युवा किसानों ने नौकरी छोड़कर आत्मनिर्भर बनने की ओर कदम बढ़ाया है. किसान मशरूम की खेती कर सालाना लाखों की कमाई कर रहे हैं. जम्मू-कश्मीर में मशरूम की खेती एक मुनाफे वाला और कम निवेश वाला व्यवसाय बनकर उभरा है.
सांबा के एक युवा किसान पुशविंदर सिंह ने को बताया, “हम पिछले 24 साल से मशरूम की खेती कर रहे हैं. शुरुआत में, हम अक्टूबर से मार्च तक फसल काटते थे. अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, अच्छे रोजगार के अवसरों की कमी के कारण, मैंने एक नियंत्रित इकाई स्थापित की. कृषि विभाग ने हमारी मदद की और 75 हजार रुपये की सब्सिडी प्रदान की, ताकि हम आगे बढ़ सकें. हमने एक छोटा कमरा बनाया और एयर कंडीशनिंग स्थापित की, यह देखते हुए कि हमारी इकाई अच्छी तरह से काम कर रही थी, कृषि विभाग से आगे की सहायता के साथ, हमने एक ग्रोइंग रूम और लीज पर एक कम्पोस्ट इकाई स्थापित की. इससे हमें साल भर अच्छी दरों पर मशरूम का उत्पादन करने में मदद मिली, खासकर ऑफ-सीजन के दौरान जब बाजार में इसकी कमी होती है, जिससे अधिक मुनाफा होता है. आज, हमारे साथ 10-15 लोग काम कर रहे हैं, जो अपने परिवारों का भरण-पोषण करने में मदद कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा, “हम कई लोगों को रोजगार देने के साथ-साथ अपना घर भी अच्छे से चला रहे हैं. इस कारोबार से हमें डेढ़ से दो लाख रुपये का मुनाफा हो रहा है. हमारे पास कम्पोस्ट यूनिट भी है. पहले हम ये यूनिट बाहर से मंगाते थे. सर्दियों में तो ठीक रहता था, लेकिन गर्मियों में इसकी कमी हो जाती थी. इसके अलावा, बाहर से मंगाने पर यह हमें महंगी पड़ती थी. अब जब यह यूनिट हमारे जिले में लग गई है तो किसानों को बहुत फायदा हुआ है. इसका फायदा हमें भी हुआ है क्योंकि अब हमें कम्पोस्ट जल्दी मिल जाती है. साथ ही अच्छी क्वालिटी की कम्पोस्ट भी मिलती है.”
सांबा के मुख्य कृषि अधिकारी धन गोपाल सिंह कहते हैं, “हमारा बीज गुणन फार्म सांबा जिले में स्थित है. यह एक अनोखा फार्म है, खास तौर पर इसलिए क्योंकि यह एकीकृत मशरूम विकास का समर्थन करता है. हमारे पास मशरूम की खेती के लिए आवश्यक सामग्री है, जैसे खाद. लोग आमतौर पर स्पॉनिंग के लिए खाद का उपयोग करते हैं, और यहां, हमारे पास एक पाश्चुरीकरण इकाई है जो पाश्चुरीकृत खाद बनाती है. पहले, हम पारंपरिक खाद बनाने के तरीकों का इस्तेमाल करते थे, लेकिन पाश्चुरीकरण खाद को हानिकारक रोगाणुओं से मुक्त करता है, जिससे स्थानीय रूप से बनाई गई खाद की तुलना में मशरूम का उत्पादन 25 प्रतिशत बढ़ जाता है.”
उन्होंने आगे बताया, “हम त्रिकुटा मशरूम की खेती करते हैं. इसे एचएडीपी (समग्र कृषि विकास) कार्यक्रम के साथ जोड़ा गया है. इस परियोजना में हमारी पाश्चराइजर यूनिट पहले से ही बनी हुई थी. इस मशरूम की खेती हर मौसम में होती है. बटन मशरूम की खेती गर्मियों में नहीं होती. लेकिन इस परियोजना के तहत त्रिकुटा मशरूम की खेती हर मौसम में होती है. जो लोग इस व्यवसाय को अपनाना चाहते हैं, वे हमारी उत्पादन इकाई देखते हैं. फिर वे कहते हैं कि हम भी इसी विधि से मशरूम की खेती करेंगे.”
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आरके/एकेजे